जहां स्त्री व्यक्ति नहीं, देह है ! देश के कोने-कोने से जिस तरह नन्ही बच्चियों और किशोरियों के साथ सामूहिक बलात्कार और उनकी नृशंस हत्याओं की खबरें आ रही हैं, उससे पूरा देश सदमे में है। कभी आपने सोचा है कि आज देश में बलात्कार के लिए फांसी सहित कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान होने के बावज़ूद स्थिति में कोई बदलाव क्यों नहीं आ रहा है ? शायद बलात्कार को देखने का हमारा नजरिया और उसकी रोकथाम के प्रयासों की हमारी दिशा ही गलत है। हम स्त्रियों के प्रति इस क्रूरतम व्यवहार को सामान्य अपराध के तौर पर ही देखते रहे हैं, जबकि यह सामान्य अपराध से ज्यादा एक मानसिक विकृति, एक भावनात्मक विचलन है। दुर्भाग्य से इस विकृति या विचलन को बढ़ावा देने वाली वज़हों पर किसी का ध्यान नहीं है। पुलिस में तीन दशक के कार्यकाल में मेरा अपना अनुभव रहा है कि देश में नब्बे प्रतिशत बलात्कार की घटनाओं के लिए अश्लील ब्लू फिल्में और नशा ज़िम्मेदार हैं। बलात्कार की मानसिकता बनाने में स्त्री को भोग और मज़े की चीज़ के रूप में परोसने में ऐसी फिल्मों की बड़ी भूमिका है। स्त्रियों के साथ यौन अपराध पहले भी होते रहे थे, लेकिन इन फिल्मों की
"एक प्रयास.., मुकम्मल प्रस्तुति का"