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अंतिम पत्र प्रेमिका के नाम - शक्ति सार्थ्य

सुनो प्रिये,
              शायद तुम्हें ये मालूम न हो कि मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूं। मेरा प्रेम देह की बुनियाद पर टिका न होकर सीधे हमारी आत्मा के मिलन का प्रतीक है। हां, मैंने जरुर कुछ बंधनों में बंधे होने के कारण हमारे प्रेम को अभिव्यक्त नहीं होने दिया। हां, मैंने उन बंधनों के कारण ही हमारे प्रेम को सिर्फ मूक प्रेम ही रहने दिया। हां, मैं कह सकता हूं कि मेरे इस प्रेम में प्रेम जैसा कुछ भी तुम्हें प्रतीत न हुआ हो। किन्तु ये प्रेम आत्मा की उस गहराई तक लिप्त है जिसका प्रेम-बंधन भले ही इस जन्म में न हो पाए, किन्तु ये हमारे अगले आने वाले अनन्त जन्मों का साक्षी अवश्य होगा।
             मैं कह सकता हूं कि ये जन्म हमारे प्रेम की एक झलक मात्र था। जिसका हमारी आत्मा में विलीन होना अनिवार्य था। हमारे गहरे आत्मबोध के लिए इस जन्म में न मिलना ही बेहतर था। ये महसूस कराने के लिए कि प्रेम में बिछुड़ने का महत्व क्या होता है? क्या असर पड़ता है जुदाई का हमारे भीतर? क्या हम औरों की तरह वियोगी हो जायेंगे? या फिर हम भी उनकी तरह ही आत्मदाह की बेवकूफियां करेंगे।
          नहीं! हम उन जैसी बेवकूफाना हरकतें बिल्कुल भी नहीं करेंगे। क्योंकि प्रकृति का दिया हुआ सबकुछ अभी शेष है। हमें प्रकृति में विलीन होना चाहिए। हमें ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। हमें धन्यवाद करना चाहिए उस तर्कशक्ति का जिसने हमें हर पल संभलकर रहने की सलाह दी, समाज की मान-मर्यादा को सम्मान करने की प्रबल इच्छा प्रदान की। और सबसे महत्वपूर्ण हमारे पूर्वजों का जिसका हम अभिन्न अंश है।
           मैं जानता हूं कि हमारा ये फैसला जल्दबाजी का भी फैसला हो सकता है। किंतु मैं इसे जल्दबाजी कहने से कतराता हूं। मैं ये भी नहीं कहूंगा कि मैं समझदार हूं, किंतु ये अवश्य कहूंगा मैं नादानी से बच गया।
          अब शायद तुम समझोगी कि मैं हमारे प्रेम को कितनी चपलता से नादानी समझ रहा हूं। बात ये नहीं है प्रिये! नादानी का अर्थ सिर्फ न समझ ही नहीं होता है बल्कि मैं इसका अर्थ प्रेम के आगोश में बहकर किसी अनहोनी को गले लगा लेने से है। जिसका दुष्परिणाम हमारे परिवारों को बिखेर देगा। उनकी उम्मीदों पे मानो भूचाल-सा आ जायेगा। हमें सिर्फ अपने तक नहीं सोचना हैं। हमारे आगे और भी लोग हैं और भी दुनिया है। मैं नहीं चाहता हमारे बजह से किसी दुष्परिणाम की लौ जल उठे। हमें समझना होगा और स्वीकारना भी होगा। हमारे एक न होने की बजह से हमारे द्वारा उठाये गये कदम कितने घातक हो सकते हैं। मैं उनके परिणामों की कल्पना करते वक्त ही सिहर जाता हूं। कंपन की ही तीव्रता मुझे अंधकारमय भविष्य की दर्शन करा आती है। मैं उस वक्त सहम जाता हूं। किसी शून्य की ओर प्रस्थान कर जाता हूं। जहां घुटन की बेहद अजीब-सी बू आती है। कोई मुझे खींच रहा होता है। मुझे घसीट रहा होता है। मुझे खून से भरे घाव नज़र आते हैं। जिनका घिसलन पर दर्द ऊफ! मेरी ये कल्पना करते हुए मेरी रूह तक कांप रही है। अब मैं समझ चुका हूं जीवन की क्या उपयोगिता है। तुम्हें भी जीवन की उपयोगिता को मानना होगा।
           मैं ये अंतिम पत्र लिख रहा हूं। और मैं चाहूंगा कि तुम इसे एक बार में ही पढ़कर जला देना। मैं भी ये कलम नष्ट कर दूंगा। मैं नहीं चाहता कि हमारी कोई आखिरी याद हमें विचलित करें। हमें समझना होगा। अपनी-अपनी नई जिंदगी की शुरुआत आज ही इस पत्र के तत्पश्चात करनी होगी।
              मुझे भरोसा है तुम पर। और तुमको मुझ पर। हम अगले जन्म में अवश्य मिलेंगे। ईश्वर से तुम्हारी खुशहाल जीवन की प्रार्थना करते हुए मैं अपनी कलम बंद कर रहा हूं।
तुम्हारा-
(मैं अंतिम बार अपना नाम लिखकर तुम्हें विचलित कर दूंगा, इसलिए तुम मेरा नाम लिए बिना ही इसे जला देना)
© शक्ति सार्थ्य
ShaktiSarthya@gmail.com




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