क्यों?
अब सुनाई नहीं देती किलकारी
बेमतलब की हँसी
न दिखाई देती हैँ अब वो हरकतें
हरपल की शरारतें
कितना बुरा लगता था मुझे तेरा होना
तू खलता था मुझे
खटकता था पल दर पल
वक्त बेवक्त तेरा मिल जाना
न जानें क्यों तड़पता हूँ अब
न जाने क्यों तकता हूँ अब
कहीं किसी रास्ते से तू आ जाये
कहीं से भी सुनाई दे जाये तेरी आवाज-
कहाँ चला गया तू
क्यों चला गया तू
मैं तुझे कहाँ तलाश करुं
कहाँ से लाऊँ तुझे
मैं घुट रहा हूँ यहाँ
तेरी यादें भी सताती है मुझे
तेरे साथ किया वो झगड़ा-
तेरी डिक्सनरी में तो
नाराजगी नामक शब्द था ही नहीं
फिर क्यों मुहँ मोड़ लिया
क्यों चला गया इतनी दूर
जहाँ से आने की
इजाजत नही दी जाती
तू तो बैठ गया वहाँ गोद में उनकी
और मुझे छोड़ गया
काटों पर
हमेशा तुझसे शिकायत रही
आज भी है
फिर क्यों सफाई नहीं देता तू
पहले की तरह
क्यों नहीं पकड़ता कान अपने
क्यों नहीं चूमता मुझे
क्यों नहीं वश में करता मुझे
क्यों ?
क्यों ?
आखिर क्यों?
[१८मई२०१४]
© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com
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