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पुस्तक चर्चा - इश्क़ तुम्हें हो जायेगा (काव्य संग्रह)



पुस्तक- "इश्क़ तुम्हेँ हो जाएगा" (काव्य संग्रह)
कवियत्री- अनुलता राज नायर
प्रकाशक- हिन्द-युग्म प्रकाशन
मूल्य - ₹ १००/-

पुस्तक चर्चा - शक्ति सार्थ्य
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कविता मन मेँ चल रहे उन मापदण्डोँ का मापन करने मेँ पूर्णतया खरी उतरने के लिए प्रतिबध्द है जिसे किसी और माध्यम से सुलझाने मेँ कठिनता के साथ वक्त भी गवाँना पड़ता है। कविता एक माध्यम ही नही वरन् एक युक्ति भी है जिसे अपनाकर किसी भी शून्यता को जो अनायस ही आपके जीवन मेँ फैल पड़ी है को छाँटने मेँ सक्षम है।

इश्क़ तुम्हे हो जाएगा... ऐसी कल्पनायेँ जो मिथ्या तो हो ही नहीँ सकती किन्तु सच्चाई के साथ चलने पर जरुर डगमगा जाती है। इश्क़ हरेक के नसीब मेँ नहीँ होता और न ही हरेक इसके नियमोँ का पालन कर पाता है, ग़र इश्क़ को इश्क़ तक ही सीमित रखा जाए तो शायद दुनिया मेँ इसके मुरीद कम ही रह जाए... कहने का तात्पर्य ये है कि इश्क़ की वदिँश मेँ उसके पालने मेँ पल रहे इश्क़-पुत्र का थोड़ा टकराव समाज के साथ होना लाज़िमी है, यही टकराव इश्क़ के पुख्तापन और गहराई का प्रतीक है...

'नाकाम इश्क़' की झलक कवियत्री के शब्दोँ मेँ...

एक तूफ़ान की तरह आया था
तेरा इश्क़
अपनी सारी हदेँ लाँघता हुआ
डुबा डाला था मेरा सारा वजूद

नामंजूर था मुझे ख़ुद को खो देना
नामंजूर था मुझे तेरा नमक

सो लौटा दिया मैँने वो तूफ़ान वापस समंदर को
बस रह गए कुछ मोती, अटके मेरी पलकोँ पर
जो लुढ़क आते है गालोँ तक

और अन्तिम पक्तिँ मेँ.. कवियत्री को पढ़कर ये महसूस होता है कि कवियत्री हमेँ क्योँ नाकाम इश्क़ पर टहरने को मना कर देती है, क्योँकि इश्क़ की नाकामी सहेजना चलती गाड़ी को खटारा कर देने जैसा है, फिर क्योँ हम अपनी जिँदगी को खटारा समझेँ..
पक्ति इस प्रकार है-
कि नाकाम इश्क़ की निशानियाँ भी कहीँ सहेजी जाती हैँ !

प्रेम मेँ होने का अर्थ.. कवियत्री के अनुसार-
मैँ प्रेम मेँ हूँ
इसका सीधा अर्थ है
मैँ नहीँ हूँ
कहीँ और..
यदि कवियत्री की माने तो ये सत्य ही है कि हम प्रेम मेँ रहकर कहीँ और की सुध भुला देते हैँ.. और ये भी सत्य है, लव इज़ ब्लाइण्ड!

प्रतीक्षा शब्द एक ऐसा शब्द है जो अनायस ही हमारे चेहरे पर मायूसी की लकीर खीँच डालता है, और फिर इश्क़के भोगी की प्रतीक्षा किसी तपस्या से कम नहीँ है..
मिलोगे तुम मुझे अब
जाने कितने अरसे बाद
लगता है सदियाँ बीत गई
मानो हो किसी
पीछले जन्म का क़िस्सा

जाने कैसे पहचानूँगी तुम्हेँ
तुम भी कैसे जानोगे
कि ये मैँ ही हूँ?

जहाँ प्रेम मेँ लिप्त कवि की कविताओँ के बीच मेँ अहंकार से महामुक्ति की आवाज़ लिए कोई कविता कही जाती है तो प्रेम को पढ़ना और सार्थक लगने लगता है-
हे प्रभु!
मुक्त करो मुझे
मेरे अहंकार से
दे दो कष्ट अनेक
जिसमेँ बह जाए
अंह मेरा
अश्रुओँ की धार से..
ये कहना गलत नहीँ हैँ कि प्रेम मेँ कुछ लोग अंह को पाले हुए जो सफल प्रेम की संज्ञा ही बदल के रखदेते है और प्रेम धज्जियोँ मेँ बँट जाता है... महामुक्ति कविता मेँ कवियत्री ने इस मुक्ति की ही चर्चा की है जो प्रेम को प्रेम की परिभाषा से कहीँ और ले चला जाता है।

कभी पढ़ा है क्या तुमने
अँधेरोँ को
देख सके हो कभी
स्याह काग़ज़ पर उकेरे हुए
कोई शब्द?
उक्त पक्तिँ बेनक़ाब कविता से ली गई है,
किसी भी चीज़ की हकीकत उसके ऊपर चढ़े नक़ाब को बिना हटायेँ सामने नहीँ ला सकते... और पक्ति मेँ बेनक़ाब की जो बात (देख सके हो कभी स्याह काग़ज़ पर उकेरे हुए कोई शब्द?) कही गई वो हमेँ जाँच परख की ओर जाने को प्रेरित करती है, जब तक की आपके प्रेमी का जो नक़ाब भरा चेहरा है सामने नहीँ आता तब तक आप एक असफल प्रेम को भोग रहे होते है।

मोहब्बत की इब्तेदा मेँ कवियत्री का नज़रिया कुछ यूँ है-

तुमने कहा
मेरी आँखो मेँ बसी हो तुम
मैँने कहा
कहाँ? दिखती तो नहीँ
तुमने कहा
दिल मेँ उतर गई
अभी-अभी!

'रेत' कविता मेँ नजरिया-
कौन कहता है
कि तू कण-कण मेँ रहता है
तुझे पाने की जुस्तजू मेँ
भटकती रही
सेहरा की तपिश मेँ
पर जो हाथ आई, वो रेत ही थी
बंद मुट्ठी से भी सरक गई।

और अंत मेँ कुछ ऐसा कहने की कोशिश जो मुझे इस संग्रह को पढ़ते महसूस हुई-
कई कवितायेँ सिर्फ पढ़ने तक ही चली जो इस कविता संग्रह की सबसे कमज़ोर कड़ी हैँ.. उन्हे पढ़ने तक ही महसूस कर सकते है इसके पश्चात आप उन्हेँ भूल जायेंगे जैसे कोई बच्चा रोने के बाद खुश नज़र आता है और वो सोँचता है कि वो रोया कब था।
कविता तब तक अपने अस्तित्व मेँ रहती है जब तक की वह पाठक को सोँचने पर मजबूर न कर देँ.. पाठक की स्मृति से कविता का हटना कविता के अस्तित्व पर खतरा मडराना जैसा।

प्रेम लिप्त इस काव्य संग्रह की सफलता के लिए शुभकामनायेँ साथ ही साथ मेँ अनुलता राज नायर को अच्छी कहानियोँ के साथ साथ कवितायेँ लिखने के लिए ये साहित्य जरुर उनके योगदान से धन्य हुआ होगा जिसे पाठक की आपकी रचनाओं में रुचि देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है।

मेरी ओर से आपको शुभकामनायेँ और बधाई इस संग्रह के लिए !

[२८अक्टूबर२०१४]

© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com

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