आज साल २०१७ का समापन दिवस है। ये साल कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। मैं यहां महत्वता की बात नहीं करूंगा और ना ही उसकी जिसकी बजह से इसकी महत्ता को कम कर दिया जाए। मैं यहां चर्चा करना चाहूंगा तो सिर्फ आत्मज्ञान की, दर्शन की, क्षमायाचना की, एक नई सीख की और उस योजना की जिसको कतई महत्वपूर्ण नहीं समझा गया मेरे द्वारा। इस वर्ष हमारी चेतना जितनी जागृत होनी थी, हो ली। अब हम इसमें कुछ भी नहीं कर सकते। हम किन-किन मायनों में जागृत हुए और सिर्फ किस एक सही मायने में जागृत होकर हम क्या कर सकते थे? ये हम सभी भलि-भांति जानते हैं। क्योंकि हम ही खुद को सबसे ज्यादा जान सकते हैं। हम खुद की ही उन पहलुओं पर चर्चा करके खुद से ही बड़ी आलोचना कर सकते हैं। जिसका हम शायद (शायद क्या? सच में) एक बेहतर परिणाम निकाल सकते हैं। मैं अपनी बात की शुरुआत स्वामी विवेकानंद जी के इस कथन से करना चाहूंगा- "किसी चीज़ से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे, यह निर्भयता ही है, जो क्षणभर में परम आनंद लाती है।" स्वामी जी के इस कथन में जितनी सच्चाई है अपितु उससे कहीं अधिक इसकी प्रामाणिकता में गहराई भी है। हम न जाने क्यों हर
"एक प्रयास.., मुकम्मल प्रस्तुति का"