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कर्माबक्श पत्रिका


कर्माबक्श एक साहित्यिक एंव सामाजिक पत्रिका है जो हर माह प्रकाशित होती है।

पत्रिका के कुछ अंक पीडीएफ में नीचे टंकित है जिसे आप डाउनलोड करके पत्रिका को भलिभांति एंव इसके प्रकाशन का उद्देश्य समझ सकते है। आप यहाँ पत्रिका की अधिक से अधिक जानकारी एंव रचना सहयोग कैसे करेंं आदि जानकारी भी प्राप्त कर सकते है।






कर्माबक्श पत्रिका अक्टूबर-2018 अंक PDF फाइल

कर्माबक्श पत्रिका नवंबर-2018 अंक PDF फाइल

कर्माबक्श पत्रिका जनवरी-2019 अंक PDF फाइल


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संपादक : डॉ. देवशरण सिंह, मो. 9427114248
सह-संपादक : शक्ति सार्थ्य, मो. 7048866496

Website - karmabaksh.org

Email -
karmabaksh@gmail.com
shaktisarthya@gmail.com

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ब्रह्मराक्षस गजाननमाधव मुक्तिबोध   शहर के उस ओर खंडहर की तरफ परित्यक्त सूनी बावड़ी के भीतरी ठंडे अँधेरे में बसी गहराइयाँ जल की... सीढ़ियाँ डूबी अनेकों उस पुराने घिरे पानी में... समझ में आ न सकता हो कि जैसे बात का आधार लेकिन बात गहरी हो। बावड़ी को घेर डालें खूब उलझी हैं, खड़े हैं मौन औदुंबर। व शाखों पर लटकते घुग्घुओं के घोंसले परित्यक्त भूरे गोल। विद्युत शत पुण्य का आभास जंगली हरी कच्ची गंध में बसकर हवा में तैर बनता है गहन संदेह अनजानी किसी बीती हुई उस श्रेष्ठता का जो कि दिल में एक खटके सी लगी रहती। बावड़ी की इन मुँडेरों पर मनोहर हरी कुहनी टेक बैठी है टगर ले पुष्प तारे-श्वेत उसके पास लाल फूलों का लहकता झौंर - मेरी वह कन्हेर... वह बुलाती एक खतरे की तरफ जिस ओर अंधियारा खुला मुँह बावड़ी का शून्य अंबर ताकता है। बावड़ी की उन गहराइयों में शून्य ब्रह्मराक्षस एक पैठा है, व भीतर से उमड़ती गूँज की भी गूँज, हड़बड़ाहट शब्द पागल से। गहन अनुमानिता तन की मलिनता दूर करने के लिए प्रतिपल पाप छाया दूर करने के लिए, दिन-रात स्वच्छ करने - ब्रह्मराक्षस घि

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