Skip to main content

Posts

Showing posts from December, 2018

भारत मे किसानों की स्थिति - प्रमोद पाण्डेय

भारत मे किसानों की स्थिति किसान और परेशान अगर इन दोनों शब्दो पर ध्यान से गौर किया जाये तो ये, एक दूसरे के बेहद समीप और समकक्ष हैं ।अगर किसान शब्द के  अंत के दो शब्द मतलब सान देखे तो खेती करना एक पेशा और शौक माना जाता था  आजादी के पहले तक था ।आज तो यह केवल लाचारी मात्र का व्यवसाय बन के रह गया हैं ।यही कारण है कि एक पिता अपने पुत्र को डॉक्टर ,राजनेता,कारोबारी बनाना चाहता है मगर एक किसान अपने लड़के को कभी भी किसान नही बनाना चाहता है । देश की अर्थव्यवस्था से लेकर देश की राजनीति तक किसान अहम रोल अदा करता है ,यही कारण है कि पिछले कुछ समय से राजनैतिक पार्टी काँग्रेस भी किसान का नाम जोर-जोर से चिल्ला कर सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही हैं ,हालांकि इसमें ये सफल भी रही है ,कांग्रेस पार्टी ने अपने वचन पत्र में कहा - अगर हमारी सरकार बनती है तो हम दस दिन में किसानों का कर्जा माफ कर देंगे ,फिर क्या है किसानों ने इतना सुना कि तीन राज्यों की सियासत का तख्त पलट कर दिया । देश के प्रमुख कठिन कार्यो में से एक हैं, किसी योजना को किसानों तक ज्यो का त्यों पहुचाना । वैसे किसान कोई भी हो पिछले कुछ  स

हां, मैं गाँव हूँ (कविता) - शक्ति सार्थ्य

(चित्र साभार :- गूगल) हां, मैं गाँव हूँ जिसे आज हर कोई ठुकराना चाहता है यहाँ हर व्यक्ति एक ऐसी दुनिया में जाना चाहता है जो मुझे कष्ट देकर बसाई गई मैने उन कष्टों को बड़ी शालीनता सहन किया क्योंकि मैं जानता था ये तरक्की का उपासक है कुछ नया गढ़ने का प्रतीक भी मुझे अफसोस तब महसूस नहीं हुआ जब ये मुझसे अधिक मूल्यवान हो गया और न ही तब जिसने नये नये कीर्तिमान रचे मैं ही इसका प्राथमिक भरण-पोषण रहा- जब ये संघर्षरत था मैं जानता था कि मैंने आज इसका साथ नहीं दिया तो ये कभी भी भटक सकता है उस अपने मार्ग से आज जब मैं देखता हूँ इसे ये चकाचौंध से भर चुका है यहाँ ठिकाना ढूंढने के लिए लोग मुझे बीच रास्ते में ही छोड़ लम्बी-लम्बी कतार में खड़े हुए है मैं हमेशा प्रसन्न था कि ये मेरे त्याग का ही प्रमाण है मैं भ्रम में था कि- वक्त आने पर ये मुझे याद करेगा सहारा देगा हर उस मोड़ पर जब मुझे आवश्यकता होगी मेरे 'अहसानों को कभी ना चुका पाने' को कहकर- मेरे मान को बरकरार रखेगा हमेशा आज जब ये बुलंदियों को छू चुका है इसका व़जूद अब भी मेरे सिवा कुछ भी नहीं है तब भी ये मुझे बुरा-भ

एक रात की मेहमान (कहानी) - मालती मिश्रा

कहानी- एक रात की मेहमान  जेठ की दुपहरी थी बाहर ऐसी तेज और चमकदार धूप थी मानों अंगारे बरस रहे हों ऐसे में यदि बाहर निकल जाएँ तो ऐसा लगता मानो किसी ने शरीर पर जलते अंगारे रख दिए, घर के भीतर भी उबाल देने वाली गर्मी थी, अम्मा, दादी, छोटी दादी और मंझली काकी सब हमारे ही बरामदे और गैलरी में बैठे थे क्योंकि गैलरी दोनों ओर से खुली होने के कारण अगर पत्ता भी हिलता तो गैलरी में हवा आती थी, बाबूजी और छोटे काका बरामदे से उतरकर जो आम का छोटा सा पेड़ था उसी की छाँव में चारपाई पर बैठे बतिया रहे थे। मैं और मेरे तीनों छोटे भाई अम्मा के डर से सोने की कोशिश कर रहे थे, कितनी भी गर्मी हो हम तो खेल-खेल में सब भूल जाते थे पर घर के बड़े हम बच्चों की भावनाओं को समझे बिना ही जबरदस्ती 'लू लग जाएगी' कहकर सुला देते, कितना कहा था अम्मा से कि धूप में नहीं खेलेंगे, काका की घारी में खेल लेंगे पर वो भला कहाँ मानने वाली थीं, डाँट-डपट कर सुला दिया। बीच-बीच में भाई कोहनी मारता अम्मा सो गईं?  "चुप, वो बैठी हैं।" कहकर मैं आँखें मूंदकर सोने का उपक्रम करती। तभी बाहर से बातों की आवाजें पहले की अपेक्षा

स्त्री का संघर्ष और चिंतन - मनीषा जैन

                        (चित्र साभार -गूगल) स्त्री का संघर्ष और चिंतन (मीरा और श्रृंखला की कड़ियों के संदर्भ में) आज हमें यह परखने की जरूरत है कि क्या महिलाएं अपनी सामाजिक-आर्थिक रूढ़ियों से स्वतंत्र हो सकी हैं? यदि हां तो कितनी? और यदि नहीं हो सकी हैं तो क्यों? इन प्रश्नों पर विचार करते हुए हमें बार-बार अपना इतिहास याद आता है और वे ऐतिहासिक नारियां याद आती हैं। मीरा, सुभद्रा कुमारी चौहान, झांसी की रानी, महादेवी वर्मा आदि जिन्होंने सामाजिक विरोध का सामना करते हुए अपना जीवन यापन किया और नारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया। आज हमें इन्हीं से अपनी प्राणशक्ति प्राप्त करना होगी और इन्हीं के कर्मो को अपने जीवन में उतारना होगा। तभी हमें संघर्ष करने की शक्ति प्राप्त हो सकती है। अक्सर स्त्रियां सामाजिक आर्थिक रूप से संघर्ष करती हुई मुक्ति पाने के लिए आत्महत्या तक करने के उतारू हो जाती है। लेकिन यह कोई समाधान नहीं है। हम स्त्रीयों को संघर्ष करके ही जीना होगा। आज हमें मीरा जैसी सशक्त व संघर्षशील महिलाओं की जरूरत है तथा हमें आज मीरा को अपने अंतर में उतारने की जरूरत है। आज मीरा को स्त्री विम

गोरक्षा का पाखंड - ध्रुव गुप्त

गोरक्षा का पाखंड ! इस देश के हिन्दू संगठनों में गाय के प्रति हिलोरे मार रही करुणा उनकी मानवीय संवेदना की उपज नहीं है। इन संगठनों को पता है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा गोमांस निर्यातक देश है। ज्यादातर हिन्दुओं द्वारा संचालित दर्जनों लाइसेंसी कारखानों में हर दिन हज़ारों गाएं और भैंसे कटती हैं और उनके मांस को अरब और यूरोपीय देशों के नागरिकों के डाइनिंग टेबुल पर परोसा जाता है। उन्हें बंद करने की मांग कभी नहीं उठती। भाजपा शासित प्रदेश गोवा की 'धर्मनिष्ठ' सरकार अपने प्रदेश में पर्यटकों को गोमांस की कोई कमी नहीं होने देती। उत्तर-पूर्व के राज्यों में गोमांस भक्षण पर भी उन्हें एतराज़ नहीं। जो थोड़े-से हिन्दू गोमांस खाते हैं, उन्हें भी ये लोग बर्दाश्त कर लेंगे। भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक इन गोरक्षकों की संवेदना और आस्था तभी जगती है जब सामने वाला मुसलमान हो। यह मसला उनके लिए सांप्रदायिक विद्वेष पैदा कर उसे अपने राजनीतिक हित में इस्तेमाल करने का औज़ार भर है। देश के ज्यादातर लोग चाहते हैं कि पूरे देश में एक साथ गोवंश की हत्या और उनके मांस के निर्यात को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया जाय। अनुप

हमारे शरीर पर रसायनों के बढ़ते प्रभाव में विज्ञापनों की भूमिका - शक्ति सार्थ्य

                        (चित्र साभार - गूगल) वक्त बदल रहा है। चीजें बदल रही है। मेरा शरीर भी बदल रहा है। ये जो हमारा शरीर पंचतत्व से बना हुआ है, प्रकृति का एक बेमिसाल तोहफा है। अब ये हमारा शरीर प्रकृति से बनें तत्वों से नियंत्रित नही होता। इसमें बहुत सी रासायनिक क्रिया भाग लेने लगी है, हमारे पंचतत्व से बने शरीर को नियंत्रित करने के लिए। ये शरीर जो रोगमुक्त होना चाहिए, रोगयुक्त हो चुका है। इसमें बहुत से ऐसे रोग जन्म लेने को आतुर है, जिन्हें आना ही नहीं चाहिए था हमारे शरीर में। वो बिना इजाज़त के ही हमारे शरीर में प्रवेश किए जा रहे है। जिन्हें हमारा शरीर एक जमाने में प्रवेश की इजाज़त नहीं देता था। ऐसा मालूम पड़ता है कि इन रोगों का रसायनों से कोई समझौता हुआ है। जिसके चलते ये हमारे शरीर पर रसायनों के प्रयोग करने से हमसे बिना अनुमति लिए हमारे शरीर में प्रवेश करते जा रहे है। हम दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले इन रसायनों से बने उत्पाद को दोषी नहीं ठहरा सकते। क्योंकि कोई भी उत्पाद यूँ हमारी इजाज़त के बिना हमारे शरीर में प्रवेश नहीं कर सकता। हम ही हैं जो इन उत्पादों को हमारे शरीर में प्रवेश क