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ब्राज़ील का अभिशाप - सुशोभित सिंह सक्तावत


ब्राज़ील का अभिशाप!
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[ यह लेख पढ़ने के लिए आपका फ़ुटबॉल का दीवाना होना ज़रूरी नहीं है, लेकिन यह लेख पढ़ने के बाद आप फ़ुटबॉल के दीवाने ज़रूर बन जाएंगे! ]

ये एक अभिशाप की कहानी है! ये "मराकानाज़ो" का अफ़साना है!

ऐसा कम ही होता है कि कोई एक खेल मुक़ाबला किसी मुल्क़ के सामूहिक अवचेतन पर इस तरह से हावी हो जाए कि वह उसके राष्ट्रीय स्वरूप का पर्याय बन जाए। एक प्रेतबाधा की तरह जिससे पिंड छुड़ाना मुश्‍िकल साबित होने लगे!

साहेबान, यह खेलों के इतिहास की सबसे बड़ी किंवदंती है। सबसे बड़ी गुत्थी भी कि आख़िर ऐसा कैसे हुआ।

1950 का फ़ुटबॉल विश्वकप फ़ाइनल। टीमें : ब्राज़ील और उरुग्वे। मैदान : रियो दी जैनेरियो का मराकाना स्टेड‍ियम।

यह एक फ़ाइनल मैच कम और एक “करोनेशन” अध‍िक माना जा रहा था : व‍िश्व फ़ुटबॉल में ब्राज़ील की श्रेष्ठता का जयघोष। यहां तक कि यह तक भुला दिया गया था कि मैच खेला जाना अभी बाक़ी है, ब्राज़ी‍लियों ने पहले ही जीत का जश्न मनाना शुरू कर दिया। अख़बारों ने पहले ही ब्राज़ील को “विश्व चैंपियन” कहना शुरू कर दिया।

हो भी क्यों ना, ब्राज़ील के पास तब दुनिया की सबसे अच्छी फ़ुटबॉल टीम थी। वे साउथ अमेरिकन चैंपियन थे और वह भी कैसे : 1949 के कोपा अमेरिका टूर्नामेंट में उन्होंने इक्वैडोर को 9-1 से, बोलिविया को 10-1 से, ब्राज़ील के निकटतम प्रतिद्वंद्वी माने जा रहे पैराग्वे को 7-1 से और उरुग्वे, जी हां, वही उरुग्वे जो “मराकाना” में ब्राज़ील से विश्वकप फ़ाइनल खेलने की जुर्रत कर रहा था, को 5-1 से रौंद दिया था।

विश्वकप शुरू हुआ, तो यहां भी वही सिलसिला : स्वीडन को 7-1 और स्पेन को 6-1 से पीटकर ब्राज़ीली टीम फ़ाइनल में पहुंची थी। उसे “अपराजेय” कहा जा रहा था। वह थोक में गोल करती और प्रतिद्वंद्वी टीमें खेरची में भी जवाब नहीं दे पाती थीं। ब्राज़ील को विश्व चैंपियन का मुकुट पहनना भर था, विश्वजयी वह पहले ही सिद्ध हो चुका था।

और तब, 16 जुलाई 1950 का नियति द्वारा तय किया गया दिन आया!

मराकाना स्टेड‍ियम में उस दिन अध‍िकृत रूप से 173,830 लोग मौजूद थे, जबकि अनध‍िकृत संख्या दो लाख के पार बताई जा रही थी। खेलों के इतिहास में आज तक किसी और मुक़ाबले को इतने अध‍िक लोगों ने स्टेड‍ियम में पहुंचकर नहीं देखा है, ना भविष्य में फिर वैसा होगा।

खेल शुरू हुआ। ब्राज़ीलियों ने पुलिस की मनाही के बावजूद मैदान में ही पटाखे छोड़ना शुरू कर दिया। उन्हें थोड़ी मायूसी तब हुई, जब उनकी टीम पहले हाफ़ में कोई गोल नहीं कर सकी।

बहरहाल, दूसरे हाफ़ की शुरुआत में ही ब्राज़ील के फ्रियाचा ने गोल दाग़ दिया! आनंदातिरेक की लहर पूरे स्टेडियम में दौड़ गई!

अब उरुग्वे को विश्व चैंपियन बनने के लिए दो गोल की दरक़ार थी, क्योंकि 1-1 से खेल समाप्त होने की स्थ‍िति में भी टूर्नामेंट में दाग़े गए गोलों की संख्या के आधार पर ब्राज़ील को विश्व चैंपियन घोष‍ित किया जाता।

और तब, 19 मिनट बाद श‍ियाफिन्नो का “इक्वेलाइज़र” गोल आया। मराकाना को सांप सूंघ गया!

विश्वकप अब भी ब्राज़ील की मुट्ठी में था, उन्हें केवल एक और गोल होने से रोकना था।

लेकिन यहीं पर ब्राज़ीली टीम मार खा गई।

वह डिफ़ेंसिव हुई तो उरुग्वे का हौंसला बढ़ा।

79वें मिनट में उरुग्वे के एल्स‍िदेस गिग्ग‍िया गेंद लेकर आगे बढ़े! ब्राज़ील का दिल धौंकनी की तरह धड़कने लगा! गिग्गिया ने करारा प्रहार किया, ब्राज़ीली गोलची ने अपने वजूद के एक-एक सेंटीमीटर को समेटकर डाइव लगाई, लेकिन ब्राज़ील के ग्यारह खिलाड़ियों ने, मराकाना में मौजूद दो लाख लोगों ने, और ब्राज़ील के करोड़ों बाशिंदाें ने लगभग स्लो मोशन में यह घटित होते देखा, मानो दुःस्वप्न हो, कि गेंद गोलची को छकाकर गोलचौकी में दफ़न हो गई है!

वह निर्णायक गोल था!

मराकाना में मातम शुरू हो गया। 90वें मिनट में जब रैफ़री ने खेल समाप्त होने की घोषणा की तो ब्राज़ीली एकबारगी यक़ीन ही नहीं कर पाए कि क्या हुआ है।

जो अवश्यंभावी था, नियत, आसन्न और अपरिहार्य था, वह नहीं हुआ था और अब एक अथाह अवसाद शेष रह गया था।

सनद रहे, फ़ुटबॉल मैच में जीत और हार ब्राज़ील के लिए महज़ एक खेल की जीत और हार नहीं होती, वह एक पूरे मुल्क़ के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन जाता है! अति तो यह है कि फ़ुटबॉल में जीत और हार के आधार पर वहां की हुक़ूमतों का प्रदर्शन भी अांका जाने लगता है!

1950 का वह फ़ुटबॉल विश्वकप फ़ाइनल “मराकानाज़ो” कहलाया : “मराकाना का शाप”।

उसके बाद ब्राज़ील ने पांच मर्तबा विश्वकप जीता! पेले, गारिन्चा, सोक्रेटीज़, ज़ीको, रोमारियो, रोनाल्डो और रोनाल्ड‍िनियो जैसे ख‍िलाड़ी दुनिया को दिए. लेकिन “मराकानाज़ो” की प्रेतबाधा से वह कभी मुक्त नहीं हो पाया।

जब-जब ब्राजील विश्व कप में कोई बड़ा मैच जीतने में नाकाम रहता है, मराकानाज़ो का प्रेत फिर से निकलकर सामने आ जाता है! 1982 की हार के बाद यह सामने आया था, 1998 के विश्वकप फ़ाइनल में हार के बाद यह फिर सामने आया था, 2014 में जर्मनी के हाथों 7-1 से शर्मनाक हार के बाद समूचा मुल्क़ मराकानाज़ो की चपेट में था और आज तक उससे मुक्त नहीं हो पाया है!

बीती रात विश्वकप का पहला मैच ड्रॉ खेलने के बाद एक बार फिर से ब्राज़ील के सामूहिक अवचेतन पर वह आदिम भय हावी होता जा रहा है-- क्या हुआ, अगर हम यह विश्वकप नहीं जीत पाए तो? ब्राज़ील के लिए विश्वकप जीतना या ना जीतना कोई विकल्प नहीं है. विश्वकप तो ब्राज़ील को जीतना ही होता है. विश्वकप ब्राज़ील का विशेषाधिकार है! या तो जीत का जश्न होगा या बेमाप मायूसी होगी, तीसरा कोई विकल्प ब्राज़ील ने अपने लिए नहीं चुना है!

जिन 173,830 लोगों ने उस दिन मराकाना स्टेड‍ियम का टिकट ख़रीदा था, उनमें जोएदीर बेलमोंत भी शामिल थे।

किसी कारणवश वे खेलों के इतिहास का सबसे चर्चित मैच देखने नहीं जा सके, लेकिन उस अपशगुनी टिकट को उन्होंने ताउम्र सम्हाले रखा।

बाद में उन्हें 2014 के विश्वकप फ़ाइनल का विशेष टिकट दिया गया, लेकिन उससे पहले ही ब्राज़ील ख‍िताबी होड़ से बाहर हो चुका था।

जिन 22 ख‍िलाड़‍ियों ने वह मैच खेला था, वे सभी एक-एक कर दुनिया से जाते रहे।

सबसे अंत में उस दिन का आख़िरी और निर्णायक गोल दाग़ने वाले एल्स‍िदेस गिग्ग‍िया की मौत हुई : 16 जुलाई को, 88 साल की उम्र में!

“मराकानाज़ो” की ऐन 65वीं सालगिरह के दिन!

[फेसबुक पोस्ट से साभार]


⚽सुशोभित⚽

© सुशोभित सिंह सक्तावत
(असिस्टेंट एडिटर, "अहा! जिंदगी" पत्रिका, दैनिक भास्कर समूह ग्रुप)

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