मौला तुम..!
मौत की दहलीज़
पर बैठा हूँ,
खुद को सब्र देने..,
मौला तुम इतना अता करना
कि चलने न पाये उनको
मेरी मौत का पता
पर बैठा हूँ,
खुद को सब्र देने..,
मौला तुम इतना अता करना
कि चलने न पाये उनको
मेरी मौत का पता
आये मेरे राख के ढेर पर
एक आँधी,
मिला देना मौला तुम
मुझे,
जहाँ हो बंजर जमीं
एक आँधी,
मिला देना मौला तुम
मुझे,
जहाँ हो बंजर जमीं
भले ही न मिले मुझे
अन्तिम स्नान
किंतु पिला देना तुम पानी
चिड़ियोँ के दुश्मन
बाज को
अन्तिम स्नान
किंतु पिला देना तुम पानी
चिड़ियोँ के दुश्मन
बाज को
मौला लेकर सन्देश मेरा, तुम !
बरसा देना
उन शहीदोँ पर
जिन्हे मै सलाम
न कर सका !
बरसा देना
उन शहीदोँ पर
जिन्हे मै सलाम
न कर सका !
पैगाम-ऐ-मोहब्बत का
लेकर
धूप से मिला देना
छाँव को तुम, मौला !
लेकर
धूप से मिला देना
छाँव को तुम, मौला !
मौला !
करना करम इतना
इस धरती पर तुम
जिये मरने के बाद भी
गरीब किसानो की हुकुमतें,
करना करम इतना
इस धरती पर तुम
जिये मरने के बाद भी
गरीब किसानो की हुकुमतें,
चले हवा राहतों की
बरसे प्यार उनमें
ठोकरें भी खुद ठुक जाये
गढ़ी रहने के तत्पश्चात भी
बरसे प्यार उनमें
ठोकरें भी खुद ठुक जाये
गढ़ी रहने के तत्पश्चात भी
चाहें बन्द क्यों न रह जायें,
मेरी आँखे
खुली रह जायें,
ये धरती
करने सम्मान तेरा, मौला !
मेरी आँखे
खुली रह जायें,
ये धरती
करने सम्मान तेरा, मौला !
[जनवरी २०१३]
© शक्ति सार्थ्य
ShaktiSarthya@gmail.com
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[नोट- चित्र साभार गूगल]
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