(PC:- Sanjay Kanti Seth) तलाश जारी है/ मैँ नहीँ था जमाने से जुदा वक्त की लकीरोँ नें मुझे अपने जैसे था खींचा, मैँ अनजान था मुझे क्या पता की ये वक्त भी शैतान था, मैँ मंझा इसी में और घुल-मिल गया इसी शैतान में जो गुनाह हुए वक्त बेवक्त- उसका हिसाब रखपाना आसान न था, क्या करता मैं- इस शैतान जहाँ में, मुझे तो ढला गया.., छला गया... मैँ हूँ, सोचता हूँ कि मेरा वजूद है- या वजूद पाने की जद्दोज़हद... बड़ा मुश्किल है अब अपने को स्थापित कर पाना, कहीँ खो-सा गया हूँ- इस भीड़ में, तलाश जारी है- क्या पता अब कब अपने आप से मिल पाऊँ ! [04-Mar-2014] - शक्ति सार्थ्य ShaktiSarthya@gmail.com
"एक प्रयास.., मुकम्मल प्रस्तुति का"