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पुस्तक चर्चा - संवेदना के स्वर (काव्य संग्रह)



पुस्तक- संवेदना के स्वर (काव्य संग्रह)
कवि- उमाशंकर चौबे 'संवेद'
प्रकाशन- उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ (उप्र)
मूल्य- ₹१५०/-

पुस्तक चर्चा- शक्ति सार्थ्य
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कवि ने अपने पहले काव्य संग्रह 'संवेदना के स्वर' से लोगोँ की अंर्तमन संरचना उनका मर्म, संवेदना और ह्रदय मेँ निश्छल प्रेम के बीज बोने की सफलतम कोशिश की है। मुझे लगता है कि ये महज कोशिश  ही नहीँ सफल प्रयास भी है, जिसमेँ कवि चारोँ खानोँ से सफल दिखाई देता है।

 कवि के अनुसार- सोये ह्रदय को स्पंदित करना, एक शांत सरोवर मेँ लहर पैदा करना, पत्थर मन मेँ विचारोँ को आरोपित करना या बजंर धरती पर संवेदनाओँ के बीज लगाना और उस बीज का अंकुरण ही संवेदना का स्वर है। इसी को केन्द्र मानकर बड़ी खूबसूरती से वुना गया है ये काव्य संग्रह!

आइये अब चर्चा करते है इसके अंदर बसी रचनाओँ की-
 इस पुस्तक की दूसरी कविता जिसका शीर्षक 'आ मैँ तुझको गीत सिखा दूँ' से कवि एक ऐसी भावना उकेरने की कोशिश करता है, जिसमेँ एक ऐसे युग की कल्पना है कि स्त्री के पायल की धुन पर पक्षियोँ का करलव जागृति होगा जो अब कहीँ गुम सा हो गया है, मनुष्य का लगाव उसके ह्रदय से जुड़ेगा न कि देह से-,
ओ मन मीत/ आ मैँ तुझको गीत सिखा दूँ/ नवीन सुर के नये ताल पर/ थिरक थिरक कर नाचेँगे,/ तेरे पायल के छम छम से विहग वृन्द/ कुल कुल कलरव मचायेँगे।

 जहाँ कवि ने पुस्तक  की शुरुआत सरस्वती वंदना से करके आस्था के प्रति अपनी संवेदना प्रकट की है वहीँ इसके समापन में माँ के प्रति माँ के स्नेह की चर्चा करते देखा गया-,  माँ तेरे स्नेह की प्याली मेँ/ हमने चंदा मामा को देखा/ माँ जब जब तुमको देखा/ जाने क्या क्या तुझमेँ देखा।

 कवि किसी साधारण आदमी को किस तरह से आँकता नजर आता है और उसके लाचारीपन पर अपनी संवेदना व्यक्त करता है, ये महज किसी की भावना से प्रेरित नहीँ हो सकता  स्वंय ही कवि को इससे गुजरना पड़ा होगा जो कवि के मुखरबिन्दु से ये पक्तियाँ जन्म ले गयी-,
मैँ आदमी हूँ/ मुझे हर किसी ने लूटा/ रिस्तोँ के बाजार मेँ/ अपने परायोँ के घमासान मेँ।

इस काव्य संग्रह मेँ कई तरह के गीतोँ, गजलोँ आदि का समावेश है जो हमेँ कहीँ न कहीँ सोचने पर मजबूर कर देता है। ऐसी ही कवि की गजलोँ मेँ से एक गजल का परिचय आपसे कराना चाहूँगा जिसमेँ कवि देश से विदेश मेँ बस मेँ गये लोगोँ को अपने देश की ओर आकर्षित करते देखा गया है-,
क्या कमी है अपने देश मेँ/ पर देशी बसे क्योँ परदेश मेँ/
तुमको वुलाती है गंगा की धारा/ सरसोँ के फूलोँ पर नाम तुम्हारा !

ऐसी ही विभिन्न रचनायोँ का संगम इस पुस्तक को संग्रहणी बना देती है। जिसे प्रत्येक पाठक सजोँकर रखना चाहेगा।

[७अगस्त२०१३]

© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com

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