• "रोजर फेडरर" का करिश्माई सफर !
प्रतिभा अपने को उम्र के किसी भी पड़ाव पर धूमिल नहीं होने देती !
वह भीतर की अपरिमित जिजीविषा और अनाहत वासना की अनुप्रेरणा से सतत संचालित होती रहती है!
सागर की अतल गहराई से एक परिच्छेद के रूप में विक्षुब्ध जल प्रवाह की भांति तरंगों और हरहराती लहरों के सौन्दर्य दृश्य रचते जाना उसकी बखूबी होती है!
इसी नैसर्गिक लालसा स्रोत के चलते उसका अविराम प्रवाह सृष्टि के भीतर जारी रहता है।
परसों आस्ट्रेलियन ओपन ग्रैंड स्लैम एरा के सार्वकालिक यौद्धेय वीर पुरुष रोजर फेडरर के महनीय कर्म में ऐसा ही कुछ दिखा !
जिस उम्र , दौर और चरण में लोगों के ठेहुने और शिथिल काया झूलते हुए औंघाने लगती है
वहाँ खूबसूरती और प्राकृतिक शुषमा के धनी देश स्विट्जरलैंड के दिग्गज पुरुष फेडरर के फड़कते बाजुओं और उबलती देह ने टेनिस के इतिहास को एक अलग ही स्तर और चरित्र प्रदान किया !
क्लासिक के अध्याय और गौरव गाथा को फिर से एक रूपक कथा में विन्यस्त किया !
ऐसा फेडरर ही अब तक कर सके हैं
दूजा कोई नहीं !
पर यहाँ तक ---- इस सर्वोत्तम ऊँचाई और शिखर स्पर्श पर आरूढ़ होने के साथ साथ जो एक समानान्तर परिदृश्य उनके संघर्षमय जीवन ने देखा ----- उसे बिना परखे जाने बूझे उनकी महत्तर कीर्ति और विमल प्रतिष्ठा का सही आकलन करना मुश्किल है !
उनके लिए यह राह
यह ऊँचाई
यह अतुलनीय आसमानी कद
कभी इतना आसान नहीं रहा !
• आइये इस वैभव विजय के ही साथ वह पक्ष भी जानें!
अगर टेनिस ग्रैंड स्लैम ओपन एरा के क्षितिज पर राफेल नडाल जैसा धूर्जट योद्धा न आया होता तो रोजर फेडरर को आप टेनिस जगत का निर्विवाद डॉन ब्रेडमैन कह देते !
तब फेडरर ऐतिहासिक नायक और युगपुरुष ही नहीं(अभी तो उन्हें इतना ही कहा जायेगा ---- यद्यपि रहती दुनिया तक यह भी उनकी अमरता के लिए पर्याप्त है!) युगातीत और कालातीत नायक भी कह सकते!
नडाल ने न केवल उनकी बादशाहत को चहर महर कर डाला बल्कि उनके दर्प , आत्मगौरव , आत्म प्रकाशन तक को धूमिल कर दिया था एक समय !
शायद नडाल के आतंक , खौफ और शौर्य ताप से फेडरर हताहत न हुए होते तो "टेनिस के परम पुरुष" वही होते।
अब तक वे लगभग 35 ग्रैंड स्लैम जीत चुके होते !
यह नडाल रूपी महा तूफान था जिसने फेडरर को इतना अभिभूत कर दिया कि एक एक करके पराजयों की श्रृंखला उनके जीवन में रची जाने लगी।
यहां तक कि जोकोविक (जो नडाल के लिए उसी तरह खौफनाक मंजर बनकर मंडराए जैसे नडाल फेडरर के लिए बने थे।
अब नडाल उतने ही डरे थे जोकोविक से जितना फेडरर को नडाल रूपी प्रेत ने डराया था।)
भी अब उनके लिए भारी मुसीबत बनकर उभरे !
और इस भय , कंपकंपी और नैराश्य के हतदर्प माहौल में अंतिम आघात फेडरर पर ही ज्यादा भारी पड़ा और जो जोकोविक फेडरर को देखकर छल्ल छुल्ल करके मूत मारते थे 2011 तक ---- अब उन्होंने फेडरर के पतलून गीले करने शुरू कर दिए।
फेडरर की महानता और अनूठा शौर्य इसमें है कि इतने जांबाज दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच से अपने अस्तित्व समाप्त हो जाने वाली स्थिति तक पहुंचकर भी अपनी दुर्दम्य जिजीविषा और संकल्प प्रेरणा को अतल स्रोत में साबुत जिन्दा रखा।
और जब ये तूफान और बर्बादी के मंजर ढलान पर पहुंचे --- उन्होंने अपनी सरसराती वासना को पुनः धरातल पर प्रकट किया ---- और वो आसमानी ऊंचाई हासिल की,
अपना स्वर्ण सिंहासन उस सातवें लोक पर प्रतिष्ठित किया जहां पहुंचने के लिए फिर किसी के लिए इतना आसान नहीं रह गया है!
टेनिस , कुश्ती, बैडमिंटन और मुक्केबाजी ---- यही तो असली प्रतियोगिताएं हैं जिसमें एकल मुकाबला सीधा सबूत है आपकी अपरम्पार शक्तिशालिनी योग्यता और सामर्थ्य बोध का!
फेडरर की असीम महत्वाकांक्षा, अथाह ऊँचाई तय करने की कर्म प्रेरणा और इतने दीर्घकाल तक अपने शारीरिक सौष्ठव को स्वस्थ, परिपुष्ट और सक्रिय रख सकने की बलवती अभिलाषा उन्हें उनके समकालीन नायकों से आगे लेकर गयी ----- इसमें सन्देह नहीं !
किन्तु अगर उनके सशक्त व बलशाली प्रतिद्वंद्वी यही रास्ता स्वयं अख्तियार करेंगे ---- तो उनका रिकार्ड अभी इतना दूर नहीं खड़ा है
जिसे वे अपनी गिरफ्त में ले न पायें !
फिलहाल ---- आज तो फेडरर तुम्हीं हो सब कुछ !
एक भद्र , शिष्ट और अभिजात्य गरिमा से लैस सुदर्शन पुरुष जिस पर उसका देश अभिमान और अनुराग रखता है !
इतराता है
मदमाता हुआ झूमता है !
© शिव कुमार
समाज कल्याण विभाग
103, अरुणा नगर, जनपद- एटा (उत्तर प्रदेश)
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