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अतीत का नगर - मुअन जोदड़ो - इंजी. एस डी ओझा



अतीत का नगर - मुअन जोदड़ो ।

मुअन जोदड़ों का अर्थ है - मुर्दों का टीला । इस मुर्दे के टीले को जब खोदा गया तो संसार की प्राचीनतम सभ्यता का पता चला । सरस्वती व सिंध नदियों के तट पर बसे हड़प्पा और उसके हीं एक अंग मुअनजोदड़ों के बारे में बहुत हीं तथ्य परक जानकारी मिली । ये दोनों नगर विश्व के सबसे नियोजित नगर थे । सिंधु घाटी की सभ्यता का सबसे बड़ा नगर मुअन जोदड़ो है । इस सभ्यता को सिंधु सरस्वती सभ्यता भी कहते हैं । कुछ विद्वान इसे हड़प्पा सभ्यता का हीं एक रूप मानते हैं । वैसे यह निर्विवाद सत्य है कि यह सभ्यता विश्व की महान सभ्यताओं में से एक है , जिसने मानव का क्रमिक विकास देखा है ।

सिंधु घाटी की सभ्यता 13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी । यह सभ्यता न राज पोषित थी न धर्म पोषित । अगर थी तो केवल समाज पोषित । इसमें रंच मात्र का भी आडम्बर नहीं था । यही कारण था कि घर लगभग एक जैसे हीं थे । खुदाई से किसी राजा का राज महल नहीं मिला । एक छोटा मुकुट पहने किसी दाढ़ी वाले नरेश की मूर्ति जरूर मिली है , जो साबित करती है कि यहां राज तंत्र था , पर राजशाही बिल्कुल भी नहीं थी । नगर में सुख शांति थी । नगर की वास्तुकला , साफ सफाई बेजोड़ थी । सिंधु सभ्यता की जल आपूर्ति अव्वल दर्जे की थी । प्रत्येक घर में एक स्नान घर जरुर होता था । गंदा पानी बहने के लिए नालियां बनी होती थीं । नालियां अक्सर ढंकी होती थीं । गंदा पानी एक हौदी में एकट्ठा होता था जहां से यह बड़ी नालियों में बहता था । बड़ी नालियों से यह गंदा पानी खुले क्षेत्र में छोड़ दिया जाता । सूरज की रोशनी में इस पानी का ऑक्सीडेशन हो जाता था ।

लोग कुंआ खोदने में उस्ताद थे । अकेले मुअन जोदड़ो नगर में 700 कुंए थे । कुएं पक्के ईंटों के होते थै । कुएं जीवन दायिनी थे । घर का दरवाजा मुख्य सड़क की तरफ नहीं खुलता था । दरवाजे पर पहुंचने के लिए गलियों से होकर गुजरना पड़ता था । इसका कारण था । मुख्य सड़क पर निकास होने से धूल गंदगी से साबका ज्यादा पड़ता । दूसरी बात भी थी । इससे प्राईवेसी को भी खतरा होता । मुख्य सड़क से आते जाते लोग बिला वजह घरों में तांक झांक करते । उस जमाने के लोगों को भी इस बात का पता था । लेकिन हमें नहीं पता । हम आज भी निकास मुख्य सड़क की तरफ करते हैं ।

आज भी ये घर उसी शान से खड़े हैं । इनकी दीवारें बोलती सी खड़ी हैं । सीढ़ियां ऊपर जाती जाती अचानक रुक सी गयीं हैं । इन्हीं को देखकर शायद गुलजार ने लिखा होगा -

अपने आप रातों में ,
चिलमनें सरकती हैं ।
चौंकते हैं दरवाजे ,
सीढ़ियां धड़कती हैं ।
           अपने आप , अपने आप ।

खुदाई से खेती के औजार मिले हैं , पर एक भी अस्त्र शस्त्र नहीं मिला है । एक भी तलवार , एक भी त्रिशूल , एक भी भाला नहीं मिला । इसी तरह से विभिन्न जानवरों के अवशेष  चित्र या मृदभाण्ड मिले तो हैं , पर किसी भी हिंसक जानवर शेर , बाघ और भालू का किसी प्रकार का अवशेष नहीं मिला है । यह दर्शाता है कि सिंधु घाटी के लोग कितने अहिंसक व शांति प्रिय थे । मातृ सत्ता के उपासक ये लोग कांस्य युग का आविर्भाव कर क्यों और कैसे विलीन हो गये , किसी को भी आज तक नहीं पता । इतिहासकार लगे हुए हैं । इनकी लिपि भी हम अभी तक नहीं पढ़ पाएं हैं । इतिहासकार लगे हुए हैं । सभ्यता बनती है और मिटती है , पर उनका इतिहास अमर होता है । अभी हम इतिहास खंगाल रहे हैं । खोज रहे हैं क्यों उजड़ा यह महकता हुआ चमन ?


लेखक परिचय-
इंजी. एस डी ओझा
आई टी बी पी में डिपुटी कमाडेंट पद से 2012 में सेवानिवृत्त।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जिला बलिया का रहने वाले हैं। किंतु वर्तमान निवास स्थान चण्डीगढ़ में है।

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