2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने भारत को आज़ाद कराने के साथ-साथ भारतीयों को अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाया। ‘हिंद स्वराज’ से लेकर ‘सत्य के मेरे प्रयोग’ जैसी महत्वपूर्ण कृतियों में अपने जीवन की समझ को बयां करने वाले बापू की इन रचनाओं को सिर्फ़ भारत के ही नहीं दुनिया भर के लोग पढ़ते हैं। बापू की रचनाओं को पढ़ने के बाद आप इस बात से बिलकुल इत्तेफ़ाक रखेंगे कि उनका जीवन ही एक संदेश है।
भले ही आज बापू के विचार लोगों के साथ न हों लेकिन भारत की मुद्रा पर उनकी तस्वीर होने की वजह से लोग कम से कम उनके बारे में जानते तो हैं। अगर आप सही में बापू को जानना व समझना चाहते हैं तो उनके विचारों को अपने जीवन में उतारिए, जिसे लोगों ने गांधीगिरी का नाम दिया है। महात्मा गांधी की बातें भले ही छोटी हों लेकिन उनकी सीख बेहद बड़ी है!
आज ही के दिन ३० जनवरी १९४८ को बापूजी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
आइये आज बाबू जी की पुण्यतिथि पर हम उनके द्वारा कहे गए अनमोल विचारों को पढ़ते हुए उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं...
1. भूल करने में पाप तो है ही, परन्तु उसे छुपाने में उससे भी बड़ा पाप है।
2. हम जो दुनिया के जंगलों के साथ कर रहे हैं वो कुछ और नहीं बस उस चीज का प्रतिबिम्ब है जो हम अपने साथ और एक दूसरे के साथ कर रहे हैं।
3. सुबह का पहला काम ये करें कि इस दिन के लिए संकल्प करें कि- मैं दुनिया में किसी से डरूंगा नहीं- मैं केवल भगवान से डरूं। मैं किसी के प्रति बुरा भाव ना रखूं। मैं किसी के अन्याय के समक्ष झुकूं नहीं। मैं असत्य को सत्य से जीतूं। और असत्य का विरोध करते हुए, मैं सभी कष्टों को सह सकूँ।
4. जो समय बचाते हैं, वे धन बचाते हैं और बचाया हुआ धन, कमाए हुए धन के बराबर है।
5. भविष्य में क्या होगा, मै यह नहीं सोचना चाहता। मुझे वर्तमान की चिंता है। ईश्वर ने मुझे आने वाले क्षणों पर कोई नियंत्रण नहीं दिया है।
6. शारीरिक उपवास के साथ-साथ मन का उपवास न हो तो वह दम्भपूर्ण और हानिकारक हो सकता है।
7. आपकी मान्यताएं आपके विचार बन जाते हैं,आपके विचार आपके शब्द बन जाते हैं, आपके शब्द आपके कार्य बन जाते हैं, आपके कार्य आपकी आदत बन जाते हैं, आपकी आदतें आपके मूल्य बन जाते हैं, आपके मूल्य आपकी नियति बन जाती है।
8. कुछ ऐसा जीवन जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसा सीखो जिससे कि तुम हमेशा के जीने वाले हो।
9. लम्बे-लम्बे भाषणों से कहीं अधिक मूल्यवान है इंच भर कदम बढ़ाना।
10. हमें स्वच्छता और सफाई का मूल्य पता होना चाहिए... गंदगी को हमें अपने बीच से हटाना होगा... क्या स्वच्छता स्वयं ईनाम नहीं है?
11. मेरा मतलब यह नहीं कि पूजा-पाठ छोड़ दिए जाएं। मन की शांति के लिए यह सब करना भी जरूरी है। पर यदि मेरे लिए लेटे-लेटे चरखा चलाना संभव हो और मुझे लगे कि इससे ईश्वर पर मेरा चित्त एकाग्र होने में मदद मिलेगी तो मैं जरूर माला छोड़कर चरखा चलाने लगूंगा। चरखा चलाने की शक्ति मुझमें हो और मुझे यह चुनाव करना हो कि माला फेरूं या चरखा चलाऊं, तो जबतक देश में गरीबी और भुखमरी है, तबतक मेरा निर्णय निश्चित रूप से चरखे के पक्ष में होगा और उसी को मैं अपनी माला बना लूंगा।
12. सुख बाहर से मिलने की चीज नहीं, मगर अहंकार छोड़े बगैर इसकी प्राप्ति भी होने वाली नहीं।
13. गलत परंपरा के जोर पर ही मूर्ख और निकम्मे लोग भी स्त्री के ऊपर श्रेष्ठ बनकर मजे लूट रहे हैं, जब कि वे इस योग्य हैं ही नहीं और उन्हें यह बेहतरी हासिल नहीं होनी चाहिए। स्त्रियों की इस दशा के कारण ही हमारे बहुत-से आंदोलन अधर में लटके रह जाते हैं।
14. महिलाओं को सलाह है कि वे सभी अवांछित और अनुचित दबावों के खिलाफ विद्रोह करें। इस तरह के विद्रोह से कोई क्षति होने की आशा नहीं है। इससे तर्कसंगत प्रतिरोध होगा और पवित्रता आयेगी।
15. काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है।
16. शिक्षा अंग्रेजियत के पीछे भागने, अपने घर परिवार से अलग- थलग करने वाली या फिर सिर्फ ज्ञान जानने और रटने पर मजबूर करने वाली नहीं हो; बल्कि व्यावहारिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों को विकसित करने वाली होनी चाहिए।
17. सत्य कभी भी ऐसे कारण को क्षति नहीं पहुंचाता जो उचित हो।
18. उस पल, जब हम किसी व्यक्ति के मकसद पर शक जताते हैं; वह कुछ भी करे बेकार ही रहता है।
19. एक अच्छी किताब एक अच्छा शिक्षक है।
20. सच्चे प्रजातंत्र में नीचे से नीचे और ऊंचे से ऊंचे आदमी को समान अवसर मिलने चाहिए।
20. यदि मैं स्त्री के रूप में पैदा होता तो मैं पुरूषों द्वारा थोपे गए किसी भी अन्याय का जमकर विरोध करता तथा उनके खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद करता।
21. अर्थव्यवस्था को नैतिक सोच से अलग नहीं किया जा सकता है अपितु आर्थिक विकास भी नैतिकता पर ही आधारित होना चाहिए।
22. कुरीति के अधीन होना कायरता है, उसका विरोध करना पुरुषार्थ है।
23. विश्वास को हमेशा तर्क से तौलना चाहिए। जब विश्वास अँधा हो जाता है तो मर जाता है।
24. हो सकता है हम ठोकर खाकर गिर पड़ें पर हम उठ सकते हैं; लड़ाई से भागने से तो इतना अच्छा ही है।
25. गरीबी दैवी अभिशाप नहीं, बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है।
26. खुशियाँ तभी हैं जब आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, सामंजस्य में हों।
27. यह बिल्कुल साफ है कि हिन्दू , मुसलमान, सिख, पारसी, ईसाई तथा दूसरी जातियों की एकता के बिना स्वराज्य की बात करना ही व्यर्थ है, यदि हमें आज़ादी हासिल करनी है तो विभिन्न समुदायों को मित्रता के अटूट बंधन में बांधना ही होगा। (और आजादी क़ायम रखने के लिए भी)
28. अगर हममें विनम्रता हो तो हम जीवन के महानतम पाठ तथाकथित अबोध बच्चों से सीख सकते हैं, उनके लिए बड़ी उमर के विद्वानों के पास जाने की आवश्यकता नहीं है।
29. यह स्वास्थय ही है जो हमारा सही धन है, सोने और चांदी का मूल्य इसके सामने कुछ नहीं।
30. कोई त्रुटी तर्क-वितर्क करने से सत्य नहीं बन सकती और ना ही कोई सत्य इसलिए त्रुटी नहीं बन सकता है क्योंकि कोई उसे देख नहीं रहा है।
31. मैं सिर्फ लोगों के अच्छे गुणों को देखता हूँ, ना कि उनकी गलतियों को गिनता हूँ।
32. कमजोर किसी को माफ नहीं कर सकते, माफ करना मजबूत लोगों की निशानी है।
33. अहिंसा की परिभाषा बड़ी कठिन है। अमुक काम हिंसा है या अहिंसा यह सवाल मेरे मन में कई बार उठा है। मैं समझता हूँ कि मन, वचन और शरीर से किसी को भी दुःख न पहुंचाना अहिंसा है। लेकिन इस पर अमल करना, देहधारी के लिए असंभव है।
34. सात घनघोर पाप: काम के बिना धन; अंतरात्मा के बिना सुख; मानवता के बिना विज्ञान; चरित्र के बिना
ज्ञान; सिद्धांत के बिना राजनीति; नैतिकता के बिना व्यापार; त्याग के बिना पूजा।
35. एक कृत्य द्वारा किसी एक दिल को ख़ुशी देना, प्रार्थना में झुके हज़ार सिरों से बेहतर है।
36. डर शरीर की बीमारी नहीं है, यह आत्मा को मारता है।
37. आप मानवता में विश्वास मत खोइए। मानवता सागर की तरह है; अगर सागर की कुछ बूँदें गन्दी हैं, तो सागर गन्दा नहीं हो जाता।
38. जिस दिन प्रेम की शक्ति, शक्ति के प्रति प्रेम पर हावी हो जायेगी, दुनिया में अमन आ जायेगा।
39. हमेशा अपने विचारों, शब्दों और कर्म के पूर्ण सामंजस्य का लक्ष्य रखें. हमेशा अपने विचारों को शुद्ध करने का लक्ष्य रखें और सब कुछ ठीक हो जायेगा।
40. विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता की जननी है।
41. हिंसक गुंडागिरी से न तो हिंदू धर्म की रक्षा होगी, न सिख धर्म की। गुरु ग्रंथ साहब में ऐसी शिक्षा नहीं दी गई है। ईसाई धर्म भी ये बातें नहीं सिखाता। इस्लाम की रक्षा तलवार से नहीं हुई है। आपको अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी होगी। वह रक्षा आप तभी कर सकते हैं जब आप दयावान और वीर बनें और सदा जागरूक रहेंगे, अन्यथा एक दिन ऐसा आएगा जब आपको इस मूर्खता का पछतावा होगा, जिसके कारण यह सुंदर और बहुमूल्य फल आपके हाथ से निकल जाएगा। मैं आशा करता हूं कि वैसा दिन कभी नहीं आएगा। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि लोकमत की शक्ति तलवारों से अधिक होती है।
42. अपनी गलती को स्वीकारना झाड़ू लगाने के समान है जो धरातल की सतह को चमकदार और साफ़ कर देती है।
43. हो सकता है आप कभी ना जान सकें कि आपके काम का क्या परिणाम हुआ, लेकिन यदि आप कुछ करेंगे नहीं तो कोई परिणाम नहीं होगा।
44. यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती है।
45. प्रेम की शक्ति दण्ड की शक्ति से हजार गुनी प्रभावशाली और स्थायी होती है।
46. एक कायर प्यार का प्रदर्शन करने में असमर्थ होता है, प्रेम बहादुरों का विशेषाधिकार है।
47. क्रोध और असहिष्णुता सही समझ के दुश्मन हैं।
48. निरंतर विकास जीवन का नियम है , और जो व्यक्ति खुद को सही दिखाने के लिए हमेशा अपनी रूढ़िवादिता को बरकरार रखने की कोशिश करता है वो खुद को गलत स्थिति में पंहुचा देता है।
49. कुछ करने में, या तो उसे प्रेम से करें या उसे कभी करें ही नहीं।
50. कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं।
51. जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है।
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