फाड़कर आज वह
कागज के कुछ
चन्द टुकड़े!
कागज के कुछ
चन्द टुकड़े!
जीवन को साथ, मन
मेँ शान्ति भर
काफिर बनेँ फिरे
मेँ शान्ति भर
काफिर बनेँ फिरे
यही सोच लिये
क्रूर बनेँ
क्रूर बनेँ
उमंग के चेतना मेँ
कलाम को भूलकर
तिरस्कार पर उतरे
मेधावी सोच अब
भीरु न बनेँ
कलाम को भूलकर
तिरस्कार पर उतरे
मेधावी सोच अब
भीरु न बनेँ
अटक तो निकल पड़ी
लम्बीँ यात्रा पे,
वुजदिल नहीँ वह
बिधु का सम्मान
करती और
आत्म संस्कार भी
लम्बीँ यात्रा पे,
वुजदिल नहीँ वह
बिधु का सम्मान
करती और
आत्म संस्कार भी
शिकस्त-काया भर चुकी
बिषाद-बृन्द
डूबने लगी अन्ध-उर मेँ
दीन सरोरुह खिल उठा
सुन मेरी ध्वनि
बिषाद-बृन्द
डूबने लगी अन्ध-उर मेँ
दीन सरोरुह खिल उठा
सुन मेरी ध्वनि
न चलूं मैँ आज
टुकड़ोँ पर
बड़ा नागर है ये
सहन कर ये मुझे
वदनाम करेगा
टुकड़ोँ पर
बड़ा नागर है ये
सहन कर ये मुझे
वदनाम करेगा
बड़ा तिरस्कार
होगा उनका
और सम्मान भी
जो भूमि से
विहग-बृन्द उड़ाकर
शयन करेगेँ
होगा उनका
और सम्मान भी
जो भूमि से
विहग-बृन्द उड़ाकर
शयन करेगेँ
शायद कोई सुने
नीर की ध्वनि, जो अपना
हक मागंता और कहता
तड़प उठोगे तुम,
न होने पर मेरे!
नीर की ध्वनि, जो अपना
हक मागंता और कहता
तड़प उठोगे तुम,
न होने पर मेरे!
© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com
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[चित्र साभार गूगल]
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