मित्रों आज के दौर को देखते हुए मैं आप सभी पर अपनी एक सलाह थोपना चाहूंगा। मुझे ये सलाह थोपने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी ये आप लेख को अंत तक पढ़ते पढ़ते समझ ही जायेंगे।
पिछले कुछ दिनों से मेरा एक परम-मित्र बड़ी ही भंयकर समस्या में उलझा हुआ था। उसके खिलाफ न जाने किन-किन तरहों से साजिशें रची जा रही थी, कि वह अपने मुख्य-मार्ग से भटक जाये। उसका एकमात्र पहला लक्ष्य ये है कि वह अपनी पढ़ाई को बेहतर ढंग से सम्पन्न करे। कुछ हासिल करें। समाज में बेहतर संदेश प्रसारित करें। वो मित्र अभी विद्यार्थी जीवन निर्वाह कर रह रहा है। वह अपने परिवार और समाज को ध्यान में रखते हुए अपने लक्ष्य के प्रति वचनबद्ध है। उसकी सोच सिर्फ अपने को जागरूक करने तक ही सीमित नहीं है अपितु समाज को भी जागृत करने की है। जिससे कुछ भोले-भाले अभ्यर्थियों को सही दिशा-निर्देश के साथ-साथ उन्हें अपने कर्त्तव्यों का सही-सही पालन भी करना आ जाए। किंतु इसी समाज के कई असमाजिक सोंच रखने व्यक्ति जो सिर्फ दिखावे की समाजिक संस्था में गुप्त रूप से उनके संदेशों को मात्र कुछ रूपयों के लालच में आम जनों तक फैलाने में कार्यरत हैं। जिससे वह व्यक्ति मानसिक तौर पर अपना लक्ष्य छोड़ उनके साथ इसी समाज में हिंसक स्थितियों को बढ़ाने के लिए तैयार हो जाए। और ऐसा हो भी रहा है। लोग इसमें बढ़-चढ़कर के हिस्सा भी ले रहे। हर क्षेत्र, हर मोड़ और हर चौराहे पर ऐसे ही हिंसक मिशनरी लोग मौजूद रहते हैं। लोगों को तैयार करते हैं हिंसा के लिए। स्थितियां भी तैयार करते हैं हिंसा की। और एक दिन सामान्य-सी चल रही स्थिति पर बड़ी ही चपलता से असमान्यता उत्पन्न कर बहुत बड़ी हिंसक घटना को अंजाम देने में सफल भी हो जाते हैं और साथ ही साथ बड़ी चालाकी से वहां से रूख्सत भी हो जाते हैं। फिर आप आगे का दृश्य देखिए। कुछ भोले-भाले आम जीवन निर्वाह करने वाले लोग आपस में एक बे-मतलब की जंग लड़ते रहते हैं। जिससे उनका आम जीवन तो प्रभावित होता ही साथ में किसी बड़ी दुर्घटना का अंदेशा भी बना रहता हैं।
मैं यहां ऐसी किसी भी घटना जिक्र करना जरूरी नहीं समझता क्योंकि आप सभी लोग ऐसी घटनाओं से पूर्णतया परिचित हैं या शायद आप भी ऐसी घटनाओं के शिकार भी रहें होंगे। मैं यहां सिर्फ उन पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश करूंगा कि इस तरह के लोगों और घटनाओं से कैसे बचा जाए। मैं जानता हूं कि शायद आप उन पहलुओं को जानते भी हों। किंतु शायद आपका ध्यान उस ओर नहीं गया हो इसलिए मैं अपने तरीके से बताने के लिए उत्सुक हूं। यहां बात शुरू करने से पहले मैं एक घटना का जिक्र और कर दूं, जिसका सामना मुझे स्वंय करना पड़ा।
अभी कुछ दिनों पहले मैंने अपने ही एक बचपन के मित्र की फेसबुक वॉल पर धर्मांतरण को लेकर एक पोस्ट पढ़ी, और मैंने उस पर सूक्ष्म चर्चा भी की। चर्चा के अंत में मैंने उससे ब्रेन इन्वेस्टमेंट की बात कही और उससे संबंध में कुछ लिखने का भी वादा किया।
ब्रेन इन्वेस्टमेंट पर बात शुरू करने से पहले मैं अपने साथ धर्मांतरण को लेकर हुई एक घटना जिक्र करना चाहूंगा।
बात साल २०१४ की है जब मैं कॉलेज खत्म कर नोएडा में एक कॉल सेंटर (सिर्फ पांच महीने ही जॉब किया) में जॉब कर रहा था। मैं उन दिनों कविताएं लिखने में दिलचस्पी रखता था। साल २०१३ में कॉलेज के दौरान ही मेरा एक साझा काव्य-संग्रह "सुनो समय जो कहता है" संपादक रवीन्द्र कुमार दास जी के संपादन में प्रकाशित हो चुका था।
मैं एक बार २०१४ के विश्व पुस्तक मेले में प्रगति मैदान नई दिल्ली में कुछ किताबें और पुस्तक मेले की झलकियां देखने गया। मैं यहां कहना चाहूंगा कि मैं स्पेशली 'कुरान' और 'गीता' की पुस्तकें ही खरीदने के लिए गया था। मेरी जितनी दिलचस्पी उस समय गीता को पढ़ने की थी उतनी ही दिलचस्पी कुरान को पढ़ने की थी। मैं पुस्तक मेले में गीता प्रेस गोरखपुर के स्टॉल पर गया और वहां से गीता की एक पुस्तक खरीद ली, और साथ ही साथ कुछ और पुस्तकें भी खरीद ली। तत्पश्चात मैं उसी मेले में कुरान की पवित्र पुस्तक ढूंढने के लिए स्टॉल तलाशने लगा। और अंततः मैं कुरान खरीदने के लिए एक स्टॉल पर खड़ा था। जैसे ही मैंने वहां कुरान का हिंदी अनुवाद मांगा तभी मुझे वहीं आस-पास में खड़े कई नवयुवकों ने घेर लिया। मैं ये दृश्य देख कर अचानक सहम गया। फिर किसी एक युवक ने मेरा नाम पूछा। मैंने बड़े गर्व से अपना नाम "शक्ति सिंह है" बता दिया। तभी दूसरे युवक ने एक प्रश्न दागा कि- "क्या आप हिन्दू हैं?"
"जी" मैंने कहा।
"फिर भी आप कुरान में दिलचस्पी रखते हैं।" उसी युवक ने कहा।
मैंने फिर से उसी भाषा में उत्तर दिया। "जी हां।"
"क्या आप मुस्लिम धर्म में दिलचस्पी रखते हैं?" पहले वाले युवक ने प्रश्न दागा।
"जी बिल्कुल मैं इस धर्म को बहुत गहराई से जानना चाहता हूं।" मैंने तवाक् से कहा।
"क्यों?" फिर से एक और प्रश्न मेरी ओर कटाक्ष करते हुए बड़ा। शायद दो लोगों ने एक साथ दागा।
"क्योंकि मैंने इस धर्म को लेकर बहुत सी अफवाहें सुन रखी है। क्या बाकई में ये महज अफवाह है या फिर कोरा सच। बस यही जानने के लिए।" पूरी निष्ठा से मैं कह गया।
फिर मैं जिस प्रश्न की कभी उम्मीद भी नहीं लगाये हुए था तीर की तरह मेरे ह्रदय में धंस गया, मैं वहीं खड़ा सिहर गया, एक दम अंधेरा, सिर चकरा रहा था मेरा, ऐसा लग रहा था कि किसी ने मुझे जंजीर में जकड़ने की बात कह दी हो, और कोई मुझे उस तहखाने की ओर चल देने की बात कह रहा हो जहां पर मुझे जाने की क्या सोचने तक की बात ही मृत्युशय्या पर ले जाने की स्वीकृति दे देती हो।
"क्या आप मुस्लिम धर्म अपनाना चाहेंगे?"
"हम बड़ी ही आसानी से तुम्हें तुम्हारे धर्म से ले जाकर अपने धर्म में प्रवेश करा सकते हैं।"
"तुम्हें ढेरों लाभ मिलेंगे" (लाभ गिनाते हुए)
"हमारे धर्म में तुम्हारे धर्म की तरह भागवनों की विविधताएं नहीं हैं"
"सिर्फ एक ही है" और वो है "अल्लाह"
वो भिन्न-भिन्न तरह के सवाल दागते रहे।
मैं अब भी सन्न था। अंदर से कुछ उवाल मार रहा था। मैं अपने बचाव में ढेरों जबाव देता रहा। किंतु मेरे जबाव उनकी धर्मांतरण की प्रक्रिया के सामने बौने होते जा रहे थे। संध्या का सूरज भी बाहर ढल रहा था। मैं उनके समक्ष नतमस्तक हो चुका था। मैं असमंजस में था। आखिर अपना पीछा छुड़ाना था उन ब्रेन वॉशरों। मैंने अनायास ही बिना तर्क किये आत्मसमर्पण कर दिया। मुझे पहले कुरान खरीदना है। आप मुझे पुस्तक दीजिए। मैं बाद में बात करता हूं इस बारें में। वो शंका भरी खुशी लिए क़ुरान उठा लाये। उन्हे विश्वास नहीं था मेरे हाव-भाव देखकर। फिर वे मुझे कुरान की अनुवादित आयतों के माध्यम से मेरा ब्रेन वॉश करने लगे। मैं जल्दी करने लगा जाने की। फिर उन्होंने मुझे निराश भरी मुस्कान से कुरान की पवित्र पुस्तक थमा दी। मैं जेब से रुपए निकाल ही रहा था किंतु उन्होंने उस मुल्य को लेने से मना कर दिया। ये गिफ्ट है तुम्हारे लिए। अपना संपर्क नंबर और पता भी दे दिया मुझे। वो मुझसे मेरा नंबर मांगने लगे। मैंने बड़ी ही चतुराई से अपना नंबर देने से मना कर दिया। और मैं वहां से अगले पल में भीड़ को चीरते हुए निकल गया।
मैं वो दिन आजतक नहीं भूला हूं। उसका जिक्र भी शायद आजतक किसी से नहीं किया। किंतु आज उस बात का जिक्र करना अनिवार्य इसलिए हो गया है कि इस तरह के लोग हमारे और आपके बीच मौजूद हैं जो समाज में अराजकता फैलाने और उसको तोड़ने की हर वक्त फिराक में रहते हैं। सभी धर्मों के सभी लोग ऐसे नहीं हैं। वो सभी धर्म का सम्मान करना जरूरी समझते हैं। किंतु कुछ लोग ऐसे अवश्य जरूर है जो समाज और धर्म को तोड़ने की बात करते हैं। मैं उन्हीं लोगों से कैसे बचें इस पर अपनी राय रखना चाहता हूं।
आपको ऐसे किसी हिंसात्मक संगठन या फिर धर्मांतरण मिशनरियों से बचने के लिए कुछ ज्यादा करने की आवश्यकता नहीं है। आप बस थोड़ा जा जागरूक हो जाइए। जागरूक होने के लिए मैं आपसे आपकी ही ब्रेन की ताकत और उसके इन्वेस्टमेंट के बारे में कुछ बताना चाहता हूं।
वैज्ञानिकों के अनुसार 'हमारी ब्रेन की ताकत को सीमित नहीं किया जा सकता है। ये असीमितता का एक अद्भुत भंडार है। इसमें हम ढेर सारा डेटा बिना किसी अवरोध के सुरक्षित कर सकते हैं। जरूरत पड़ने पर हम उसे उत्सर्जित भी कर सकते हैं।' किंतु उत्सर्जित के समय समस्या ये उत्पन्न हो जाती है कि हम उस डेटा को सही तरीके से उत्सर्जित नहीं कर पाते। या फिर उत्सर्जन का मार्ग ही ब्लॉक हो जाता है। ये तब होता है जब हम अपनी ब्रेन का सही इन्वेस्टमेंट रोक देते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय प्रेरक वक्ता एवं बिजनेस कोच डॉक्टर विवेक बिंद्रा जी कहते हैं कि यदि आपको अपने बिजनेस को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना है तो आप अपने उस बिजनेस पर इन्वेस्टमेंट मत कीजिए बल्कि अपनी कर्मचारियों की ब्रेन पर इन्वेस्टमेंट कीजिए। कहने तात्पर्य ये है कि आप अपने सभी कर्मचारियों को सही और प्रोपर ट्रेनिंग दीजिए। जिससे वह कर्मचारी अपने कार्य में कुशल हो जाए और अपनी जिम्मेदारी कंपनी के प्रति बखूबी समझ सके जिससे वह स्वंय ही अपने को और कंपनी को शिखर पे ले जाने को तत्पर हो जाए। यदि बिजनेस पर इन्वेस्टमेंट हो गया और कर्मचारी का ब्रेन वैसा ही रहा तो आपके इन्वेस्टमेंट का डूबने का चांस अधिक रहता है। दूसरे शब्दों में कहें 'आपके इन्वेस्टमेंट पर सफलता के मार्ग से अधिक असफलता के मार्ग का डर अधिक बना रहता है'।
ये तो बात हुई किसी संस्था में ब्रेन इन्वेस्टमेंट की। लेकिन हम इण्डीविजुअली ब्रेन पर इन्वेस्टमेंट कैसे कर सकते? बिल्कुल हम इण्डीविजुअली भी अपने ब्रेन पर सस्ते और अच्छे से इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं। हम सबने एक बात तो अवश्य पढ़ी होगी कि 'किताबें हमारी सबसे प्रिय मित्र हैं जो हमें निस्वार्थ भाव से ज्ञान का भंडार आसानी से उपलब्ध करा देती है'। जैसे ही हम अपने किसी मित्र को कुछ समय देते हैं और हमें उस मित्र से ढेर सारी जानकारियों का ज़ख़ीरा मिल जाता है ठीक उसी प्रकार हमें पुस्तकों को भी समय देने की आवश्यकता है जो आपकी किसी एक अलमारी की किसी एक रैक पर इंतजार कर रही है।
हम ये अनुभव बचपन से ही करते आयें है कि हमने बड़े-से-बड़े एग्जाम को इन्हीं पुस्तकों के माध्यम से परास्त किया हुआ है। हम आज जो कुछ भी है इन्हें पुस्तकों की बदौलत है। हमने या फिर हमारे परिवार ने बिल्कुल सही इन्वेस्टमेंट किया है हमारे ब्रेन पर।
अब समस्या यहां ये उत्पन्न हो जाती है कि हम कैसे ऐसे किसी देश-विरोधी उत्पाती संगठनों और धर्मांतरण मिशनरियों पर विश्वास कर लेते हैं कि ये सही है। कि हम कैसे इनकी ओर खींचें चले आते हैं जो समाज की साम्यवादी विचारधारा के बिल्कुल विपरीत है।
आखिर कैसे?
मैं कहना चाहूंगा कि ये सब हमारी उस निर्बल और मृत सोच का फायदा उठाते है जो हमारे द्वारा ही उपजी गई है। ये लोग बखूबी जानते हैं कि ऐसे लोगों को कहीं भी किसी दिशा भी में आसानी से ब्रेन वॉश करके मोड़ा जा सकता है।
मैं और मेरा मित्र ऊपर घटित घटनाओं से सिर्फ और सिर्फ अपनी जागरूक सोंच की वजह से बचें। और ये हमारी जागरूक सोंच हमारे गहन अध्ययन और तथ्यों कि सही परख के होने की वजह से डेवलप हुई है। मैं यहां अपने और अपने मित्र को बुद्धिजीवी कहने से परहेज़ करता हूं। मैं मानता हूं कि जागरूक होना बहुत आसान है। आप भी लगातार गहन अध्ययन और सही तथ्यों से जागरूक हो सकते हैं। ये एक यूनिवर्सल सत्य है कि यदि आप पुस्तकों के साथ हमेशा ताल-मेल बैठा के रखोगे तो आप हमेशा अपनी ब्रेन में सुरक्षित डेटा को सही समय पर और सही ढंग से उत्सर्जित कर सकोगे। और ऐसे किसी संगठनों से आसानी से बच निकलोगे।
© शक्ति सार्थ्य
Shaktisarthya@gmail.com
[नोट- सभी चित्र साभार गूगल]
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प्रशंसनीय शक्ति भाई
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार !
Deleteनमस्कार शक्ति जी, आपका ये आलेख पढ़ कर मैं इस बात को लेकर बिल्कुल आश्वत हो चुका हूं कि सही ज्ञान होने की बजह से हमें सही मार्गदर्शन तो मिलता ही बल्कि विभिन्न तरहों की साजिशों से भी आसानी से बचा जा सकता है। आपका ब्रेन इन्वेस्टमेंट को लेकर दिया गया ज्ञान नई पीढ़ी के युवाओं के लिए किसी रामबाण से कम नहीं है, सच में पुस्तकें हमारे जीवन में बड़ा बदलाव लेकर आती है। जिसकी शायद ही हमने कोई कल्पना की हो। धन्यवाद ।
ReplyDeleteआपके प्यार और सम्मान के लिए खूब-खूब आभार विवेक जी !
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