***
आदतन मैं गुस्सैल हूं
किंतु प्रेम के लिए एक कोना भी सुरक्षित रखा है मैंने
किंतु प्रेम के लिए एक कोना भी सुरक्षित रखा है मैंने
उस कोने तक पहुंचने से पहले ही
आदतन गुस्सा मुझे शर्म की अनुभूति दे जाता है
आदतन गुस्सा मुझे शर्म की अनुभूति दे जाता है
हां कोशिश में लगा हूं,,, कि...
मेरा आदतन कभी सोता रह जाये
और फिर मेरा कोना बाजी मार जाये..,
और फिर मेरा कोना बाजी मार जाये..,
***
'रुको'
जब पहली बार तुम्हारे मुखरबिन्दु से
ये शब्द मेरे कानों में पड़े
जब पहली बार तुम्हारे मुखरबिन्दु से
ये शब्द मेरे कानों में पड़े
सच कहूं मैं सहम गया था
उस वक्त हमारे जो हालात थे
वो इन शब्दों को सहन करने में असमर्थ थे
फिर न जाने क्यों मैं उस पल ठहर-सा गया
वो इन शब्दों को सहन करने में असमर्थ थे
फिर न जाने क्यों मैं उस पल ठहर-सा गया
तुम जो चाहती थी
वही हुआ-
मैं बस अवाक् था,,
वही हुआ-
मैं बस अवाक् था,,
और वो तुम्हारे चेहरे की खिलखिलाहट
अब भी ज़हन में उतर-उतर के अठखेलियां खेलती है,
सच में हम उस वक्त खुशनसीब थे
और वो वक्त भी कितना हसीन था
और वो वक्त भी कितना हसीन था
***
कोई तो होगा जिसने तुम्हें भड़काया होगा मेरे बारे में
अभी तुम बस इतना सुनलो, कि
उसे ढूंढ कर लाओ अभी इसी वक्त
मैं जानना चाहूंगा कि आखिर उसकी भड़काहत में ऐसी क्या बात थी जो मेरी आंखों में भी नहीं थी
अभी तुम बस इतना सुनलो, कि
उसे ढूंढ कर लाओ अभी इसी वक्त
मैं जानना चाहूंगा कि आखिर उसकी भड़काहत में ऐसी क्या बात थी जो मेरी आंखों में भी नहीं थी
क्या यार तुम भी ऐसे भड़कते रहोगे,,
हम विश्वासी थे, पर क्या हुआ?
मैंने थोड़ी देरी क्या लगा दी, तुम तो?
अरे छोड़ो मैं आज इस मुद्दे पर बात ही नहीं करना चाहता
मुझे पता है तुम्हारी जिद, तुम मानने वाली में से नहीं हो
हां मुझे कुछ कहना बाकी रह गया था उस दरमियान-
तुम न मुझसे भी ज्यादा संवेदनशील थी,
शायद यही वजह रही हो कि तुम संवेदना में बह गई हो...
शायद यही वजह रही हो कि तुम संवेदना में बह गई हो...
खैर हमारे मिलन का अफसोस नहीं है मुझे
बस फ़िक्र रहती है तुम्हारी
तुम शायद फिर न कोई ऐसा कदम उठा लो
बस फ़िक्र रहती है तुम्हारी
तुम शायद फिर न कोई ऐसा कदम उठा लो
सुनो, इस बार तुम ध्यान मत देना,,
कोई नहीं चाहता कि तुम खुश रहो !
कोई नहीं चाहता कि तुम खुश रहो !
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उस दिन मेरा हिसाब पूरा होगा
जब मैं वापस आने की दुआ नहीं करूंगा
जब मैं वापस आने की दुआ नहीं करूंगा
ये वक्त थोड़ा अजीब है
और मैं इसे सह सकता हूं
और मैं इसे सह सकता हूं
तुम थोड़ा ये समझ लेना कि,
बस मेरी चाहतों पर शक मत करना
बस मेरी चाहतों पर शक मत करना
मैं लौटने की सारी उम्मीदें भुला चुका हूं
तुम चाहों तो मुझे भी भुला देना..,
तुम चाहों तो मुझे भी भुला देना..,
सबकुछ इतना आसान नहीं रहा अब
जितना हमने हमेशा समझा था
जितना हमने हमेशा समझा था
[किंतु हम भीड़ से हमेशा अलग रहे
यही मेरा अभी तक का हासिल है]
यही मेरा अभी तक का हासिल है]
© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com
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