पन्ना पलटते-पलटते जब मैँ उस पन्ने पर पहुँचा... सहसा रुक गया... धड़कने मानोँ साथ देने से कतराने लगी हो... सहम गयी होँ... आँखेँ एक दम से सन्न... चौँड़ी... स्थिर... नम... उनमेँ शील आ गयी हो... कुछ तैरने लगा दिमाग की रील से आँखोँ के सहारे... वो पन्ना इतना विचित्र था... मेरा लिखा पहला पन्ना... साहित्य का शुरुआती पन्ना... जिसे मैँने अपनी रफ कापी से बीच से फाड़कर लिखा था... मुझे नहीँ पता था कि मैँ क्या लिखने जा रहा हूँ... फिर भी कलम उठाकर चलाने लगा... वो पन्ना जितना सुरक्षित नहीँ था... जितना की वो पल... सहसा याद आ गया वो पल... पन्ने पे लिखे कुछ हर्फ़... कुछ शब्द... लीक से हठकर चौतरफा अपनी सीमा से निकल कहीँ और सेँधमारी करते मेँरे शब्द... न तो लय थी... न तो कोई अर्थ... था तो वो मेरा सिर्फ पहला साहित्यिक पन्ना... पहली रचना... जो सबसे हसीँ... सबसे यादगार... मेरे आज होने का पहला प्रमाण... वो पन्ना आज मेँरे पास सुरक्षित नहीँ... अधेड़... गंदा... कुछ अजीब सी महक... गुजला हुआ... कमजोर... पर है मेरी ताकत... खुशबु... उजाला... पहचान का पहला प्रमाण... मेरे होने मेँ जितना उसका योगदान है... शायद किसी और का हो... मैँ स्तब्ध हूँ... मेरा वो पन्ना अब अपने अस्तित्व मेँ नहीँ है... मेरे जीवन की शुरुआत करने वाला पन्ना... मेरा पहला पन्ना... बीच से खीँचकर बनाया गया साहित्यिक पन्ना... मेरे लिए पूज्य पन्ना... मेरा अपना पन्ना... मेरा पन्ना... यादोँ का पन्ना... मेरा पन्ना...
(डायरी से...)
१३अप्रेल२०१४
© शक्ति सार्थ्य
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