कुछ भी निश्चित नहीँ है… खासकर हमारे मन का होना… ये अनिश्चित्ताओँ का एक पुलिँदा है… अथाह समुंद्र… उसी समुंद्र मेँ एक खारापन है… जो स्वप्न को दर्शाता है… ये एक पूरा निकाय है… हम इसकी पारदर्शिता (मूल रुप से प्रकृति को) को चाहकर भी भेद नहीँ सकते… न ही इस पर काबू पा सकते… ये हमारी गलत सोँच का परिणाम है कि हममेँ इसे भेदने की पूर्ण शक्ति है… कुछ भी आदर्श नहीँ है… परन्तु ये कहा जा सकता है कि हम अध्यात्म से कुछ हद तक अपने मन पर काबू पा सकते है… पूर्णतयः अध्यात्मिक होना… पूर्ण रुप से दोषमुक्त होना… ये संभव नहीँ है… पहली बात तो ये कि पूर्णतयः अध्यात्मिक होना किसी ईश्वरीय का होना है… सो तो हम है नहीँ… अध्यात्म हमेँ एकाग्र की ओर ले जाता है… जिसकी यात्रा हमेँ ईश्वरीय दर्शन तक… लेकिन इतनी सामर्थ्य हम मेँ हैँ कहाँ… हमेँ स्वंय मेँ कुछ खोजना होगा… जो हमारे लिए है… जिसमेँ हम निपुण भी होँ… बस यही एक रास्ता है… मन को अपने मेँ नियन्त्रित कर आध्यात्मिक प्रवृति से प्रभु के दर्शन का…
(डायरी से...)
अप्रैल २०१४
© शक्ति सार्थ्य
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