पुस्तक- मेरी आँखों में मुहब्बत के मंजर है (काव्य संग्रह)
कवि- दिनेश गुप्ता 'दिन'
मो.+91-9028299524,
ईमेल- dinesh.gupta28@gmail.com
पुस्तक चर्चा - शक्ति सार्थ्य
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इश्क-विश्क, प्यार-व्यार पर न जाने कितनोँ ने लिखा और उनके अन्दाज, अल्फाज़, जज्बात आदि को स्वीकारा भी गया...
इसी परम्परा को लेकर अपने नये अन्दाज, नयेँ अल्फाज़ और जज्बातोँ को लेकर हाजिर हुए हमारे जमाने के उभरते
हुए युवा कवि दिनेश गुप्ता जी।
इन्हे शायर की संज्ञा देने से तनिक भी परहेज़ नहीँ किया जा सकता क्योँकि ये अपनी लेखनी को शायरी के मायनों में 'ढलने' में महारथी भी हैँ....
...प्यार उस पर अमल या फिर दिल का दर्द जो आज के संमलैँगिग होते हुए जमाने पर कुछ फीका सा होता जा रहा है...
कुछ राजनीतिक षणयंत्रों या फिर प्यार
को दागदार करते रिस्ते, चंद बेरुखे अल्फाज़ लिए तेजाब का इस्तमाल करतेँ असफल प्रेमी जो प्यार
की कीमत को सेक्स (ये सार्वजनिक करना जरुरी है) मेँ तौलते हैँ...
सभी युगल जोड़ी को दागदार बनाने
मेँ लगे हुए जिससे प्यार अपनी मूल पहचान खोते
हुए घीसे-पिटे रास्तोँ पर चलते-चलते अपने अस्तित्व को खोने को मजबूर है...
ये संग्रह मूलतः 6-खण्डोँ में विभक्त है... इसके सभी खण्डोँ के अपने-अपने मायने हैँ जो पाठको को निसंकोच बाधेँ रखने में पूर्णतयः खरे उतरते है...
प्यार, रोमांस, राजनीति, भ्रष्टाचार, देशप्रेम, आज का दौर,
हकीकत, उमंग और न जाने क्या-क्या मसाला भरा है इस शायरानेँ काव्य संग्रह में...
आप स्वंय ही देख लीजिए-
मेरी आँखोँ मेँ मुहब्बत के जो मंजर है/
तुम्हारी ही चाहतोँ के समंदर है/
मैँ हर रोज चाहता हूं कि तुझसे ये कह दूं मगर/
लवोँ तक नहीँ आता जो मेरे दिल के अन्दर है...
शायर हर वक्त-बेवक्त अपनेप्या र को यूँ हीँ खोजने
निकलता है फिर न जानेँ क्योँ-
कुछ शब्द नए होँठो पर कुछ गीत पुरानेँ हैँ/
मेरी आँखोँ मेँ अब भी तेरी चाहत के अफसानेँ हैँ/
वहीँ गलियाँ ,वही रुत, वहीँ मौसम, वही मंजर/
फिर क्यूँ हम एक दूजे से इतने आनजाने हैँ...
शायर अब रोमांस की दुनिया मेँ कूद चुका है लेकिन टूटे हुए दिल से न जाने क्या-क्या लिखने की कल्पना कर डालता है
देँखे-
उसके अधरोँ का चुबंन लिखूँ
या अपने होठोँ का कपंन लिखूँ मैँ/
जुदाई का आलम लिखूँ या मदहोशी मेँ तन-मन लिखूँ मैँ/
बेताबी, बेचैनी, बेकरारी, बेखुदी, बेहोशी, खामशीँ/
कैँसे चंद लफ्जोँ मेँ इस दिल की सारी तड़पन लिखूँ मैँ...
शायर अपनी शायरी मेँ प्रेमिका की शिकायत कुछ यूँ दर्ज करता है-
जो आँखोँ मेँ पढ़ लिए होते तूने मेरे दिल के फ़साने/
तो न घूमते तेरी यादोँ मेँ होके यूँ दिवाने/
मुहब्बत को हमारी भी मिल जाती मंजिले/
हर गली हर मोड़पर बयाँ होतेँ हमारे ही अफसानेँ...
भ्रष्टाचार के विरुद्ध यें पक्तियाँ-
माँगा क्या हमने तुमसे अपने ही धन का हिसाब/
लगे दबाने हमको को ही जब न बन पड़ा कोई जबाब...
और न जाने कितने रंगोँ को बिखेर दिया है इस संग्रह मेँ (ये पहले खण्ड की विवेचना है)...
प्रेम से लेकर जुदाई, हकीकत से लेकर ख्बाव, राजनीति से लेकर भ्रष्टाचार और उंमग से लेकर चिँता तक... ये संग्रह अपनी दिलकश शायरी बेवाक टिप्पणी के लिए जाना जाता है जिसमेँ इन्द्रधनुष के से रंग बिखरे हुए है...
ये संग्रह सफलता के कई मायने छूयेगा ये पाठकोँ को तब पता चलेगा जब वो इससे रु-ब-रू होगा !
[२९ दिसंबर २०१३]
© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com
Thanks Bhai for details Review... Its wonderfull.
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