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Showing posts from August, 2017

सफलता हमारी सोंच की ही एक उपज है : शक्ति सार्थ्य

सफल होना हर किसी का स्वप्न होता है चाहे वह कैसी भी सफलता क्यों न हो ? समाज का हर वो व्यक्ति जो कहीं न कहीं इस सोंच से जुड़ा रहता है कि धन आदि अर्जित करना ही सफलता का एक बड़ा उदाहरण है। निसंदेह वह गलत सोंचता है। बल्कि सफलता इससे कोसों दूर कहीं एक ऐसी जगह पर अडिग है जहां पर वह पहुंचना तो चाहता है किंतु समझ ही नहीं पाता और सारा श्रेय धन अर्जन की स्थिति को दे बैठता है। धन अर्जित करना एक तरह की बिशेष कला जिसका सफलता से कहीं दूर-दूर तक कोई संबंध ही नहीं है। धन अर्जन करते करते वह व्यक्ति एक तरह की ऐसी आदत बल्कि हम इसे इगो भी कह सकते को डेवलप कर लेता हैं जो समाज को धन का बुनियादी ढांचा समझ लेता हैं और उसे ही सफलता का नाम देने से कतई नहीं चूंकता। वो इस बात के भ्रम में हैं कि वह सबसे सफल व्यक्ति है। हां धनी जरूर है वह। सफलता यूं ही हाथ नहीं लगती। इसे पाने के लिए हमें एकाग्रचित होकर जुटना होता है, अपने उस लक्ष्य की ओर जो हमने सफल होने के लिए निर्धारित किया है। शायद ये लक्ष्य इतना विशाल और जटिल होता है कि हमारी एकाग्रता हर-पल हर-मोड़ पर डगमगाने लगती है। जो डट कर सामना करते हैं शायद ही वि