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तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड (कहानी) - तरुण भटनागर

तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड (कहानी)/
         

         
         कहते हैं यह एक सच वाकया है जो यूरोप के किसी शहर में हुआ था।
         बताया यूँ गया कि एक बुजुर्ग औरत थी। वह शहर के पुराने इलाके में अपने फ्लैट में रहती थी। शायद बुडापेस्ट में, शायद एम्सटर्डम में या शायद कहीं और ठीक-ठीक मालुमात नहीं हैं। पर इससे क्या अंतर पडता है। सारे शहर तो एक से दीखते हैं। क्या तो बुडापेस्ट और क्या एम्सटर्डम। बस वहाँ के बाशिंदों की ज़बाने मुख्तलिफ हैं, बाकी सब एक सा दीखता है। ज़बानें मुख्तलिफ हों तब भी शहर एक से दीखते रहते हैं।
            वह बुजुर्ग औरत ऐसे ही किसी शहर के पुराने इलाके में रहती थी, अकेली और दुनियादारी से बहुत दूर। यूँ उसकी चार औलादें थीं, तीन बेटे और एक बेटी, पर इससे क्या होता है ? सबकी अपनी-अपनी दुनिया है, सबकी अपनी अपनी आज़ादियाँ, सबकी अपनी-अपनी जवाबदारियाँ, ठीक उसी तरह जैसे खुद उस बुजुर्ग औरत की अपनी दुनिया है, उसकी अपनी आज़ादी। सो साथ रहने का कहीं कोई खयाल नहीं। साथ रहना दिक्कत देता है। इससे जिंदगी में खलल पडता है। पर उम्र को क्या कीजिये। वह बढती रहती है और एक समय के बाद जिस्म साथ नहीं देता। वह इतना कमज़ोर हो जाता है मानो बीमार हो। एक दो बार तो उस बुजुर्ग औरत की तबियत इस कदर खराब हुई कि वह अपने फ्लैट में अकेली ही पडी रही। उसमें उठ बैठने तक की ताकत न रही। उसने डॅाक्टर को फोन पर ही बताया। डॉक्टर ने फोन पर ही उसे दवायें बता दीं। उसने फोन से ही दवायें मंगा लीं। देर रात उसकी तबियत इतनी खराब हो गई कि उसे ऐसा लगा मानो वह मर जायेगी। पर उसने किसी को फोन नहीं किया। बस पडी रही। थोडी-थोडी देर बाद सरकार के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेण्ट का एक रिकॉर्डेड फोन उसके फोन पर सुनाई देता - आप ठीक तो हैं न - और वह हाँ या हूँ में आवाज़ कर देती। तन्हाई में सरकार के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेण्ट का फोन राहत देता है। सरकार ने इतनी सहूलियत दे रखी है कि किसी की मदद की जरुरत ही नहीं पडती। उसे पल भर को खयाल आया कि वह फोन पर कह दे कि वह मर गई। थोडी सी झुंझलाहट, थोडा सा रंज, थोडा दर्द और थोडी सी बेबात आ जमी यह तन्हाई जाने क्या था कि वह ऐसा कहना चाहती थी, पर जानती थी कि ऐसा कहना ठीक न होगा। 
            कभी-कभी उसका दूसरे नंबर का बेटा और इकलौती बेटी उसे देखने आते हैं। कभी-कभी क्या बल्कि उनके आने के दिन तय हैं। माह के दूसरे गुरुवार को बेटा आता है और तीसरे शनिवार को बेटी। पर वह अक्सर भूल जाती कि आज कौन सा दिन है। अगर याद रहता तो वह उनका इंतज़ार करती। अगर याद न रहता तो इंतज़ार न करती। एक बार तो यह भी हुआ कि वह अपनी बेटी को पहचान भी न पाई। बेटी यह सोचकर आई थी कि आज तो माँ उसका इंतज़ार कर रही होगी। पर यह क्या, वह तो उसे पहचान ही नहीं रही थी। उसने उसे कुछ पुरानी तस्वीरें दिखाईं जिसमें वह और वे समंदर के किनारे खडे हैं, पर वे तब भी बेटी को पहचान न पाईं। बेटी ने उनके बिस्तर के पास एक फ़ोन लगवा दिया। फोन में एमरजेंसी बटन थे। लाल बटन दबाने से ऐंबुलेंस, पीला दबाने से फायर ब्रिगेड और हरा दबाने से सीधे-सीधे बेटी को फोन। बेटी ने सरकार के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेण्ट को भी माँ के हालात के बारे में बताया। उन्ही की सलाह पर यह फोन उसने लगवाया था।
        पर उस दिन। उस दिन वह फोन भी काम न आया। वे बुरी तरह से गश खा गईं। तेज़ ठण्ड थी और उन्हें जोर का चक्कर आया था। ज़मीन पर पडे-पडे उन्होंने फोन उठाया। उन्हें यह तो याद था कि यह फोन है, पर बाकी कुछ भी नहीं। उन्हें यह भी याद न रहा कि वे कहाँ हैं। कब से हैं। बस इतना ही खयाल आया कि यह फोन है। इसके बटन दबाओ तो दूसरी तरफ किसी और से बात होती है। उनके सिर से खून निकल रहा था। उन्हें लाल, पीला और हरा बटन समझ न आया। उन्होंने फोन के नंबरों वाले बटन दबाये। बेतरतीब। एक बार, दो बार, तीन बार....।
          स्टीव का जब सैल फोन बजा तब वह एक कैफेटेरिया में बैठा था। रात के आठ बज रहे थे।
               ‘ हैलो...।’
               ‘मेरा नाम क्रिस्टीना है। मैं बहुत बुजुर्ग हूँ। मैं गिर पडी हूँ।’
               ‘ ओह। क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूँ।’
               ‘ मुझे यहाँ से निकाल लो। मेरे सिर से खून बह रहा है।’
               ‘ आप घबराये नहीं आप कहाँ पर हैं, यह बतायें।’
               ‘ मुझे याद नहीं मैं कहाँ पर हूँ।’
            क्रिस्टीना की आवाज़ लडखडा रही थी।
                ‘ मुझसे बात करते नहीं बन रहा। आप मेरी मदद करो।’
            क्रिस्टीना जोर-जोर से हाँफ रही थी।
                 ‘ अच्छा यह बताओ आपको आपके आसपास क्या दीख रहा है।’
                 ‘ दीवार पर एक खिडकी है। आयताकार खिडकी। काँच वाली।’
                 ‘ और कुछ....।’
              क्रिस्टीना ने फिर कुछ नहीं कहा। बस फोन पर उसकी साँसों की आवाज़ सुनाई देती रही। स्टीव कुछ देर तक फोन पर हैलो-हैलो बोलता रहा। पर जब साँसों की आवाज़ के अलावा और कुछ भी सुनाई नहीं दिया तो वह थोडा बेचैन हो गया।
              स्टीव बेरोजगार है। वह छब्बीस साल का है। उसने कुछ दिनों तक काम की तलाश की। रात दिन वह काम तलाशता रहा। पर इधर हफ्ते भर से वह काम तलाश कर थक गया है। अब वह फुर्सत में है। उसने काम तलाशने का काम मुल्तवी कर दिया है।
               कैफेटेरिया के काँच के पार एक स्ट्रीट है। दूधिया मरकरी की रौशनी में जगमगाती। पत्थरों वाली स्ट्रीट। काँच के ठीक बाहर स्ट्रीट से सटा एक पाथ-वे है। पाथ- वे पर अभी-अभी तीन बच्चे भागते हुए खिडकी के सामने से निकले थे। काँच के कारण उनकी आवाज़ सुनाई नहीं दी। स्टीव उसी तरफ देख रहा था। हल्की-हल्की बर्फ गिर रही थी। लैंपपोस्ट के नीचे एक अश्वेत लडका खडा था, लबादे से कपडे पहरे, कानों में वॉकमैन लगाये, कुछ सुनता और सुने की धुन पर पैर-हाथ हिलाता सा।
                  ‘ मुझे एक कॉल करनी है।’
              स्टीव ने कैफेटेरिया के काउण्टर पर बैठे शख्स से कहा। काउण्टर वाले शख्स ने स्टीव के हाथ में सैल फोन देखा। स्टीव ने देखा कि वह उसका सैल फोन देख रहा है। जब पास सैल फोन हो तो कोई क्यों काउण्टर के लैण्डलाइन से फोन करेगा भला। स्टीव उसे नहीं बताना चाहता था कि उसके सैल फोन पर एक बुजुर्ग औरत है। बल्कि यूँ कहें कि उसके सैल फोन पर एक बुजुर्ग औरत की साँसों की आवाज़ सुनाई दे रही है। वह उसे नहीं काटना चाहता।
                   ‘ मैं कॉल के पैसे दूँगा।’
              स्टीव ने कहा। उसके पॉकेट में छह यूरो हैं। दो यूरो की उसने कॉफी पी है। कुछ पैसे वह कॉल पर खर्च कर सकता है।
                   ‘ हैलो।’
                   ‘ हैलो।’
                  ‘ मेरा नाम स्टीव है मुझे आपकी मदद चाहिए।’
              फोन के दूसरी तरफ शहर की फायर ब्रिगेड सर्विस का हैड था। काउण्टर वाला शख़्स अपने काम में मगन हो गया। किसी का फोन सुनना बेअदबी है। किसी को किसी का फोन न सुनना चाहिए। इस मुल्क में कोई किसी के काम में दख़ल नहीं देता। यहाँ तक कि किसी को देखना खासकर लगातार देखना भी गलत माना जाता है। नज़र बाजी करना तो एकदम ही गलत है। लोगों को लगता है कि ऐसा करने से दूसरा आदमी डिस्टर्ब हो सकता है। अभी कल ही इस कैफेटेरिया से लगी स्ट्रीट से तीन औरतें गुजरी थीं। तीनों टॉपलैस थीं। किसी ने भी उनकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा।
                          ‘ इस तरह तो किसी को ढूँढ पाना मुश्किल है।’
                फायर ब्रिगेड स्टेशन का हैड फोन पर स्टीव से कह रहा था।
                          ‘ हम उस बुजुर्ग औरत को बचा सकते हैं।’
                          ‘ मैं तुम्हारे इरादों की तारीफ करता हूँ। यह बडे ही सवाब का काम है। पर यह आसान काम नहीं लग रहा।’
                          ‘ उसने बताया था कि वह जिस कमरे में है, उसमें बडी आयताकार खिडकी है। काँच वाली।’
                          ‘ हाँ पर इससे क्या होता है ?’
                          ‘ ऐसी खिडकियाँ शहर के पुराने इलाके में हैं। वहाँ के घरों और फ्लैट्स में।’
                          ‘ एकदम सही।’
                          ‘ आपके पास कितनी फायर ब्रिगेड हैं।’
                          ‘ कुल तेरह।’
                          ‘ क्या आप सबको काम पर लगा सकते हैं।’
                          ‘ हाँ। अभी सभी स्टेशन पर खडी हैं। बहुत दिनों से खाली खडी हैं। इस बहाने वे भी काम पर लग जायेंगी।’
                          ‘ आप अगर उन सबको पुराने शहर रवाना कर दें। पुराने शहर के मुख्तलिफ इलाकों में और उनको बता दें कि वे सब अपना फायर अलार्म बजाते रहें।’
                          ‘ उससे क्या होगा ?’
                          ‘ मेरे सैल फोन पर उस बुजुर्ग औरत का फोन होल्ड पर है। सैल फोन में इतना पैसा है कि अभी वह दो-चार घण्टे होल्ड पर रह सकता है।’
                           ‘ उससे क्या होगा ?’
                          ‘ हो सकता है कि उन फायर अलार्म में से कोई अलार्म मेरे सैल फोन पर सुनाई दे जाये और उससे उस बुजुर्ग औरत के फ्लैट का कुछ पता चले।’
                          ‘ आइडिया अच्छा है। ऐसा ही करते हैं।’
                   स्टीव ने काउण्टर वाला फोन रख दिया। फिर पल भर को अपने सैल फोन पर क्रिस्टीना की साँसों की आवाज सुनी। फिर दो बार हैलो-हैलो किया। पर दूसरी तरफ से कोई जवाब न आया। कैफेटेरिया में दूसरी तरफ बैठे एक शख्स ने पल भर को उसे देखा।  उसने उसे बेचैनी से सैल फोन पर हैलो-हैलो कहते सुना था। अगर दूसरी तरफ से हैलो-हैलो का जवाब न आये तो कौन भला इतनी दफा बार-बार हैलो-हैलो करता है। लोग एक दो दफा हैलो-हैलो करते हैं और फिर फोन बंद कर बैठ जाते हैं। कितना अजीब शख्स है। उसने सोचा। फिर दूसरी तरफ देखने लगा। कितना अजीब कि थोडी-थोडी देर में हैलो- हैलो कहता है पर सैल फोन को नहीं काटता। सैल फोन पर लाल और हरा दोनों रंगों का सिग्नल चमक रहा है। याने फोन कटा नहीं है। फोन पर बात भी नहीं हो रही है और वह कटा भी नहीं है। बस स्टीव थोडी-थोडी देर में उस पर हैलो-हैलो कहता है। पता नहीं क्या है, पता नहीं क्यों ?
         स्टीव बेचैन हो चला था। वह कैफेटेरिया के बाहर जाना चाहता है पर लगता है जैसे अभी फायर ब्रिगेड के हैड का फोन आयेगा और काउण्टर पर रखा फोन घनघना उठेगा। उसने पल भर को बाहर देखा। लैंप पोस्ट के नीचे खडा अश्वेत लडका जा चुका था। उसके पीछे दीवार पर बना म्यूरल अब बिना किसी रोक के साफ-साफ दीख रहा था। बस बर्फ थी जो आहिस्ते-आहिस्ते गिर रही थी, म्यूरल को थोडा ग़ैरवाज़ेह बनाती। म्यूरल में एक लडकी है जो दीवार पर रंग बिखेर रही है। लडकी की फ्राक अपनी पूरी गोलाई में खुली है। उसने ऊँची हील के बाद भी खुद को पैरों से उचका रखा है। रंग दूर तक बिखरा हुआ है, जैसे वाकय में बकेट से फेंका जाता रंगीन पानी हो अपनी बुंदकियों, धार, रिसते रंग और छपाकों के साथ दीवार पर ही रुक गया हो। म्यूरल के ठीक सामने एक हाइड्रेण्ट हैं। लाल रंग का पाथ-वे के एक किनारे पर। उस पर एक बिल्ली बैठी है अपने आगे के पैरों को अपनी ज़बान से चाटती। स्टीव को लगा अगर उसका सैल फोन एंगेज न होता तो वह काँच के बाहर देखता हुआ सिंपली रैड का एक पुराना गीत - इफ यू डोण्ट नो मी बाई नाउ यू विल नेवर नेवर नेवर नो मी - सुनता। तभी उसे खयाल आया कि उसके जैकेट में इयर फोन है। उसने इयर फोन का पिन मोबाइल में लगाया और एक स्पीकर को बाँये कान में लगा लिया। दाहिना कान उसने काउण्टर के फोन की घनघनाहट सुनने के लिए खुला छोड दिया।
             उसे क्रिस्टीना की साँसों की आवाज़ एकदम साफ सुनाई दे रही थी। उसने इसके पहले कभी साँसों की आवाज़ों को इतना गौर से नहीं सुना था। अगर जरुरत न हो तो लोग सुनते नहीं। साँसों की आवाज कोई ऐसी चीज नहीं जो सुनी जाये। अगर वक्त न होता तो शायद वह भी न सुन रहा होता। सरकार के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेण्ट को क्रिस्टीना का फोन नंबर देकर फारिग़ हो लेता। वह थोडा बेताब था। जब वह खाली होता है वह मुश्ताक हो जाता है। इतना बेताब कि साँसों की आवाज जैसी बेजान आवाज भी बडी जानदार लगती है। लगता है बस सुनते रहो। वह पहला है जो क्रिस्टीना की साँसों को इतने गौर से सुन रहा है। खुद क्रिस्टीना को ही न पता हो। न उसके आशिक को, न उसके बच्चों को ही इल्म हो कि वह किस तरह साँस लेती है। कि उसकी साँसों की आवाज कैसी है ? यह एक बोर काम है बेशक, पर वह खुद को तसल्ली दे रहा है कि यह भी एक काम है।
                       बाहर गिरती बर्फ तेज हो गई है। हाइड्रेण्ट पर बैठी बिल्ली जा चुकी है।....और तभी, बस तभी उसे सैल फोन पर क्रिस्टीना की साँसों की आवाज के साथ-साथ एक बिल्ली की आवाज सुनाई देती है जो धीरे-धीरे बढती जाती है। वह कभी हाइड्रेण्ट की वह खाली जगह देखता है जहाँ बिल्ली बैठी थी, फिर सैल फोन पर सुनाई देती बिल्ली की आवाज सुनता है। उसके जेहन में विण्डोसिल से सरककर खिडकी के भीतर बेआवाज कूदती बिल्ली का खयाल आता है और फिर सैल फोन के एकदम पास सुनाई देती उसकी म्याऊँ-म्याऊँ सुनाई देती है। उसे लगता है कि क्रिस्टीना फर्श पर पडी है, उसके सिर से निकले खून का चकत्ता जमीन पर फैल है, आहिस्ते से मुँह खोल म्याऊँ करती बिल्ली खून के चकत्ते को सूँघती है, उसकी छोटी लाल ज़बान धीरे से गढा चुके खून को छूती है....। वह हडबडाता इयर फोन को हटाता है। सैल फोन पर जोर-जोर से कहता है - हैलो, हैलो क्रिस्टीना......हैलो.....हैलो....क्या तुम मुझे सुन रही हो क्रिस्टीना.....हैलो, हैलो.....। बिल्ली की आवाज़ एकदम से बंद हो जाती है। जब-जब वह हैलो कहता है उसकी आवाज क्रिस्टीना के कमरे में गूँजती है। क्रिस्टीना के फोन का स्पीकर आन है। वह थोडा जोर-जोर से कहता है - चले जाओ....चले जाओ वहाँ से....ओ बिल्ली तू चली जा वहाँ से , जा दूर चली जा, भाग वहाँ से.....भाग....भाग...। कैफेटेरिया में उसकी आवाज गूंजती है। सब लोग उसे अचरज से देखते हैं। काउण्टर पर खडा शख्स उसे गुस्से से घूरता है।
                        वह अपना सैल फोन लेकर बाहर आ जाता है। बाहर रोड पर जमी बर्फ पर गाडी के टायरों के निशान हैं। सफेद बर्फ पर कैफैटेरिया के काँच पर लटकती रंगीन लाइटें चमक रही हैं। चारों ओर खामोशी है। आकाश चुपचाप बर्फबारी कर रहा है। पाथ-वे और घरों की ढलुँवा छतों पर बेआवाज़ बर्फ गिर रही है। पास ही बर्फ में समा चुकी एक कार खामोशी से खडी है। खामोशी को चीरती उसकी आवाज़ थोडा देर तक सुनाई देती है - हैलो....हैलो क्रिस्टीना, क्या तुम सुन रही हो....। सैल फोन में बिल्ली की आवाज़ दूर जाती जाती है। फिर खत्म हो जाती है। बस साँसों की आवाज रह जाती है। वह बर्फ से ढंकी स्ट्रीट चेयर बैठ कर कान में इयर फोन लगाकर उस आवाज को सुनता मुस्कुराता है।
                            ‘मेरा कोई फोन था।’
                        लौटकर स्टीव ने काउण्टर वाले शख्स से पूछा। काउण्टर वाले शख्स ने थोडा हिकारत से उसे देखा। फिर उसने ‘न’ में अपनी गर्दन डुलाई। तभी उसे अपने सैल फोन पर साँसों की आवाज के साथ-साथ फायर ब्रिगेड का फायर अलार्म सुनाई दिया। लगातार बढता सा अलार्म। उसने काउण्टर पर रखे फोन से एक फोन मिलाया। काउण्टर वाले शख्स ने उसे इशारे से मना किया। उसने कहा वह पैसे देगा। काउण्टर वाले शख्स ने इशारा किया याने अच्छा कर लो....।
                          ‘ आप एक-एक कर सभी फायर ब्रिगेड को अपना अलार्म बंद करने को कहो।’
                          ‘ उससे क्या होगा।’
                          ‘ जब मेरे सैल फोन पर सुनाई देने वाला फायर अलार्म बंद होगा मैं आपको बता दूँगा।’
                          ‘ इस तरह पता चल जायेगा कि उस बुजुर्ग औरत का फ्लैट किस फायर ब्रिगेड के पास है।’
                          ‘ एकदम। उस बुजुर्ग औरत का नाम क्रिस्टीना है।’
                          ‘ ओह। शुक्रिया।’
                          ‘ शुक्रिया किस बात का।’
                          ‘ तुम कम से कम किसी की परवाह कर रहे हो। यही हमारा काम भी है। परवाह करना। हमारे पास कोई खास काम नहीं रहता। अक्सर खाली। आज यह सवाब का काम करना अच्छा लग रहा है।’
                   जब फोन पर फायर अलार्म बंद हुआ स्टीव ने फिर से काउण्टर से फोन लगाया। काउण्टर वाला शख्स चिढ चुका था। पर इस मुल्क में कोई किसी को लैण्डलाइन का प्रयोग करने से मना नहीं कर सकता। यह बेअदबी है। पैसे देने की बात स्टीव कह ही चुका था। सो वह चुप रहा।
                           ‘ कौन से नंबर की फायर ब्रिगेड।’
                           ‘ तेरह।’
                           ‘ बस उसका फ्लैट वहीं कहीं होगा आसपास।’
                     कैफेटेरिया में चार लडकियाँ आई थीं। उन सबके बालों और कंधों पर बर्फ के कतरे पडे हुए थे। उनमें से एक लडकी स्टीव को देखकर मुस्कुराई थी। वे चारों थोडा दूर एक टेबिल पर बैठ गई थीं। वह लडकी जो स्टीव को देखकर मुस्कुराई थी, अब भी बीच-बीच में उसको देख लेती थी। स्टीव खुद में मगन था। लडकी को लगता न जाने सैल फोन पर क्या तो सुनता होगा यह लडका। कोई जैज, कोई पॉप, कोई नेटिव.....पता नहीं, कुछ तो सुनता है। कितना मगन है। पर स्टीव को खयाल भी नहीं आया कि कोई कुछ सोचता होगा कि वह क्या सुन रहा है। जब करने को कोई काम न हो, आप बेरोजगार हों, खाली-खाली वक्त हो, तो इयरफोन पर किसी बुजुर्ग औरत की साँसों की आवाज सुनने का तो खयाल ही इतना बौडम है, कि किसी को कभी इसका इल्म भी न हो। सो वह निश्चिंत था। दुनिया कुछ भी सोच सकती थी अपनी बला से।
                      इयरफोन पर क्रिस्टीना की साँसों की आवाज थोडा मद्धम हो गई थी। मानो किसी कंदरा से आ रही हो। ध्यान से सुनने पर उसकी साँसों के बीच का अंतराल बढ गया लगता था। साँसों की आवाज़ कमजोर हो गई थी। पल भर को लगता मानो क्रिस्टीना सो रही हो। पर दूसरे ही पल कोई डरावना सा खयाल स्टीव को आता। उसे फायर ब्रिगेड के हैड की बात याद आई - ‘तुम्हारे हौसले की मैं दाद देता हूँ। हम सब यहाँ जिंदगी बचाने के लिए ही तो हैं।’ उसे लगा मानो कुछ छूटा जा रहा है। कुछ जो ठीक नहीं हो रहा। कुछ जो बेचैन करता है। कुछ जिसके खयाल से मन खौफजदा हो जाता है। वह कैफेटेरिया के बाहर आ जाता है। पाथ वे पर चलता-चलता फोन पर फिर से जोर-जोर से कहता है - हैलो, क्रिस्टीना हैलो....जागो, उठो.....सुनो, सुनो....एक बार बात करो, बोलो, बोलो....तुम ठीक तो हो न...हैलो,हैलो....।
                      क्रिस्टीना के बंद कमरे में स्टीव की आवाज़ गूँजती है। आयताकार खिडकी का काँच कांपता है, जब-जब वह कहता है - जागो,जागो....बोलो,बोलो.....तो आयताकार खिडकी का काँच अपने फ्रेम में कांपता है। उसकी आवाज पर फोन का ब्लिंकर चमकता है - बात करो, बात करो क्रिस्टीना.....हैलो,हैलो....तुम सुन रही हो न...हरा ब्लिंकर झिझकता सा चमकता है,बुझता है, चमकता है। अभी इसी कमरे तक तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड का सायरन गूँजा था।
                 बाहर फायर तेरह नंबर की फायर ब्रिगेड का ड्रायवर खडा है। चारों ओर ऊँची-ऊँची इमारते हैं। इमारतों में हजारों आयताकार खिडकियाँ हैं। काँच वाली आयताकार खिडकियाँ। आज फ्राइडे नाइट है। लोग अपने-अपने घर छोडकर जाने वाले हैं। शनिवार और इतवार की छुट्टियाँ मनाने। हर आयताकार खिडकी रौशनी से चमक रही है। वह फायर ब्रिगेड से उतरकर उन खिडकियों को देख रहा है। इन्हीं हजारों में से किसी एक में क्रिस्टीना है। वह माइक उठाकर जोर-जोर से एनाउंस करता है -
                         ‘ कृपया अपने-अपने घरों की लाइटें बंद कर दें। हम एक बुजुर्ग औरत की तलाश में हैं जिसका नाम क्रिस्टीना है।’
                   ....जागो, जागो...बोलो,बोलो.....स्टीव ने फिर से सैल फोन पर कहा। क्रिस्टीना के कमरे की निपट निर्जनता में उसकी बात गूँजी ....जागो,जागो....
                    ....उसका नाम क्रिस्टीना है। क्रिस्टीना। वह बुजुर्ग महिला है । - तेरह नंबर वाली फायरब्रिगेड का ड्रायवर एनाउंस कर रहा था। गिरती बर्फ के बीच से उसकी आवाज गूँज रही थी। गर्म कमरों में बैठे लोगों तक उसकी आवाज पहुँच रही थी - उसका नाम क्रिस्टीना है....क्रिस्टीना...। ठण्ड से उसकी आवाज कांप रही थी। वह लगातार एनाउंस कर रहा था। 
                       ‘ कृपया लाइट बंद कर दें। इस तरह हम उसे ढूँढ पायेंगे। आप लाइट बंद कर देंगे तो हम उस खिडकी को देख पायेंगे जिसकी लाइट बंद नहीं हुई।’
                  चारों ओर से लोग उमडे पड रहे थे। हर तरफ से लोग चले आ रहे थे। फ्राइडे नाइट थी। आगे वीकेण्ड था। पाथ-वे पर, स्ट्रीट्स में, पब में, रेस्तरां में.....हर जगह, लोग ही लोग। लोगों से टकराता चलता स्टीव लगातार बोल रहा था.....हैलो क्रिस्टीना, हैलो...।
                    हजारों जगमगाती आयताकार खिडकियों वाली बिल्डिंगों को देखता तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड का ड्रायवर बार-बार चिल्ला रहा था - ‘कृपया अपने-अपने घरों की लाइटें बंद कर दें।’ सब लोगों को उसकी आवाज सुनाई दे रही थी। घर में कुछ लोगों ने आपस में एक दूसरे से पूछा था - क्या तुम किसी क्रिस्टीना को जानते हो ? एक आदमी ने एक दूसरे फ्लैट के आदमी से फोन लगाकर पूछा था कि वह जो बुजुर्ग औरत रहती है उसके पडोस में कहीं उसका नाम तो क्रिस्टीना नहीं ? दूसरी तरफ से जवाब आया था - नहीं। उसका नाम तो सुजान है। हर तरफ तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड के ड्रायवर का एनाउंसमेण्ट सुनाई दे रहा था - लाइटें बुझा दें, बुझा दें.....।
                   भागती दौडती दुनिया बेखबर थी, अपनी धुन में जाने क्या-क्या बडबडाता स्टीव रास्ते गुजरता जा रहा था.....सुनो,सुनो....बोलो,बोलो....बोलो क्रिस्टीना....
                    हजारों आयताकार खिडकियों से आती रौशनियाँ बुझ रही थीं, एक के बाद एक, धीरे-धीरे, क्या तुम जानते हो किसी क्रिस्टीना को ?.....न, नहीं, मैंने नहीं सुना, क्या कहा कोई बुजुर्ग औरत है, पता नहीं, इधर कहीं ही रहती है क्या, किस तरफ, मैंने कभी नहीं सुना, कैसी दीखती है वह, नहीं, नहीं ंतो, इधर पर, न , इधर तो कभी नहीं सुना..... हजारों आयताकार खिडकियों की रौशनी बुझ रही थी, एक के बाद एक, मैं किसी क्रिस्टीना को नहीं जानता ऐसा कहकर एक आदमी ने बुझाई थी लाईट, पता नहीं कौन है ऐसा कहकर दूसरे ने.....एक चुपचाप गाना सुन रहा था, उसने पल भर को उसका नाम सुना था - क्रिस्टीना और आपने बेटे को लाइट बुझाने को कहा था, एक ने बिना कुछ सुने ही बुझा दी थी लाईट, एक बालकनी से झांक रहा था तसल्ली से लाइट बुझाने के बाद, ‘बुजुर्ग औरत हुँह’ ऐसा कह कर एक लंपट लडके ने बुझाई थी लाइट.....लाइटें बुझ रही थीं, बिल्डिंग की दीवार पर से मिटती जा रही थींं आयताकार काँच की खिडकियाँ। तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड का ड्रायवर को लग रहा था कि जिस आयताकार खिडकी की लाइट न बुझेगी वह क्रिस्टीना के फ्लैट की लाइट होगी। जरुर वही होगी। 
                    आताकार खिडकियों की लाइटें बुझ रही थीं लगातार, हुँह कौन है यह क्रिस्टीना...एक औरत ने झल्लाकर लाइट बंद करते कहा था, उफ्फ ये क्या मुसीबत एक दूसरी ने अनमने ढंग से बंद की थी बत्ती, एक की बत्ती कुछ इस तरह बंद होती थी जिससे टी.वी. भी बंद होता था और उससे फुटबाल का मैच बाधित होता था, उसके फ्लैट की बत्ती देर से बंद हुई थी, ज्यादातर फ्लैटों की बत्तियाँ एकसाथ बंद हुई थीं यह कहते हुए कि वे सब किसी क्रिस्टीना को नहीं जानते..... 
                    कैफेटेरिया में लोगों का सैलाब उमड आया था। एक गायिका गाना गा रही थी। कुछ लोग शराब पी रहे थे। बाहर आती जाती गाडियों के हार्न की आवाजें थीं।  रात गहरा रही थी और शहर जाग रहा था। अंधेरा बढ रहा था और लाइटें जगमगा रही थींं एक के बाद एक। बर्फ गिर रही थी और शोर बढ रहा था।
                    आखिर में सिर्फ तीन आयताकार काँच की खिडकियाँ बची थीं। सिर्फ तीन आयताकार खिडकियों से रौशनी आ रही थी। बाकी सब बंद थीं। लोगों को पता था कि अगर बत्ती जलती रही तो अभी कोई फायर ब्रिगेड वाला आकर उनके फ्लैट की बैल बजा देगा। सबने बत्तियां बंद कर दी थीं। अब सिर्फ अंधेरे में डूबी इमारतें रह गई थीं। बर्फ फेंकते आसमान की ओर उठी भुतही अंधेरी विशाल इमारतें जिनमें से एक के बारहवें माले पर तो एक के सातवें माले पर और एक के ग्यारहवें माले पर आयताकार खिडकी चमक रही थी। अंधेरे में डूबी विशाल इमारतें किसी प्रेत की तरह दीख रही थी। उनके निचले हिस्से रोड की लाइटें पडने के कारण चमक रहे थे और धीरे-धीरे ऊपर की ओर अंधेरा बढता जाता था। ऊपर के सारे हिस्से अंधेरे में समाये हुए थी। गिरती बर्फ में उनका विशाल भुतैल आकार दैत्य की तरह उठा हुआ था आसमान से गिरती बर्फ के घनेपन में समाया हुआ। दो इमारतें तो ऐसी थीं कि वे नीचे से ऊपर तक पूरी तरह से अंधकार के समंदर में डूबी हुई थीं।
                   तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड के पास खडी ऐंबुलेंस की सायरन वाली लाइटें लुकझुक हो रही थीं। फायर ब्रिगेड के कुछ लोग उन तीन खिडकियों वाले फ्लैटों के दरवाजे चैक कर रहे थे। दो के दरवाजे बाहर से बंद थे और एक अंदर से। जो अंदर से बंद था उसे खोलने में मशक्कत लगी।
                   थोडी देर बाद फायर ब्रिगेड के हैड का मैसेज आया स्टीव के सैल फोन पर। लगभग आधा घण्टे बाद।
                                ‘ हमने कर दिखाया।’
                                ‘ वह कैसी है ? उसकी साँस बहुत कमजोर हो गई थी।’
                                ‘ अब ठीक है। उसे अस्पताल शिफ्ट कर दिया गया है।’
                                ‘ आपने मुझे आधे घण्टे बाद बताया कि वह ठीक है। आपको तुरंत बताना चाहिए था।’
                                  ‘ सॉरी स्टीव।’
              फायर ब्रिगेड सर्विस के हैड ने स्टीव को मैसेज किया।
              तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड का ड्रायवर लौटने से पहले उन इमारतों की ओर देखता है। गिरती बर्फ के दरमियाँ जगमगाती हजारों आयताकार खिडकियाँ। दूर एक खिडकी खुली है। एक बच्चा उसमें से झाँक रहा है। वह उसे देखकर हाथ हिलाता है। इमारतों के बेसमेण्ट से गाडियाँ निकल रही हैं। लगातार एक के बाद एक। कुछ लोग पैदल जा रहे हैं, फुटपाथ पर। रात दिन में बदल रही है।
                      तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड का ड्रायवर पिछले बारह दिनों से खाली था। उसे शहर का डाउनटाउन इलाके का एक हिस्सा मिला हुआ है। वहाँ बहुत कम वारदात होती हैं। पिछले तीन सालों में वहाँ आग लगने का कोई भी वाकया नहीं हुआ। सिर्फ एक रैस्क्यू उन्होंने चलाया था, एक स्कूल में जिसकी छटी मंजिल पर एक शिक्षक ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था और कमरे की खिडकी से लटक गया था। 
                      उसने फायर ब्रिगेड को स्टार्ट किया। अबकी उसने उन इमारतों की ओर नहीं देखा। उसे पल भर को खून से सना क्रिस्टीना का चेहरा दीखा। धीरे-धीरे फायर ब्रिगेड सरकने लगी। लबादा पहरे एक बच्ची ने सरकती फायर ब्रिगेड को देखकर हाथ हिलाया, वह मुस्कुरा दिया। बच्चों की स्कूल की किताब में फायर ब्रिगेड की फोटो होती है इसलिए वे हाथ हिलाते हैं - उसके साथी ने उसे एक बार कहा था। चारों ओर रौशनी थी। इतनी रौशनी कि लगता था मानो बर्फ गिरना बंद हो गई हो। वह गाडी चलाता लौट रहा था, बीच-बीच में हॉर्न के बजने से उसे थोडा अच्छा सा लगता था।
                     स्टीव कैफेटेरिया से बाहर आ गया था। स्ट्रीट के किनारे-किनारे पाथ वे पर वह सीटी बजाता टाँगें नचाता चल रहा था। पाथ-वे पर कोक की एक खाली केन पडी थी, उसने उसे पैरों से मारने अपनी दाहिनी टाँग पीछे की, फिर पल भर को रुका और केन को उठाकर पास रखे डस्ट बिन में डाल दिया। डस्ट बिन खरगोश के आकार का था। खरगोश के आकार को देखकर उसने इस तरह हाथ हिलाया जैसे कोई किसी का अभिवादन करता है। पास से गुजरते एक आदमी ने उसे पल भर को देखा, शराब पिये है - यह खयाल उसके जेहन में आया। उसे नहीं पता था कि स्टीव की जेब में सिर्फ डेढ यूरो थे और रम का एक पैग तीन यूरो में आता है। उसे यह भी नहीं पता था कि स्टीव को पल भर के लिए शराब पीने की इच्छा हुई थी। पब के सामने खडे-खडे उसने अपनी पॉकेट से पैसे निकालकर गिने थे। उसे काउण्टर वाले शख्स पर गुस्सा आया जिसने उससे फोन करने के चार यूरो ले लिये थे। उसे पैसे देते वक्त उसे लगा था कि वह उसे बता दे कि वह एक मर रही बुजुर्ग औरत की मदद कर रहा था। पर ऐसा कहना उसे ठीक न लगा। अगर यह सुनकर भी वह मना कर देता तो उसे दुःख होता। अपने दुःख की खातिर उसने उसे यह बात न बताई।
                 उस लडकी ने जो कैफेटेरिया में उसे घूर रही थी उसी ने उससे कहा था कि वह अगर चाहे तो वे दोनों शराब पीने चल सकते हैं। स्टीव ने उससे कहा था कि वह एक जरुरी काम में लगा है। उसने कहा कि वह इंतजार कर सकती है। पर स्टीव का जरुरी काम लंबे समय तक चला। पूरे तीन घण्टे। लडकी समझ न पाई कि ऐसा क्या जरुरी काम है। फोन पर हैलो-हैलो करने का काम भी कोई काम होता है। थोडी देर बाद वह चली गई। कई दिनों बाद यह पहला वीकेण्ड है जो उसे बिना शराब के बिताना पडेगा। उसे टांगे नचाता जाता हुआ देखते पास से गुजरती एक कैब के ड्रायवर ने हाथ हिलाया। उसने भी हाथ हिलाया। कैब का ड्रायवर अपने रियर मिरर में उसे टांगे नचाते गुजरता हुआ देखता रहा।
                  सामने मुख्य चौराहा था। बर्फ में दफन। रोड के किनारे पेडों की एक कतार जिनकी टहनियों पर, पत्तों पर बर्फ पडी थी, बर्फ से ढंके उनकी शंक्वाकार चोटियाँ लाशों की तरह आसमान की ओर उठी थीं, खामोश और मरी हुई। पेडों के नीचे-नीचे गाडियों की लाइटों की चकाचौंध थी, जो अचानक बढी थी और बढती जा रही थी। सामने घण्टाघर पर लटकी घडी में बारह बजकर पैंतालिस मिनट हुये थे। किसी को समय देखने उस घडी की दरकार नहीं है, लगता है मानो वह बरसों से रुकी हो, उसका चलना भी रुका हुआ जान पडता है। बर्फ की चादर मोटी होती जा रही है और साथ-साथ गाडियों के हॉर्न की आवाज भी बढती जा रही है। लगता है सुबह तक शहर बर्फ में दफन हो जायेगा, पर लोग आते रहेंगे, सैंकडों, हजारों, लाखों लोग जैसे अचानक अपनी कंदराओं से फूट पडती हैं दीमकें, चींटियों की कतार लगातार....बस वे शोर नहीं करतीं, ये सब बेतरह शोर करते हैं।
                                   ‘ हैलो मेरा नाम स्टीव है।’
                   उसने अस्पताल के बिस्तर पर पडी क्रिस्टीना को देखते हुए कहा। क्रिस्टीना ने कुछ नहीं कहा। वह चुप थी। डॉक्टर ने बताया कि क्रिस्टीना को अब कुछ याद नहीं। उसकी उम्र छियासी साल है, फिर सिर पर चोट। पता नहीं उसे कभी याद भी आये या नहीं कि उसके साथ क्या वाकया हुआ था ?
                   स्टीव ने थोडा झिझकते हुए उसके पास फूलों का गुलदस्ता रख दिया। कारनेशन के फूलों का एक सस्ता सा गुलदस्ता वह खरीद लाया था।
                   क्रिस्टीना ने उसे पल भर को देखा और फिर दूसरी तरफ देखने लगी। स्टीव ने सोचा था कि वह उसे बतायेगा कि उसको ढूँढने पूरे एक हजार तीन सौ छह घरों के लोगों ने अपने-अपने घरों की लाइटें बुझा दी थीं। है न कितनी अद्भुत बात।  एक के बाद एक वे बुझती रहीं। इस तरह हजारों की संख्या में वे बुझीं। उसने अच्छा किया जो उसने बताया कि वह जहाँ बंद है वहाँ एक आयताकार काँच वाली खिडकी है। सच कितना अच्छा दीखता होगा, इस तरह हजारों आयताकार खिडकियों की रौशनियों का बुझते जाना, किसी छियासी साल के बुजुर्ग के लिए। वह सोचकर आया था, कि वह कहेगा कि उसने पूरे चार घण्टो तक उसकी साँसों की आवाज सुनी थी। उसकी साँसों की आवाज सुनकर उसे सिंपली रैड का एक बहुत पुराना गीत याद आया था - इफ यू डोंट नो मी बाय नाओ - शायद क्रिस्टीना की साँसों की आवाज ऐसी है जिससे उस गीत की धुन की याद आती है।
                     तभी क्रिस्टीना की बेटी आ गई। स्टीव से मिलकर वह खुश हुई। क्रिस्टीना उसे भी पहचान न पाई।
                          ‘ इनके घर में बिल्ली आती है। शायद किसी खिडकी से। वह कोई पालतू बिल्ली नहीं है। यह खतरनाक हो सकता है।’
                          ‘ अरे मुझे नहीं पता। मुझे कभी नहीं दीखी।’
                          ‘ पर वह है।’
                          ‘ अच्छा। मैंने इनके फोन पर हरा बटन भी लगवाया था ताकि ये सीधे मुझे रिंग कर पायें।’
                       क्रिस्टीना की बेटी को उसके बेटे ने कहा था कि वे फोन पर हरा बटन न लगावायें। वही हरा बटन जिसके दबाते सीधे क्रिस्टीना का इमरजेंसी मैसेज उसे मिल जाता। मान लो क्रिस्टीना ने वह बटन दबाया और तुम वक्त पर उस तक न पहुँच पाईं तो - उसके बेटे ने शंका जाहिर की थी। उसने कहा था कि कम से कम सरकार के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेण्ट को तो वा बता ही देगी भले क्रिस्टीना तक न पहुँच पाये। उसका बेटा उसके इस तर्क पर चुप हो गया था।
                         ‘ सरकार के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेण्ट वाले कह रहे थे कि क्रिस्टीना का फोन व्यस्त था। उन्हें लगा वह कहीं बात कर रही है। सो उन्होने मान लिया कि वह ठीक है।’
                         ‘ ओह.....।’
                 स्टीव ने नहीं कहा कि फोन के दूसरे तरफ वह था, इसलिए फोन एंगेज था।
                         ‘ मैं काम में लगी रहती हूँ। मेरे पास एक पल भी खाली नहीं। इस वाकये की बात भी मुझे आज पता चली। पूरे दो दिन बाद। फायर ब्रिगेड वालों का मैसेज था। दो दिन पुराना मैसेज जो मैं आज देख पाई।’
                          ‘ अरे। पर मैं व्यस्त नहीं रहता हूँ। मैं बेरोजगार हूँ।’
                          ‘ ओह।’
                          ‘ ऐसी कोई बात नहीं। यह होता रहता है। यह जिंदगी है।’
                          ‘ हाँ यह तो है।’
                          ‘ तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड का ड्रायवर कह रहा था कि उसके पास पिछले तीन सालों से कोई काम नहीं रहा। उसे क्रिस्टीना की मदद करने का यह काम करना अच्छा लगा।’
                          ‘ बडा भला मानुस है। आज शाम जॉर्ज भी आ जायेगा।’
                          ‘ जॉर्ज ?’
                          ‘ मेरा छोटा भाई है। बहुत दूर से आ रहा है। यू.एस. से। क्रिस्टीना को बहुत चाहता है।’
                           ‘ ओह। फायर ब्रिगेड सर्विस का हैड कह रहा था कि उनके पास कोई काम नहीं रहता है। काम होकर भी वे बेरोजगार जैसे ही हैं। कि उनके पास बहुत सारा वक्त है।’
                         दोनों पल भर को चुप हो गये। क्रिस्टीना को उनकी बात का ओर-छोर समझ न आ रहा था। उसने खामोशी में खलल डालते हुए कहा -
            ‘ अच्छा लगता है कि इस दुनिया में कुछ लोगों के पास वक्त है। कि वे खाली हैं। कि वे फुर्सत में हैं। वे इतने व्यस्त नहीं कि किसी की परवाह भी न पाल पायें।’
                         दोनों ने क्रिस्टीना की तरफ देखा। स्टीव ने देखा क्रिस्टीना कि आँखों में आँसू थे। आँसुओं के साथ वह मुस्कुराने की कोशिश कर रही थी।
                          ‘ माँ ये स्टीव है और मैं तुम्हारी बेटी रेबेका।’
                         क्रिस्टीना की बेटी ने उसके पास आकर धीरे से कहा। क्रिस्टीना ने स्टीव को पल भर को देखा और नजरें फेर लीं। उसने अपनी बेटी को इस तरह देखा मानो किसी अजनबी को देख रही हो। रेबेका ने स्टीव की ओर देखकर धीरे से कहा - सॉरी। स्टीव ने कहा - कोई बात नहीं। रेबेका ने कहा - क्रिस्टीना डांसर थी। स्टीव ने कहा - अमेजिंग। बैले करती थीं क्या? रेबेका ने कहा - नहीं, एक्जॉटिक करती थीं। स्टीव ने कहा - ओह। रेबेका ने कहा - ऐसी कोई बात नहीं। उसने खुद यह काम किया था। हमने बहुत कठिन दिन गुजारे। स्टीव ने कहा - समझ सकता हूँ। रेबेका ने कहा - क्रिस्टीना खूबसूरत थी। उसे डांस में ठीक-ठाक पैसे मिल जाते थे। स्टीव ने कहा - क्रिस्टीना आज भी खूबसूरत हैं। रेबका ने कहा - हाँ, पर अब उसे कुछ याद नहीं रहता। स्टीव ने कुछ नहीं कहा। उसे लगा अगर क्रिस्टीना समझ पाती, उसकी याददाश्त आ जाती तो उसके पास कितना कुछ था उसे बताने को। पर उसे तो इस वाकये तक का इल्म नहीं।
                        स्टीव अस्पताल से लौट रहा था। उसके सैल फोन पर तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड के ड्रायवर का फोन आया। वह कह रहा था कि वे जब क्रिस्टीना के कमरे में घुस रहे थे तब उस कमरे में उन्हें स्टीव की आवाज सुनाई दे रही थी। फोन से उठती उसकी आवाज - हैलो, हैलो क्रिस्टीना.....बात करो, कुछ कहो.....तुम सुन रही हो न.....हैलो, हैलो....। उसने कहा कि वह चाहता तो स्टीव को बता सकता था कि उन्होंने क्रिस्टीना को ढूँढ लिया है और अब फोन पर यह सब कहने की कोई जरुरत नहीं। वह चाहता  तो उस फोन को बंद भी कर सकता था। पर उसने ऐसा नहीं किया । 
                    ‘तुम जो कह रहे थे कि आधा घण्टे बाद बताया। कि तुम्हें क्रिस्टीना के मिल जाने की खबर तुरंत क्यों नहीं बताई। आधे घण्टे बाद क्यों बताई। तुम उस बात का बुरा न मानो स्टीव। तुम मेरी बात को समझो।’ - उसने कहा।
                    क्या अंतर पडता है जो तुम्हारी आवाज अकेले कमरे में गूँजती थी स्टीव, हो सकता है क्रिस्टीना को ले जाने के बाद भी उस खाली कमरे में जहाँ उसका खून बिखरा था, जहाँ वह लाल, पीले और हरे बटन वाला फोन लावारिस पडा था, जहाँ काँच को थामे दीवार पर जमी थी आयताकार खिडकी, जहाँ फर्श पर थे क्रिस्टीना के गिरने और बेहोश होने के निशान, जहाँ ठण्ड में जम रहा था फर्श पर बिखरा उसका खून लाल से गहरा लाल और काला होता, जहाँ कोई बिल्ली थी अब भी दरवाजे के पीछे छिपी ......वहाँ तब भी तुम्हारी आवाज गूँजी हो स्टीव - तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड का ड्रायवर उससे कहना चाहता था।

 -]समाप्त[-


[चर्चित कहानी 'तेरह नंबर वाली फायर बिग्रेड' साहित्यिक पत्रिका 'तद्भव' के अंक-38 में प्रकाशित हुई, तभी से ये कहानी चर्चा के केंद्र में है]


तरुण भटनागर

संक्षिप्त परिचय:-

जन्म- २५ सितंबर १९६८ को रायपुर छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश में
शिक्षा- एम.एस सी. (गणित) तथा एम.ए. (इतिहास)
कार्यक्षेत्र- साहित्य की कई विधाओं में लेखन, कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास आदि। प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित।

संप्रति- भारत में मध्यप्रदेश राज्य में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में कार्यरत। साहित्य के अतिरिक्त भारतीय शास्त्रीय संगीत, हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार एंव बागवानी में रुचि।

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