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Showing posts from December, 2017

नववर्ष के स्वागत में : शक्ति सार्थ्य

आज साल २०१७ का समापन दिवस है। ये साल कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। मैं यहां महत्वता की बात नहीं करूंगा और ना ही उसकी जिसकी बजह से इसकी महत्ता को कम कर दिया जाए। मैं यहां चर्चा करना चाहूंगा तो सिर्फ आत्मज्ञान की, दर्शन की, क्षमायाचना की, एक नई सीख की और उस योजना की जिसको कतई महत्वपूर्ण नहीं समझा गया मेरे द्वारा। इस वर्ष हमारी चेतना जितनी जागृत होनी थी, हो ली। अब हम इसमें कुछ भी नहीं कर सकते। हम किन-किन मायनों में जागृत हुए और सिर्फ किस एक सही मायने में जागृत होकर हम क्या कर सकते थे? ये हम सभी भलि-भांति जानते हैं। क्योंकि हम ही खुद को सबसे ज्यादा जान सकते हैं। हम खुद की ही उन पहलुओं पर चर्चा करके खुद से ही बड़ी आलोचना कर सकते हैं। जिसका हम शायद (शायद क्या? सच में) एक बेहतर परिणाम निकाल सकते हैं। मैं अपनी बात की शुरुआत स्वामी विवेकानंद जी के इस कथन से करना चाहूंगा- "किसी चीज़ से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे, यह निर्भयता ही है, जो क्षणभर में परम आनंद लाती है।" स्वामी जी के इस कथन में जितनी सच्चाई है अपितु उससे कहीं अधिक इसकी प्रामाणिकता में गहराई भी है। हम न जाने क्यों हर

हमारी अपनी मानसिकता का परिचय क्या हो सकता है? | शक्ति सार्थ्य

क्या हम आज के समय में अपनी स्वंय की ही मानसिकता से परिचित है? क्या सिर्फ परिचित होने का ढोंग कर रहे हैं? क्या हम परिचित हो भी सकते हैं? हमारे आज के समय के कुछ ऐसे विचार जो हमें ही समाजिक ढोंग में लिप्त होने को मजबूर कर देते है। हमें ये ज्ञात रहता है कि हम जो भी समाज में प्रस्तुति कर रहे हैं या करने जा है उसका सच के आईने से दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है। लेकिन फिर भी हम ऐसा करते है। लेकिन क्यों? शायद इन सब बातों का जबाव अमूमन सब को पता ही होता है। फिर भी हम अपनी उस मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाते, कि मैं अपने विचारों को सबसे बेहतर ढंग से प्रसारित कर सकता हूं। एक नये तड़के के साथ जो सिर्फ चटपटाहट का एक मात्र प्रतीक होता है। अमूमन सब ये जानते हुए भी है इसकी प्रस्तुति मात्र एक दिखावा है, फिर भी जोरदार तालियां की घनघनाहट से उसका स्वागत होता है। वो इसलिए कि ये वही लोग होते है जिन्हें खुद इस तरह की बातों के जरिए सराहा गया होता है। ये तो उनका एकमात्र फर्ज होता है जिसे वे जानकर भी अनजान बनकर निभाते हैं। हमारे आसपास समाज में बहुत-सी ऐसी बुराईयां व्याप्त है जिनका समाधान होना अति आवश्यक ह

टाइगर जिंदा है | मूवी रिव्यू

फिल्म टाइगर जिंदा है कि कहानी आतंकवादियों के चुंगल में फंसी 40 नर्सों को उनसे आजाद कराने के मिशन पर आधारित है। जब आतंकी सरगना उस्मान अमेरिकी जर्नलिस्ट को मौत के घाट उतार देता है तभी अमेरिका बदला लेने के लिए उन पर हमला कर देता है जिसमें उस्मान जख्मी हो जाता है। तभी हास्पिटल में जा रही एक बस जिसमें 25 भारतीय और 15 पाकिस्तानी नर्सों को आंतकवादी कैद कर लेते हैं। और वे उनसे आंतकी सरगना उस्मान का इलाज भी करवाते हैं। इस बीच अमेरिका उस हास्पिटल में इलाज करवा रहे आंतकी को मार गिराने के लिए एक एयरस्ट्राइक प्लान कर देता है। जब ये बात राॅ को पता चलती है तब राॅ उन्हें बचाने के एक मिशन लांच करता है और उधर अमेरिका से स्ट्राइक न करने की अपील करता है, तभी अमेरिका राॅ को सात दिन का वक्त देता है। अब होती है एंट्री पूर्व राॅ एजेंट टाइगर और पूर्व आईएसआई एजेंट ज़ोया की जो एक अच्छे कपल भी है और उनका एक प्यारा-सा बेटा भी है जूनियर टाइगर। अब दोनों देश की टीम मिलकर आपसी मतभेद भुलाकर इस मिशन को अंजाम देती है। ये सब टाइगर की बजह से मुमकिन हो पाता है कि राॅ और आईएसआई मिलकर एक साथ इस मिशन में कामयाबी हासिल