1- इतिहास से खिलवाड़ :--
जिन लोगों ने कभी इतिहास को उठाकर देखा तक नहीं है वे भी जब विशेषज्ञों की तरह जब राय देते हैं कि फ़िल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है तो मेरा भी कहना है कि करणी सेना द्वारा किये गये विरोध भी कुछ आपत्तिजनक नहीं है , सिवाय उलूल जुलूल बयानों और राष्ट्रीय संपत्ति को क्षति पहुंचाने के अलावा और वो भी अगर वाकई करणी सेना ने किया हो तो ।
यहां तक कि अगर करणी सेना का कोई उग्र युवा अर्णव गोस्वामी जैसे एकाध बिकाऊ पत्रकार जिसे अलाउददीन व पद्मिनी के पूर्व प्रस्तावित व बाद में हटाये गये ड्रीम सॉंग तक में कुछ गलत नहीं लगता और अशोक पंडित जैसे भगोड़े बेशर्म चापलूस को तबीयत से धुन देता तो और ज्यादा सही सबक होता इस सैकुलर गिरोह को ।
इस फ़िल्म में सबसे बड़ा खिलवाड़ तो यही है कि फ़िल्म महारानी पद्मिनी , रत्नसेन और गोरा बादल जैसे हिंदू गर्व प्रतीकों पर नहीं बल्कि खिलजी पर केंद्रित है । आज आधुनिकता की चकाचौंध में खोये कूल ड्यूड्स को कैसे पता लगेगा कि बादल नाम का 16 वर्षीय किशोर भी था जिसने इन कूल ड्यूडस की उम्र में दुर्दांत अफगान तुर्क खिलजियों की सेना में हाहाकार मचा दिया ।
क्या भंसाली ने इसे दिखाया ?
नहीं ।
उसने हिंदू कैशोर्य के इस वीरत्व को छिपाकर राणा रतन सिंह को छुड़ाने का श्रेय किसे दिया ? अलाउददीन की रानी को ।
यानि कि एक तीर से दो शिकार
प्रथम , हिंदू-मुस्लिम एकता का बॉलीवुडिया छोंक लगाना जो ऐसी हर ऐतिहासिक फ़िल्म का चिरस्थाई शगल बन चुका है और साथ ही ये भी सिद्ध करना कि हर मुसलमान बुरा नहीं होता ।
द्वितीय , राजपूती शौर्य के एक सितारे की वीरगाथा छिपा ली गयी कि कहीं वो टीन एजर हिंदू लड़कियों जो कि इस्लामी भेड़ियों का मुख्य शिकार हैं , का रोल मॉडल ना बन जाये वरना फिर लव-जिहाद के लिये जीभ लपलपाते खिलजियों को कौन पूछेगा ?
इतिहास के इस खिलवाड़ को अगर कलाकार की क्रिएटिविटी कहते हैं तो भंसाली को पड़े हर थप्पड़ को मैं चुम्मा कहूंगा और दुआ करता हूँ कि भंसाली गिरोह को ऐसे चुम्मा और मिलें ।
2- मुस्लिम आक्रांताओं का छवि रूपांतरण :--
द्वितीय विश्वयुद्ध में गोबेल्स के प्रोपेगेंडा अभियान , और भारतीय सिनेमा के माध्यम से हिंदू प्रतीकों के जनता पर बढ़ते प्रभाव को देखकर कम्यूनिस्ट बुद्धिजीवियों व कलाकारों ने सिनेमा , रंगमंच व शिक्षा का प्रोपेगेंडा में महत्व समझकर सूचना और शिक्षा के तंत्र पर नियंत्रण कर लिया । अब यह नियंत्रण दाऊद के माध्यम से सऊदी अरब और चीन के हाथों में है और #खान #तिकड़ी उनके सबसे ताकतवर मोहरे । जरा याद करें ---
गुलशन कुमार के साथ क्या हुआ ?
विवेक ओबेरॉय , अभिजीत , सोनू निगम , अनुपम खेर , परेश रावल के फिल्मी कैरियर क्यों डूब रहा है ?
सलमान खान हिरण शिकार प्रकरण और फुटपाथ में लोगों को रौंदने के प्रकरण से कैसे छूट गया ?
सत्यमेव जयते में आमिर धृष्टतापूर्वक सिर्फ हिंदुओं की कुरीतियां दिखाता है । क्या तीन तलाक , हलाला , इस्लामिक कट्टरता पर कोई एक भी एपीसोड आया ??
क्या आपको ये सब एक संयोग लगता है ?
अगर हाँ , तो या तो आप धूर्त हैं या भेरी क्यूट ।
वास्तव में बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्री पूरी तरह दाऊद , आई एस आई व पैट्रो डॉलरों के माध्यम से मुस्लिमों के कब्जे में हैं और जो थोड़े बहुत हिंदू दिखाई दे रहे हैं वे केवल मुस्लिमों के सामने घुटने टेककर बचे हुये हैं । मुस्लिम बॉलीवुड का उपयोग बहुत शातिराना ढंग से कर रहे हैं ।
उदाहरण के लिये ---
हिंदू धर्मांतरण के इस्लामिक अभियान हेतु लव जेहाद को बढ़ावा देने के लिये आकर्षक हीरो हृत्विक को अकबर के रूप में पेश किया गया ।
उसके बाद लवजेहाद के मामले में आये जूम को जरा याद करो क्योंकि ऐसी हिंदू लड़कियों को उन मुस्लिम लड़कों में 'अकबर' और खुद में 'जोधा' दिखने लगी ।
लेकिन बाहुबली ने इस अभियान में फच्चर डाल दिया और लड़कियों का रोल मॉडल हिंदू नायक बाहुबली व उसे साकार करने वाला प्रभास बन गया । तिलमिलाए मुस्लिम बॉलीवुड से इसका जवाब आना ही था और वो है पद्मावत जिसका नाम वास्तव में होना चाहिये था खिलजावत ।
बहुत कम लोगों को नारी मनोविज्ञान के इस तथ्य का पता होगा कि लड़कियाँ और औरतों को आक्रामक और क्रूर व्यक्तित्व आकर्षित करते हैं , इसीलिये ख़िलजी के चरित्र को रणवीर सिंह जो लड़कियों का ड्रीम ब्वॉय है के माध्यम से पेश किया गया ।
इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव को देखना हो तो दिल्ली विश्वविद्यालय के कैम्पस में लड़कियों की प्रतिक्रियायें देख लीजिये और प्रतीक के रूप में एक पिक नीचे संलग्न है ।
बेचारी आधुनिकता की मारी हिंदू लड़कियां जिन्हें ये पता तक नहीं कि हृत्विक व रणवीर के रूप में अकबर और खिलजी द्वारा पद्मिनियों के रूप में उनका शिकार किया जा रहा है और इसमें राघव चेतन का काम किया जा रहा भंसाली , गोवारिकर व अशोक पंडित जैसे हिंदू नामधारी दलालों द्वारा और कुट्टनियों का काम कर रहीं हैं हर रोज मर्द बदलने वाली फेमनिस्ट शूर्पणखाएं ।
इससे बचने का एक ही उपाय है , कोचिंग्स , स्कूल , विश्वविद्यालयों में विशेषतः डी यू , जे एन यू टाइप के विश्वविद्यालयों में वास्तविक भारतीय इतिहास को प्रस्तुत करना , लड़कियों को भारत के महानायकों और विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं और उनके वर्तमान ब्रीड वंशजों से परिचित कराना ।
अगर हिंदू सरकार इस दिशा में नहीं चेती तो हिंदुओं की हार तय है क्योंकि अब आग आपके घर के अंदर तक पहुंच गयी है । आज की लड़कियों की रोलमॉडल पद्मिनी नहीं जोधा है और उन्हें रत्नसेन बना लल्लू शाहिदकपूर नहीं बल्कि खूँख्वार दिख रहे रणवीर में खिलजी के रूप में जुनूनी प्रेमी ज्यादा आकर्षित करता है ।
ये सिर्फ एक फ़िल्म नहीं इस्लामी षडयंत्र है जो मीठे जहर के रूप में हिंदू लड़कियों को चटाया जा रहा है ।
[फेसबुक से साभार ]
© देवेंद्र शिकरवार
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