"कसाईबाड़े" की "कटार" ________________________________________________ भारत में "धर्मनिरपेक्षता" का जो स्वरूप प्रचलित है, उसमें न्यस्त विडंबनाओं और सहानुभूतियों के डावांडोल केंद्रीयकरणों के बारे में टिप्पणी करते हुए इन पंक्तियों का विनयी लेखक अकसर यह परिभाषा दिया करता है : "कसाईबाड़े" में जिसकी सहानुभूति "कटार" के प्रति हो, वह "धर्मनिरपेक्ष!" "पंडित" जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की एक पूर्व छात्रा, जो कि सम्भवतया एक "अभिनेत्री" भी है, ने फ़िल्मकार संजय लीला भंसाली के नाम जो खुला पत्र लिखा है, उसको मैं भारतीय इतिहास के रक्तरंजित "कसाईबाड़े" में "कटारों" के प्रति सहानुभूति दर्शाने का एक ऐसा जघन्य प्रयास मानता हूं, जो अपने तात्पर्यों में अगर इतना कुत्सित, इतना आपराधिक नहीं होता, तो निश्चित ही उसे अत्यंत उपहास्य माना जा सकता था। बावजूद इसके, वह पत्र इतना मूढ़तापूर्ण तो है ही कि मेरे विनम्र मत में उसको लिखने के लिए "पंडित" जवाहरलाल नेहरू की अंतरात्मा को उस "पूर्व छात्रा
"एक प्रयास.., मुकम्मल प्रस्तुति का"