जब कि नफरत के दरख्तों पे बहार आई है, आ चल मेरे यार फरिश्तों से उजड़ना सीखें। भारत के पतन के उस कालखण्ड में, जब किसी आतंकवादी बन चुके युवक के लिए स्वघोषित बुद्धिजीवियों द्वारा देश को वर्षों से गाली दी जा रही हो, जब सरकारी अनुदान के पैसे से शराब पी कर मर जाने वाले रोहित वेमुलाओं को महानायक घोषित करने के प्रयास हो रहे हों, जब देश की राजधानी में ब्यभिचार का अड्डा बन चुके कथित विश्वविद्यालय में राष्ट्र की बर्बादी का स्वप्न पोसा जा रहा हो और संसद को छलनी करने वालों को नायक बनाया जा रहा हो, और जब इंकलाब के नाम पर भारत की बेटियों का सामूहिक बलात्कार हो रहा है, तो नई पीढ़ी के बच्चों के लिए यह कल्पना भी कठिन है कि भारत में ऐसा भी एक समय था जब बीस बाइस वर्ष के युवा इस देश के लिए मृत्यु से विवाह कर रहे थे। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर राष्ट्रद्रोह की आजादी मांगने वालों ने क्या कभी सोचा होगा कि इस आजादी के लिए कितने आजादों को अपने सर में गोली मार लेनी पड़ी थी? लंबे लंबे बैनरों और नारों के बल पर किसी कायर को नायक बनाने वाले अगर आजाद की जीवनी पढ़ें, तो पता चलेगा कि राष्ट्र नायक किस तरह बनते
"एक प्रयास.., मुकम्मल प्रस्तुति का"