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Showing posts from January, 2019

भारतीय शिक्षा प्रणाली - शक्ति सार्थ्य

[चित्र साभार - गूगल] कहा जाता है कि मानसिक विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य होता है, जिससे वह व्यक्ति अपने विकास के साथ साथ देश के विकास में भी मुख्य भूमिका अदा कर सके। अब सवाल उठता है कि- क्या भारत की शिक्षा प्रणाली हमारे मानसिक विकास के लिए फिट बैठती है? क्या हमारे विश्वविद्यालय, विद्यालय या फिर स्कूल छात्रों के मानसिक विकास पर खरा उतर रहे है?  क्या वह छात्रों को उस तरह से शिक्षित कर रहे है जिसकी छात्रों को आवश्यकता है? क्या छात्र आज की इस शिक्षा प्रणाली से खुश है? क्या आज का छात्र रोजगार पाने के लिए पूर्णतया योग्य है? असर (ASER- Annual Status Of Education Report) 2017 की रिपोर्ट बताती है कि 83% Student Not Employable है। इसका सीधा सीधा अर्थ ये है कि 83% छात्रों के पास जॉब पाने की Skill ही नहीं है। ये रिपोर्ट दर्शाती है कि हमारे देश में Youth Literacy भले ही 92% प्रतिशत है जो अपने आप में एक बड़ी बात है, लेकिन हमारी यही 83% Youth Unskilled भी है। जहाँ हमारा देश शिक्षा देने के मामले में हमेशा अग्रणी रहा है, और उसमें भी दिन-प्रतिदिन शिक्षा को ब

तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड (कहानी) - तरुण भटनागर

तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड (कहानी)/                              कहते हैं यह एक सच वाकया है जो यूरोप के किसी शहर में हुआ था।          बताया यूँ गया कि एक बुजुर्ग औरत थी। वह शहर के पुराने इलाके में अपने फ्लैट में रहती थी। शायद बुडापेस्ट में, शायद एम्सटर्डम में या शायद कहीं और ठीक-ठीक मालुमात नहीं हैं। पर इससे क्या अंतर पडता है। सारे शहर तो एक से दीखते हैं। क्या तो बुडापेस्ट और क्या एम्सटर्डम। बस वहाँ के बाशिंदों की ज़बाने मुख्तलिफ हैं, बाकी सब एक सा दीखता है। ज़बानें मुख्तलिफ हों तब भी शहर एक से दीखते रहते हैं।             वह बुजुर्ग औरत ऐसे ही किसी शहर के पुराने इलाके में रहती थी, अकेली और दुनियादारी से बहुत दूर। यूँ उसकी चार औलादें थीं, तीन बेटे और एक बेटी, पर इससे क्या होता है ? सबकी अपनी-अपनी दुनिया है, सबकी अपनी अपनी आज़ादियाँ, सबकी अपनी-अपनी जवाबदारियाँ, ठीक उसी तरह जैसे खुद उस बुजुर्ग औरत की अपनी दुनिया है, उसकी अपनी आज़ादी। सो साथ रहने का कहीं कोई खयाल नहीं। साथ रहना दिक्कत देता है। इससे जिंदगी में खलल पडता है। पर उम्र को क्या कीजिये। वह बढती रहती है और एक समय के बा

अधिकारों का राष्ट्रीय पर्व : गणतंत्र दिवस

अधिकारों का राष्ट्रीय पर्व : गणतंत्र दिवस आज २६ जनवरी है। और इस दिन को हम सब गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। क्योंकि आज ही के दिन हमारे देश में नागरिकों के अधिकारों के हित में संविधान को लागू किया गया था। जब हमारा देश १५ अगस्त १९४७ को आज़ाद हुआ था तब हमारे देश का अपना कोई मौलिक संविधान नहीं था। हमारे देश में नागरिकों के अधिकार के लिए संविधान निर्माण कार्य की एक कमेटी का गठन किया गया। जिसकी अध्यक्षता की कमान डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने संभाली। और अंततः दो वर्ष ग्यारह माह अठारह दिन के तत्पश्चात २६ जनवरी १९५० को हमारे देश में संविधान को लागू कर दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप हम-सब तब से लेकर आजतक २६ जनवरी को राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते चले आ रहे है। आज इस पर्व की महत्ता सिर्फ इतनी सी रह गई है कि हम इस दिन केवल और केवल अपनी औपचारिकता मात्र दिखाकर भारत की आज़ादी के शिखर पुरुषों का गुणगान करके, उन्हे सिर्फ अपने लाभकारी हितों के लिए ही याद करना है। जिसके चलते उनकी साख भी बनी रहे और नागरिकों के अधिकारों का भी मुख्य उद्देश्य भी नागरिकों को पता भी न चलने पाये। कायदे में इ

भारत में दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' की हुई घोषणा

प्रत्येक वर्ष दिए जाने वाले ‘भारत रत्न’ पुरस्कार की घोषणा की जा चुकी है। जिसकी जानकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ट्विटर के जरिये दी। इस बार भारत रत्न तीन लोगों को दिया जायेगा जिसमें पूर्व राष्ट्रपति एंव कांग्रेस नेता रहे प्रणब मुखर्जी के साथ-साथ नानाजी देशमुख और भुपेन हजारिका को प्रदान किया जाएगा। ‘भारत रत्न’ भारतवर्ष का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की प्रशंसा करते हुए लिखा, “प्रणब दा हमारे समय के बेहतरीन राजनेता हैं। उन्होंने दशकों से इस देश की सेवा निस्वार्थ और अथक भाव से की है जिससे हमारे देश की बेहतरी पर उनकी एक अमिट छाप है। उनकी बुद्धिमत्ता और विद्वता का कोई सानी नहीं। आह्लादित हूँ कि उन्हें ‘भारत रत्न’ दिया जा रहा है।” Pranab Da is an outstanding statesman of our times. He has served the nation selflessly and tirelessly for decades, leaving a strong imprint on the nation's growth trajectory. His wisdom and intellect have few parallels. Delighted that he has been conferred the Bharat Ratna. — Naren

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिए जाने से इन दिनों फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड चर्चा में हैं

[फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड प्राप्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी] इन दिनों फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड चर्चा में है। क्योंकि इसके चर्चा में होने की वजह ये अवॉर्ड हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को दिये जाने से है। जिसे उन्हें अथक ऊर्जा के साथ भारत का उत्कृष्ट नेतृत्व करने और निस्वार्थ सेवा करने के लिए प्रदान किया गया है। किंतु इस अवॉर्ड के मिलने बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी जी ने प्रधानमंत्री जी की चुटकी लेते हुए एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लिखा है कि- "मैं हमारे प्रधानमंत्री को विश्वप्रसिद्ध कोटलर अवॉर्ड जीतने की बधाई देता हूँ। वास्तव में यह इतना प्रसिद्ध है कि इसमें कोई ज्यूरी नहीं है और यह पहले कभी किसी को दिया भी नहीं गया और इसको एक अनसुनी अलीगढ़ कंपनी का सहयोग हासिल है। इवेंट साझेदार पतंजलि और रिपब्लिकन टीवी है।" बात यहीं खत्म नहीं हुई, राहुल गांधी के इस ट्वीट का जबाव देते हुए कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने उन्हें आड़े हाथ लिया और उन्होंने ट्वीट में कहा- "काग्रेंस प्रमुख का परिवार दूसरों से पुरस्कृत होने के

अब यदाकदा ही मुस्कुरा पता हूँ मैं (कविता) - शक्ति सार्थ्य

अब यदाकदा ही मुस्कुरा पता हूँ मैं/ अब वक्त पहले जैसा नहीं रहा और न ही हमारा शरीर हम वक्त से पहले बूढ़े हो चुके है और वक्त हम से आगे निकल चुका है हमारा यूँ रोजमर्रा का जीना अब जीना नहीं रहा ऐसा लगता कि जैसे हम हर-दिन मर रहे हो हां मेरी दादी कहती थी मुझसे वो अब भी कहती है जब मैं मिल पाता हूँ उनसे बेटा हमारे जमाने में ये भागते हुए लोग नहीं थे और न ही बेलगाम भागता समय सभी बड़े आराम से रहते थे एक साथ पक्षियों का सुबह अपने घर से आकर हमारे यहाँ रहना और शाम को वापस अपने यहाँ चले जाना बेटा तब दिखावे का कुछ भी नहीं था जो होता सामने दिखाई पड़ता था न ही हवा में इतनी गर्मी थी न ही ये मौसम इतने रूठे हुए रहते थे छायादार वृक्षों के नीचें हमारी चौपाले लगती थी हम घंटों बातें करते जो जैसी चाहे, वैसी बातें करते थे बूढ़े-बच्चे-जवान सभी कायदे में रहते थे आज जब मैं ये वक्त देखता हूँ दंग रह जाता हूँ न तो इस वक्त में किसी को रिझाने की कला है और न ही किसी से ठहर के बतियाने की ये भागा जा रहा है अनवरत, बिना किसी मकसद के सिर्फ डर के कारण, कहीं ये पीछे न छूट जाये हां

अब वक्त पहले जैसा नहीं रहा - शक्ति सार्थ्य

अब वक्त पहले जैसा नहीं रहा/ अभी कुछ ही वर्ष बीते होगें जब ये वक्त धीरे धीरे चलता था। ऐसा प्रतीत होता था कि मानो मृत्युलोक के सभी प्राणियों के पास पर्याप्त समय था- लोगों से बात करने का, उनसे मिलने का, स्वयं के लिए भी सही एंव पर्याप्त वक्त देने का। तब इतनी भाग-दौड़, शोर-शराबा नहीं था। सभी के चेहरे खिले खिले थे। उनके चेहरे पर आज जितने जिम्मेदारी वाले भाव नहीं थे। और ना ही उस समय के लोगों के पास आज जितना कुछ भी खो-जाने का इतना डर था। और ना ही वो लोग कुछ भी खो-जाने से डरते थे। उन्हे चिंता थी तो बस अपने वक्त को बरकरार रखने की। वे अपना वक्त बरकरार रखते थे। और उसे जिंदादिली से जीते भी थे। आज जब मैं उस वक्त को छोड़कर आज के इस मॉर्डन युग में प्रवेश कर चुका हूँ। तब भी हर-पल अपने आप को डरा-डरा-सा महसूस करता हूँ। मुझे डर है कि क्या होगा मेरा जब मैं जॉब-रहित हो जाऊँगा? क्या होगा मेरा जब मैं अपनी जिम्मेदारियों से दूर भाग जाऊँगा? ना जाने क्यों आज मेरे इतने विकसित मस्तिष्क में हर-वक्त डर का माहौल बना हुआ है? मुझे आज के इस वक्त ने इतना डरा कर रखा है कि मैं धोखे से भी उस डर से बाहर नहीं निकल पाता।