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Showing posts from 2019

तलाश जारी है (कविता) - शक्ति सार्थ्य

(PC:- Sanjay Kanti Seth) तलाश जारी है/ मैँ नहीँ था जमाने से जुदा वक्त की लकीरोँ नें मुझे अपने जैसे था खींचा, मैँ अनजान था मुझे क्या पता की ये वक्त भी शैतान था, मैँ मंझा इसी में और घुल-मिल गया इसी शैतान में जो गुनाह हुए वक्त बेवक्त- उसका हिसाब रखपाना आसान न था, क्या करता मैं- इस शैतान जहाँ में, मुझे तो ढला गया.., छला गया... मैँ हूँ, सोचता हूँ कि मेरा वजूद है- या वजूद पाने की जद्दोज़हद... बड़ा मुश्किल है अब अपने को स्थापित कर पाना, कहीँ खो-सा गया हूँ- इस भीड़ में, तलाश जारी है- क्या पता अब कब अपने आप से मिल पाऊँ ! [04-Mar-2014] - शक्ति सार्थ्य ShaktiSarthya@gmail.com

दर्द की चालीस साल लंबी कविता - ध्रुव गुप्त

दर्द की चालीस साल लंबी कविता ! अपने दौर की एक बेहद भावप्रवण अभिनेत्री और उर्दू की संवेदनशील शायरा मीना कुमारी उर्फ़ माहज़बीं रुपहले पर्दे पर अपने सहज, सरल अभिनय के अलावा अपनी बिखरी और बेतरतीब निज़ी ज़िन्दगी के लिए भी जानी जाती है। भारतीय स्त्री के जीवन की व्यथा को सिनेमा के परदे पर साकार करते-करते कब वे ख़ुद दर्द की मुकम्मल तस्वीर बन गई, इसका पता शायद उन्हें भी नहीं होगा। उन्हें हिंदी सिनेमा का ट्रेजडी क्वीन कहा गया। भूमिकाओं में कुछ हद तक विविधता के अभाव के बावजूद अपनी खास अभिनय शैली और मोहक, उनींदी, नशीली आवाज़ की जादू की बदौलत उन्होंने भारतीय दर्शकों का दिल जीता।1939 में बाल कलाकार के रूप में बेबी मीना के नाम से फिल्मी सफ़र शुरू करने वाली मीना कुमारी की नायिका के रूप में पहली फिल्म "वीर घटोत्कच' थी,लेकिन उन्हें पहचान मिली विमल राय की एक फिल्म क्लासिक फिल्म 'परिणीता से ! अपने तैतीस साल लम्बे फिल्म कैरियर में उनकी कुछ चर्चित फ़िल्में हैं - परिणीता, दो बीघा ज़मीन, फुटपाथ, एक ही रास्ता, शारदा, बैजू बावरा, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहिनूर, आज़ाद, चार दिल चार राहें, प्यार का सा

प्रेमचंद के फटे जूते - हरिशंकर परसाई

प्रेमचंद के फटे जूते: हरिशंकर परसाई प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं। पाँवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है। मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है। सोचता हूँ—फोटो खिंचवाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी—इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है। यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है। मैं चेहरे की तरफ़ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिख रही है? क्या तुम्हें इसका ज़रा भी अहसास नहीं है? ज़रा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है? क्या तु

वक्त, मैं और किस्मत - शक्ति सार्थ्य

वक्त, मैं और किस्मत/ मैं परेशां हूँ अपने आप से या वक्त के प्रकोप से या फिर किस्मत के चले जाने से यूँ जिन्दगी को जीना किसी बड़े जोखिम से कम नहीं गर वक्त पे पकड़ मजबूत हो या फिर किस्मत का साथ हो, तो कहा जा सकता है सबकुछ इस बंद मुठ्ठी में समाहित है- समाहित है वो स्वप्न, जो अक्सर हमें एक नई दुनिया में ले जाता हमारा आज क्या? कल भी सफल होता है, मैं इसी उधेड़-बुन में हूँ कि वक्त कब आयेगा अपने रंग में कि किस्मत कब लौट आयेगी अपने घर में, मैं एक सकरी सी उम्मीद पर भी औधें-मुहँ मात खाता मेरा आज, आज नहीं कल का क्या भरोसा? कुछ रूठ के चले जाते है किंतु आने की उम्मीद तो छोड़ जाते है- वक्त का रूठना किस्मत का रूठ के जाना अनहोनी को घर का सदस्य होने जैसा- ये कहा जा सकता है कि अनहोनी प्रत्यक्ष रुप से व्युत्क्रमानुपाती होती है वक्त और किस्मत के और जिसका मैं शिकार हूँ ! -शक्ति सार्थ्य [12-July-2014] खूबसूरत पेंटिंग साभार :- Mayank Chhaya सर

सुनो... कभी मिलोगी मुझसे (कविता)- नरेश गुर्जर

(चित्र साभार:- नरेश गुर्जर जी की फेसबुक वॉल से) "सुनो.... कभी मिलोगी मुझसे!? "ना....कभी नहीं! उसने दो टूक शब्दों में मना कर दिया! उसे एकबारगी तो विश्वास नहीं हुआ कि क्या यह वही है जो अभी प्रेम की बरसात कर रही थी! उसकी आंखें भर आई! "हैलो... क्या हुआ, आप सुन रहे हैं!? उसने अपने आप को संयत करते हुए मोबाइल कान से लगाया और कहा! "हैलो, हां मैं सुन रहा हूँ! "देखिए, आप ऐसा वैसा कुछ मत सोचिए! "नहीं, तुम चिंता ना करो,मैं ऐसा कुछ नहीं चाहता हूँ.. यह तो बस यूं ही निकल गया मुंह से! "हूं...ठीक है, फिर भी मैं चाहूंगी कि आप ऐसा कुछ न सोचे! "जी,कवि और प्रेमी कभी सोचते नहीं है, क्योंकि सोच कर ना तो प्रेम किया जाता है और ना ही कविताएं लिखी जाती है इसलिए सोचना छोड़ दिया है! "समझदार हैं आप! "हूं...कह सकते हैं! "ठीक है, अब फोन रखिए.. समय मिला तो फिर बात होगी! कहते हुए उसने उसकी हां ना सुने बगैर ही फोन काट दिया! उसने सर उठा कर चांद की तरफ देखा जो आज उसे अधिक ही उदास लग रहा था! दूर किसी ट्यूबवेल से गाने की आवाज आ रही थी

डायबिटीज लोगों से जीवन-वर्ष छीन रहा है

आज के दौर में डायबिटीज होना आम बात है। सिर्फ अधिक उम्र के लोग ही नहीं अपितु आज के समय में इस रोग की चपेट में बच्चे भी आ रहे है। एक समय हुआ करता था कि ये रोग चालीस-पचास के उम्र के लोगों को हुआ करता था। लेकिन बदलते जमाने और लाईफस्टाइल ने इस रोग को आम और अधिक फैलने में मदद प्रदान किया है। जिसके चलते अब इस रोग की उम्र सीमा समाप्त हो चुकी है, जो अब किसी भी उम्र में आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है। डायबिटीज के कारण:- डायबिटीज मुख्यतः हमारे शरीर में पेंक्रियाज ग्रंथि के ठीक से काम न करने या फिर खराब हो जाने से हमारे शरीर में उत्पन्न हो जाती है। दरअसल पेंक्रियाज ग्रंथि से तरह तरह के हार्मोन्स निकलते है, इन्हीं में से है इन्सुलिन और ग्लूकान। जहां इन्सुलिन का काम होता है हमारे शरीर में उत्पन्न हुए शुगर को पचाना। जिसके चलते शुगर का हमारे शरीर में बैलेंस बना रहता है। यदि हमारे शरीर में इन्सुलिन बनना बंद हो जाता है, तब हमारे शरीर में उत्पन्न हुई शुगर पच नहीं पाती है और जो हमारे खून और पेशाब में जाकर घुलना शुरू हो जाती है। जिसके कारण हमें डायबिटीज की शिकायत होनी लगती है। डायबिटीज आपको

सोशलमीडिया का प्रभाव - शक्ति सार्थ्य

गालियों का प्रयोग वही लोग करते है जो सिर्फ कमज़ोर है या फिर उनका कोई अपना मतलब होता है, मजबूत लोग हमेशा सही रणनीति और सही शब्दों का प्रयोग कर कुछ कर-गुजरने को तत्पर रहते है। इस संवेदनशील माहौल में जिस तरह से लोगों का लावा निकल कर बाहर आ रहा है, उसमें से अधिकतर अब भी अभद्र भाषा का प्रयोग करने से गुरेज़ नहीं कर रहे है। क्या हम बाकई में सभ्य समाज के सभ्य पुरुषों के वंशज है? क्या यही हमारी अखण्डता है? दोस्तों एक कहावत बचपन से सुनते आया हूँ "गरजने वाले बादल कभी बरसते नहीं" आज जिस तरह से लोग गरज रहे है, वे यही लोग है जो देश के प्रति अपनी जान न्योछावर करने का मौका मिलने पर अपने घर से बाहर तक नहीं निकलेगें। और हाँ सोशल मीडिया पर जरूर एक महायुद्ध छेड़ देंगें। जिस तरह से # कोबरापोस्ट ने कुछ शुभचिंतकों का स्टिंग ऑपरेशन कर उनकी देशभक्ति का प्रमाण प्रस्तुत किया है वो देखने योग्य है। ये लोग सोशल मीडिया पर चंद रूपयों के लिए कुछ भी लिखने को तैयार है। और हम उनके परम भक्त है जिसे वायरल करने में # SpeedySystem अपनाते हुए देश में संप्रदायिक महौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है।

E-Learning Education System

आज बहुत ही तीव्रता से विस्तारित होते इस तकनीकी युग में शिक्षा का स्तर किताबों से प्रस्थान कर E-Learning Education System की ओर Shift होता जा रहा है। इसमें कोई दोहराये नहीं है कि महंगी और बोझिल होती शिक्षा को अब किताबों एंव ClassRoom से मैनेज करना छात्रों को भारी पड़ता जा रहा है। इसलिए छात्र अपनी सुविधानुसार इस बदलते परिवेश में अपनी Education का महंगा बोझ उतारने और उसे अधिक रोमांचित करने के लिये Online Platforms पर जा रहा है। जिसे उसे एक ही Click में सभी जरूरी Topics आसानी से उपलब्ध भी हो रहे है। Internet पर बहुत सारा ऐसा Study Material उपलब्ध है जो छात्रों को सही और बेहतर शिक्षा देने में मददगार साबित हो रहा है। यहीं से छात्र अपनी अपनी क्षमता के अनुसार एक Topic को विभिन्न प्रकार से पढ़ व समझ पाता है। जिससे वह छात्र अपने विवेक का सही प्रयोग कर उस Topic में महारत भी हासिंल कर सकता है। इस बदलते दौर को देखते हुए शिक्षक भी अब Online Platform पर अपनी क्षमता के अनुसार Paid एंव Free दोनों प्रकार के Courses उपलब्ध कराने में जुटे हुए है जिससे छात्र अपनी अपनी क्षमता के अनुसार उन Courses

भारतीय शिक्षा प्रणाली - शक्ति सार्थ्य

[चित्र साभार - गूगल] कहा जाता है कि मानसिक विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य होता है, जिससे वह व्यक्ति अपने विकास के साथ साथ देश के विकास में भी मुख्य भूमिका अदा कर सके। अब सवाल उठता है कि- क्या भारत की शिक्षा प्रणाली हमारे मानसिक विकास के लिए फिट बैठती है? क्या हमारे विश्वविद्यालय, विद्यालय या फिर स्कूल छात्रों के मानसिक विकास पर खरा उतर रहे है?  क्या वह छात्रों को उस तरह से शिक्षित कर रहे है जिसकी छात्रों को आवश्यकता है? क्या छात्र आज की इस शिक्षा प्रणाली से खुश है? क्या आज का छात्र रोजगार पाने के लिए पूर्णतया योग्य है? असर (ASER- Annual Status Of Education Report) 2017 की रिपोर्ट बताती है कि 83% Student Not Employable है। इसका सीधा सीधा अर्थ ये है कि 83% छात्रों के पास जॉब पाने की Skill ही नहीं है। ये रिपोर्ट दर्शाती है कि हमारे देश में Youth Literacy भले ही 92% प्रतिशत है जो अपने आप में एक बड़ी बात है, लेकिन हमारी यही 83% Youth Unskilled भी है। जहाँ हमारा देश शिक्षा देने के मामले में हमेशा अग्रणी रहा है, और उसमें भी दिन-प्रतिदिन शिक्षा को ब

तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड (कहानी) - तरुण भटनागर

तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड (कहानी)/                              कहते हैं यह एक सच वाकया है जो यूरोप के किसी शहर में हुआ था।          बताया यूँ गया कि एक बुजुर्ग औरत थी। वह शहर के पुराने इलाके में अपने फ्लैट में रहती थी। शायद बुडापेस्ट में, शायद एम्सटर्डम में या शायद कहीं और ठीक-ठीक मालुमात नहीं हैं। पर इससे क्या अंतर पडता है। सारे शहर तो एक से दीखते हैं। क्या तो बुडापेस्ट और क्या एम्सटर्डम। बस वहाँ के बाशिंदों की ज़बाने मुख्तलिफ हैं, बाकी सब एक सा दीखता है। ज़बानें मुख्तलिफ हों तब भी शहर एक से दीखते रहते हैं।             वह बुजुर्ग औरत ऐसे ही किसी शहर के पुराने इलाके में रहती थी, अकेली और दुनियादारी से बहुत दूर। यूँ उसकी चार औलादें थीं, तीन बेटे और एक बेटी, पर इससे क्या होता है ? सबकी अपनी-अपनी दुनिया है, सबकी अपनी अपनी आज़ादियाँ, सबकी अपनी-अपनी जवाबदारियाँ, ठीक उसी तरह जैसे खुद उस बुजुर्ग औरत की अपनी दुनिया है, उसकी अपनी आज़ादी। सो साथ रहने का कहीं कोई खयाल नहीं। साथ रहना दिक्कत देता है। इससे जिंदगी में खलल पडता है। पर उम्र को क्या कीजिये। वह बढती रहती है और एक समय के बा

अधिकारों का राष्ट्रीय पर्व : गणतंत्र दिवस

अधिकारों का राष्ट्रीय पर्व : गणतंत्र दिवस आज २६ जनवरी है। और इस दिन को हम सब गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। क्योंकि आज ही के दिन हमारे देश में नागरिकों के अधिकारों के हित में संविधान को लागू किया गया था। जब हमारा देश १५ अगस्त १९४७ को आज़ाद हुआ था तब हमारे देश का अपना कोई मौलिक संविधान नहीं था। हमारे देश में नागरिकों के अधिकार के लिए संविधान निर्माण कार्य की एक कमेटी का गठन किया गया। जिसकी अध्यक्षता की कमान डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने संभाली। और अंततः दो वर्ष ग्यारह माह अठारह दिन के तत्पश्चात २६ जनवरी १९५० को हमारे देश में संविधान को लागू कर दिया गया। जिसके परिणामस्वरूप हम-सब तब से लेकर आजतक २६ जनवरी को राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते चले आ रहे है। आज इस पर्व की महत्ता सिर्फ इतनी सी रह गई है कि हम इस दिन केवल और केवल अपनी औपचारिकता मात्र दिखाकर भारत की आज़ादी के शिखर पुरुषों का गुणगान करके, उन्हे सिर्फ अपने लाभकारी हितों के लिए ही याद करना है। जिसके चलते उनकी साख भी बनी रहे और नागरिकों के अधिकारों का भी मुख्य उद्देश्य भी नागरिकों को पता भी न चलने पाये। कायदे में इ

भारत में दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' की हुई घोषणा

प्रत्येक वर्ष दिए जाने वाले ‘भारत रत्न’ पुरस्कार की घोषणा की जा चुकी है। जिसकी जानकारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ट्विटर के जरिये दी। इस बार भारत रत्न तीन लोगों को दिया जायेगा जिसमें पूर्व राष्ट्रपति एंव कांग्रेस नेता रहे प्रणब मुखर्जी के साथ-साथ नानाजी देशमुख और भुपेन हजारिका को प्रदान किया जाएगा। ‘भारत रत्न’ भारतवर्ष का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की प्रशंसा करते हुए लिखा, “प्रणब दा हमारे समय के बेहतरीन राजनेता हैं। उन्होंने दशकों से इस देश की सेवा निस्वार्थ और अथक भाव से की है जिससे हमारे देश की बेहतरी पर उनकी एक अमिट छाप है। उनकी बुद्धिमत्ता और विद्वता का कोई सानी नहीं। आह्लादित हूँ कि उन्हें ‘भारत रत्न’ दिया जा रहा है।” Pranab Da is an outstanding statesman of our times. He has served the nation selflessly and tirelessly for decades, leaving a strong imprint on the nation's growth trajectory. His wisdom and intellect have few parallels. Delighted that he has been conferred the Bharat Ratna. — Naren

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिए जाने से इन दिनों फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड चर्चा में हैं

[फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड प्राप्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी] इन दिनों फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड चर्चा में है। क्योंकि इसके चर्चा में होने की वजह ये अवॉर्ड हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को दिये जाने से है। जिसे उन्हें अथक ऊर्जा के साथ भारत का उत्कृष्ट नेतृत्व करने और निस्वार्थ सेवा करने के लिए प्रदान किया गया है। किंतु इस अवॉर्ड के मिलने बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी जी ने प्रधानमंत्री जी की चुटकी लेते हुए एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लिखा है कि- "मैं हमारे प्रधानमंत्री को विश्वप्रसिद्ध कोटलर अवॉर्ड जीतने की बधाई देता हूँ। वास्तव में यह इतना प्रसिद्ध है कि इसमें कोई ज्यूरी नहीं है और यह पहले कभी किसी को दिया भी नहीं गया और इसको एक अनसुनी अलीगढ़ कंपनी का सहयोग हासिल है। इवेंट साझेदार पतंजलि और रिपब्लिकन टीवी है।" बात यहीं खत्म नहीं हुई, राहुल गांधी के इस ट्वीट का जबाव देते हुए कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने उन्हें आड़े हाथ लिया और उन्होंने ट्वीट में कहा- "काग्रेंस प्रमुख का परिवार दूसरों से पुरस्कृत होने के