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भारतीय शिक्षा प्रणाली - शक्ति सार्थ्य

[चित्र साभार - गूगल]

कहा जाता है कि मानसिक विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य होता है, जिससे वह व्यक्ति अपने विकास के साथ साथ देश के विकास में भी मुख्य भूमिका अदा कर सके।

अब सवाल उठता है कि- क्या भारत की शिक्षा प्रणाली हमारे मानसिक विकास के लिए फिट बैठती है? क्या हमारे विश्वविद्यालय, विद्यालय या फिर स्कूल छात्रों के मानसिक विकास पर खरा उतर रहे है?  क्या वह छात्रों को उस तरह से शिक्षित कर रहे है जिसकी छात्रों को आवश्यकता है? क्या छात्र आज की इस शिक्षा प्रणाली से खुश है? क्या आज का छात्र रोजगार पाने के लिए पूर्णतया योग्य है?

असर (ASER- Annual Status Of Education Report) 2017 की रिपोर्ट बताती है कि 83% Student Not Employable है। इसका सीधा सीधा अर्थ ये है कि 83% छात्रों के पास जॉब पाने की Skill ही नहीं है। ये रिपोर्ट दर्शाती है कि हमारे देश में Youth Literacy भले ही 92% प्रतिशत है जो अपने आप में एक बड़ी बात है, लेकिन हमारी यही 83% Youth Unskilled भी है।

जहाँ हमारा देश शिक्षा देने के मामले में हमेशा अग्रणी रहा है, और उसमें भी दिन-प्रतिदिन शिक्षा को बढ़ावा भी दे रहा है, जिससे हमारे देश की Literacy अधिक से अधिक बढ़ जाये। लेकिन यही देश आज छात्रों की Skills पर फोकस नहीं कर पा रहा है।
हमारे देश में आज लगभग 840546 प्राथमिक विद्यालय, 429624 उच्च प्राथमिक विद्यालय, 139539 माध्यमिक विद्यालय एंव 903 विश्वविद्यालय होने के बावजूद भी छात्रों में Skill को डेवलप न कर पाना बड़े ही दुर्भाग्य की बात है। आज जब हमारे देश का छात्र अपनी शिक्षा पूर्ण करता है तब वह Unskilled होने की वजह से रोजगार नहीं प्राप्त कर पाता है। जिसके चलते देश में बेरोजगारी की समस्या बढ़ती चली गई, और चारों तरफ रोजगार पाने के लिए लंबी लंबी कतारें लगने लगी। इस देश का भविष्य तब और खतरे में देखा गया जब पीएचडी के छात्रों ने किसी चपरासी या फिर सफाई कर्मचारी बनने के लिए उनकी लंबी लंबी लाइनों में उन्हें लगना पड़ा।

हमारे देश की शिक्षा-प्रणाली में सबसे बड़ी खामी Theory Based Education है जो छात्रों को सिर्फ रटना सिखाती है, न कि उनमें किसी Skill का डेवलपमेंट कराती है। यही Theory Based शिक्षा प्रणाली 83% Student की UnSkilled की जिम्मेदार भी है। यदि हमारी शिक्षा प्रणाली Theory Based से Shift होकर Case Study या Practical Based हो जाये तो हमारे छात्रों को रटने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और न ही वे Unskilled रहेगे, बल्कि वह छात्र एक Skilled Person बनके उभरेगा, जिससे उसे रोजगार पाने वाली लाइन में खड़ा नहीं होना पड़ेगा, बल्कि रोजगार तो स्वंय उसके पास उसकी Skill की वजह से दौड़ा दौड़ा चला आयेगा।

हमारा देश आज जिस तरह से अपनी संस्कृति भूलकर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाता चला जा रहा उसी तरह से हमारे एजुकेशन सिस्टम को पाश्चात्य देशों की शिक्षा प्रणाली को अपनाना चाहिए। उनकी शिक्षा प्रणाली पूर्णतया CaseStudy या फिर PracticalStudy पर आधारित है जो छात्रों को Creative और Innovative बनाती है जिससे छात्रों की सोचने समझने की क्षमता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। आज जहाँ हमारे देश में इतने इंजीनियर हर वर्ष पढ़कर तैयार होते है जितने US और China के मिलाकर कुल इंजीनियर हर वर्ष तैयार नहीं होते है। फिर भी आप अंदाजा लगा सकते हो कि ये देश आज तकनीकी के मामले में हमारे देश से कितने मीलों आगे निकल चुके है। जिसका सिर्फ एक ही कारण है कि हमारे देश के इंजीनियरों के पास Well Filled Mind तो है लेकिन Well Formed Mind नहीं है। जो सिर्फ और सिर्फ Practical Based knowledge या फिर CaseStudy के माध्यम से ही छात्रों में जाता है।

ये हमारे छात्रों और देश के लिए बड़ी दुर्भाग्य की बात है कि छात्र अपनी एजुकेशन के लिए इन कॉलेजों में एक मोटी रकम अदा करने के बावजूद भी अपनी Skill को निखार नहीं पाता। कारण एक मात्र यही है कि ये कॉलेज वाले शिक्षा नहीं बांट रहे, बल्कि एक Business School चला रहे है जिससे ये एजुकेशन से एक मोटी रकम जमा करने के उपरांत भी उन कॉलेजों में वो शिक्षा प्रणाली या Equipment नहीं ला सकते जिससे छात्रों का भविष्य चमक सके।
यही कारण है कि हमारे देश का एक बेरोजगार छात्र हर 90 मिनट में सुसाइड करने को मजबूर है। इनकी मौत का जितना जिम्मा इन विद्यालयों पर जाता है उतना जिम्मा सरकारों पर भी जाता है। जो सबकुछ जानने के बावजूद भी ऐसे विद्यालयो पर कोई कर्यवाही नहीं करता। और न ही ऐसे कोई उचित नियम लागू करता जिससे हमारी एजुकेशन सिस्टम में कुछ बदलाव आ सके और ऐसे कुकृत्य को होने से बचाया जा सके।


© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com

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