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Showing posts from March, 2017

जब वो दफ्न ही हो गया यादों में : शक्ति सार्थ्य

जब वो दफ्न ही हो गया यादों में क्या ध्यान जाता हमारा वादों में हम उनकी हर किसी चाहत पर नहीं थे फिदा वो तो हसरतों का अहसास घुला था फिज़ाओं में नामंजूर थी उनकी सहमति हमारे इश्क़ पर उन्हें तो रहना ही था दूर हमसे गलियारों में [माहौल ही नहीं बन पाया ऐसा कि वो रह पाता हमारे दिल-ए-दीदारों में] ©शक्ति सार्थ्य shaktisarthya@gmail.com

ये दुनिया अगर मर भी जाए तो क्या है : ध्रुव गुप्त

ये दुनिया अगर मर भी जाए तो क्या है ! कल गुजरात के दहोद जिले में घटी एक वीभत्स घटना ने भीतर तक दहला दिया है। आपसी विवाद का बदला लेने के लिए छह लोगों ने अपहरण कर एक चलते वाहन में बेबस पिता की आंखों के आगे उसकी पंद्रह और तेरस साल की दो बेटियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया। गंभीर हालत में दोनों बच्चियों का इलाज अस्पताल में चल रहा है।गुजरात में ही क्यों, यह घटना देश के किसी कोने में भी घट सकती है। घटती भी है। हमेशा से पुरुषों के बीच के संघर्ष की कीमत अपनी देह, आत्मा और स्वाभिमान के तौर पर ज्यादातर औरत ही चुकाती रही है। जबतक शत्रु के घर की स्त्रियों की इज्जत के परखच्चे न उड़ा दिए जायं, पुरुषों के विजय के दर्प और सुख अधूरे रह जाते हैं। ऐसी ख़बरें अखबार के किसी कोने में सिमट जाती हैं। न लिखने वाले की संवेदना जगती है और न पढ़ने वाले की। किसी को गुस्सा नहीं आता। कहीं कोई हंगामा बरपा नहीं होता। किसी को यह ख्याल भी नहीं आता कि ऐसी घटना उसकी बच्चियों के साथ घटे तो ख़ुद उसपर क्या गुजरेगी ? ऐसा नहीं है कि ऐसी घटनाएं आज के दौर की विकृतियाँ हैं। सदा से पुरुष अहंकार और वासना का चेहरा ऐसा ही रहा है। प्राच

व्यंग : चुनाव बाद मीटिंग

अखिलेश बाबू अपने घर पर लखनऊ में राहुल बाबा के साथ चुपचाप चाय पी रहे थे। माहौल शांत था। डिम्पल भौजी भी वहीं पास बैठी थीं। अखिलेश बाबू ने राहुल बाबा से बोला- "राहुल बाबा, बहुत बेचैनी-सी हो रही है, पता नहीं कल क्या होगा..??" "अरे इसमें डरना क्या है टीपू बाबू, मेरे साथ तो न जाने कितनी बार ऐसा हुआ है चुनाव के वक़्त कि सोचा कुछ, और हो गया कुछ..हेहेहे..!!" - राहुल बाबा हँसते हुए बोले। "राहुल बाबा, आपको तो आदत हो गयी है, पर मेरा तो यह समझिये पहला ही युद्ध है..वह भी बिना घर के बुजुर्गों के, सो दिल धक-धक कर रहा है..!!"- अखिलेश बाबू बोले.. राहुल बाबा कॉन्फिडेंस से बोले -"अरे बोल्ड बनिए टीपू बाबू..बोल्ड..!!" अब अखिलेश जी बोले- "राहुल बाबा, बोल्ड बनने के चक्कर में कहीं क्लीन बोल्ड मत हो जाए हम लोग..!!" "डिंपल, जरा मेरा मोबाइल पकड़ाना.. बुआ को फ़ोन लगाता हूँ..!!" डिंपल भौजी ने राहुल बाबा की ओर बुरा-सा मुंह बनाते हुए अखिलेश भैया को फ़ोन थमा दिया। "हेल्लो, बुआ..प्रणाम..दिस इज़ योर भतीजा अखिलेश..!!" "खुश रहो, आबाद रहो..क्या ब

इरोम : एक नायिका की चूक | शायक आलोक

इरोम : एक नायिका की चूक ________________________________ इरोम का सौ से कम वोट पाना अप्रत्याशित नहीं है. अप्रत्याशित यह है कि उन्होंने अब कभी चुनाव न लड़ने की कसम खा ली. यह उनकी नई चूक है. *** मैंने 30 मई, 2014 को एक टिप्पणी में कहा था कि ‘’आप मुझे उजबक मान सकते हैं अगर मैं कहूँ कि इरोम शर्मीला के दिमाग के पेंच ढीले हैं .. उनका संघर्ष भी दिशाहीन है और प्रतिरोध की उनकी समझ भी .. जो वे इतने सालों से अपने साथ करती रही हैं वह दोयम दर्जे के अपराध के सिवा कुछ नहीं .. ‘’ जाहिर तौर पर वे वे प्रतीकात्मक संघर्ष की नायिका रही हैं तो लोग उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं. कुछ लोगों को चिढ़ हुई मेरी टिप्पणी से. मैंने बात स्पष्ट करते हुए अगले दिन यह कहा – ‘’ लोग उम्मीद करते हैं कि फेसबुक पर ही मैं पूरा रिसर्च ग्रंथ लिखकर उन्हें पढ़ा दूँ .. इरोम शर्मीला पर मेरी टिप्पणी पर यूँही कुछ लोग इमोशनल हो गए .. होना यह चाहिए कि भैया शायक ने कुछ बात कही तो उसे गुना जाय .. अफ्स्पा कानून क्या है वह पढ़िए .. 14 साल में इरोम के आन्दोलन की उपलब्धियां क्या रही वह देखिए .. इरोम ने ही कहा था कि मैंने गांधी के तर

वो उर्दू वाली गर्ल : कहानी | शक्ति सार्थ्य

वो उर्दू वाली गर्ल/कहानी बड़ी तादात में लोगों की भीड़ जमा देख मेरी आंखो में चमक आ चुकी थी। मेरा सलेक्शन शहर की एक बड़ी टेलीकॉम कंपनी में हो चुका था। ये पहली बार नहीं था जब मैं अपने साथ हुए इस इत्तफाक से एक बड़ी ऊँचाई पर था। ऐसा कई बार हो चुका था मेरे साथ। ऐसा होना मैं आज तक नहीं समझ पाया था। और ये भी एक अजीब इत्तेफाक था। आज दफ्तर में मेरा पहला दिन था। सारा स्टॉफ मेरे स्वागत के लिए मेन दरवाजे पर फूल-मालायें हाथ में लिए खड़ा था। मैं थौड़ा नर्वस था। लेकिन साथ ही साथ मैं अपने आपको गर्व से भरा हुआ महसूस कर रहा था। जोरदार तालियों के साथ कंपनी के एडवाईजर मैनेजर ने मेरा स्वागत किया था। "आपका स्वागत है टेलीकॉम की दुनिया में मिस्टर रोहन" एडवाईजर मैनेजर ने कहा। "जी शुक्रिया सर" मैंने होंठों द्वारा जबरन ढकेले गये अपने इन शब्दों से दफ्तर में प्रवेश किया। दफ्तर का माहौल काफी खुश्नुमा था। मेरी अपनी दफ्तर की टेबेल से कुछ ही दूरी पर एक गार्डन था। उसकी सभी प्राकृतिक रचनायें आसानी से दिखाई दे सकती थी। मैं देख सकता था कि कैसे सुबह के खिलखिलाते हुए सुगंधित फूल दोपहर में अपनी मूर्छित