जब कि नफरत के दरख्तों पे बहार आई है,
आ चल मेरे यार फरिश्तों से उजड़ना सीखें।
भारत के पतन के उस कालखण्ड में, जब किसी आतंकवादी बन चुके युवक के लिए स्वघोषित बुद्धिजीवियों द्वारा देश को वर्षों से गाली दी जा रही हो, जब सरकारी अनुदान के पैसे से शराब पी कर मर जाने वाले रोहित वेमुलाओं को महानायक घोषित करने के प्रयास हो रहे हों, जब देश की राजधानी में ब्यभिचार का अड्डा बन चुके कथित विश्वविद्यालय में राष्ट्र की बर्बादी का स्वप्न पोसा जा रहा हो और संसद को छलनी करने वालों को नायक बनाया जा रहा हो, और जब इंकलाब के नाम पर भारत की बेटियों का सामूहिक बलात्कार हो रहा है, तो नई पीढ़ी के बच्चों के लिए यह कल्पना भी कठिन है कि भारत में ऐसा भी एक समय था जब बीस बाइस वर्ष के युवा इस देश के लिए मृत्यु से विवाह कर रहे थे। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर राष्ट्रद्रोह की आजादी मांगने वालों ने क्या कभी सोचा होगा कि इस आजादी के लिए कितने आजादों को अपने सर में गोली मार लेनी पड़ी थी?
लंबे लंबे बैनरों और नारों के बल पर किसी कायर को नायक बनाने वाले अगर आजाद की जीवनी पढ़ें, तो पता चलेगा कि राष्ट्र नायक किस तरह बनते हैं।
जिस आयु में तुम्हारे नकली नायक मोहल्ले की सड़कों पर क्रिकेट खेलते हैं, उस आयु में भारत का यह नायक बंदूको से खेलता था। जिस आयु में तुम्हारे नायक ने फ़िल्म देखना प्रारम्भ किया, उस आयु में राष्ट्रनायक अंग्रेजो की लाठियां खा रहा था। और जिस उम्र में तुम्हारे नायक ने स्कॉलरशिप के पैसे से दारू पीना और चेतन भगत की किताबें पढ़ कर सन्नी लियोनी का वीडियो देखना प्रारम्भ किया उस उम्र में राष्ट्रनायक पूरी अंग्रेजी सल्तनत को हिला कर बलिदान हो चूका था।
नायक प्रपंचो से नही बनते भारत, कोई सामान्य सा दिखने वाला लड़का जब अपने हिम्मत की स्याही से आतंक की छाती पर मानवता का चित्र उकेरता है, तो युग उसे अपना नायक बना लेता है। उसके सम्मान के लिए मनगढ़न्त कहानियाँ सुना कर राष्ट्र के हृदय में संवेदना पैदा करने की आवश्यकता नही होती, नायक अपने कर्मों से राष्ट्र के हृदय में घर बना लेते हैं और युगों युगों तक देवताओँ की तरह पूजे जाते हैं।
आजाद..... आज आपको याद करते हुए गर्व हो रहा है कि मेरा जन्म भी उसी मिट्टी में हुआ जहां आप गर्दा मचा कर गए थे।
नमन आपको.....
बन्दे मातरम।
[फेसबुक पोस्ट से साभार]
लेखक-
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज बिहार।
Comments
Post a Comment