मेरी एक कॉलेज फ्रेंड सेकुलर मंडल का कल रात msg आया,
हेलो सचिन, आज पदमावत मूवी देखने गए थे।
मैंने कहा-नहीं,जिस मूवी में माँ पद्मिनि के गौरवशाली इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गयी हो और खिलजी जैसे क्रूर आतातायी लुटेरे का महिमामंडन किया गया हो, भला ऐसी मूवी देखने मैं क्यों जाऊँगा।
सेकूलर मंडल-ओह्ह! सॉरी आप तो विरोध करने वालो में से है,आप तो राजपूतो के साथ विरोध करने गए होगे। मुझ पर कटाक्ष करते हुए उसका ये msg आया।
मैं-हां हम विरोध करने वालो में से है,और ये राजपूत के साथ और अलग का विरोध नहीं है। विरोध तो उस मानसिकता का है जो निजी जीवन में प्रेमी और प्रेमिका है उन्हें ही क्यों पद्मिनि और खिलजी के रूप में दिखाया, खिलजी को महिमामंडित करने के लिए ही लोकप्रिय धारा के नायक को चुना।
सेकूलर मंडल- एक बात बताऊँ सचिन, rss वालो की तरह तुम्हारी सोच भी बहुत सीमित हो गयी है और पूरी तरह कम्युनल हो गए, हर चीज को धर्म के चश्मे से देखने लगे हो, तुम्हारी पिछली पोस्ट में भी मैंने देखा क़ि कैसे एक धर्म विशेष को टारगेट करके लिखते हो।
सेंसर बोर्ड ने मूवी पास कर दी और सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्यो के वैन को हटा दिया फिर भी लोग फालतू विरोध के नाम हिंसा कर रहे हो। गाँधी और बुद्ध के देश मे हिंसा कहा तक उचित है।
मैं- अगर मेरी विचारधारा की वजह आप मुझे कम्युनल समझती है मुझे कोई फर्क नही पड़ता, जबर्दस्ती के लिबरल से हम कम्युनल ही ठीक है।रही बात गांधी और बुद्ध के देश की तो उनसे पहले ये देश प्रभु राम और कृष्ण का है।
जो हमें अहिंसा के साथ साथ गलत के प्रतिरोध की शिक्षा भी देते है। अहिंसा परमो धर्म:, धर्म हिंसा तथैव च:। विरोध फ़ालतू का नहीं अगर मूवी में सब कुछ सही था तो सेंसर बोर्ड में पास होने से पहले इतने कट क्यों लगाने पड़े और क्यों पद्मावती की जगह पदमावत नाम रखा और इसे जायसी के काव्य पर आधारित बनाया।
सेकूलर मंडल-वैसे इतने लोग सिर्फ एक रानी के सम्मान के लिए सड़कों पर आकर विरोध कर रहे अगर इससे आधा सम्मान लोग वर्तमान में करते तो रोज हजारो महिला को बलात्कार और छेड़छाड़ की वजह से शर्मशार नहीं होना पड़ता।
मैं- अजीव कुतर्क है तुम्हारा कि रानी के गौरव के लिए के लिए जितने लोग खड़े है उतने बलात्कारियों के विरोध में होते तो देश में बलात्कार ना होता...
ये क्यू नहीं कहती जितनी तेजी से कोर्ट ने
पदमावत पर फैसला लिया अगर उतनी ही तेजी से बलात्कार और अन्य जरूरी मुद्दे पर भी फैसला सुनाते तो देश की तस्वीर कुछ और होती !,
और ये क्यों नहीं कहती कि जितने सुरक्षा मॉल और थिएटर की दी जा रही है फ़िल्म दिखाने के लिए उतनी सुरक्षा आम नागरिक और महिलाओं की दी जाती तो कोई घटना नहीं होती। लेकिन यहाँ तो नेता बलात्कारी को सिलाई मशीन देकर सम्मानित करते है और सेकूलर लोग इसे प्रगतिवादी कदम बताते है।
सेकूलर मंडल-कुतर्क मैं नहीं आप कर रहे हो, सच तो ये है जब से मोदी सरकार आयी है तब से देश में इन्टॉलरेंस का माहौल है और देश की बहुसंख्यक आबादी का एक बड़ा वर्ग rss की कम्युनल विचारधारा को ही बढ़ावा दे रहा है। सभी संवैधानिक संस्थाएं चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सभी संस्थाएं सरकार के दबाब में कर रही है।इसीलिए एक मूवी के लिये लोग बेबजह इतना होहल्ला कर रहे है।
मैं-इंटॉलरेंस का मतलव पता भी है क्या होता है आपको, या फिर कथित बुद्धजीवियों का ज्ञान बॉट रही हो। पहले तो आज अपने पापा, दादी, या दादा जी से ये पता करो कि ऐसा क्या हुआ क़ि प्योर सेकूलर और साहिष्णु होने के बाबजूद भी आज से सिर्फ 50 साल पहले अपना सब कुछ लुटाकर अपनी माटी(बंगला देश) को छोड़कर यहाँ तराई की बहुसंख्यक असहिष्णु आबादी के बीच रहना पड़ रहा है।
सेकूलर मंडल- व्हाट डू यू मीन?
मैं-मेरा मतलव आपको अच्छे से पता है ,अगर नहीं पता है तो एक बार तस्लीमा नसरीन की लज्जा उपन्यास पड़ लेना आपको अपनो की दर्दनाक चीखे सुनाई देंगी पर आपतो बड़के बाली सेकूलर है और देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कार्यकर्ता है सो भला आप अपना इतिहास क्यों याद करेंगी, अगर धोखे से भी आपको अपना इतिहास याद आ गया तो राजनैतिक और अंतर्द्वंद से घिर जाओगी।
सेकूलर मंडल - ब्लॉक मी
और इस तरह से विपरीत राजनैतिक विचारधारा होने के बाबजूद हमारी 5 साल पुरानी ये दोस्ती सिर्फ उन्हें उनका इतिहास स्मरण कराने मात्र से टूट गयी।
वैसे किसी ने सच ही कहा है, 'जो नस्ले अपना इतिहास भुला देती है उन्हें खुद इतिहास बनने से कोई बचा नहीं सकता'
जिन्हें सिर्फ धार्मिक पहचान की वजह से लूट और बलत्कार का शिकार होना पड़ा हो और लाखों की तादाद में अपनी माटी(बंगलादेश) लाहौर(पाकिस्तान) छोड़कर तराई(रुद्रपुर उत्तराखण्ड) में आना पड़ा हो। और तराई की बहुसंख्यक जनता ने आगे बढ़कर ना सिर्फ आर्थिक और सामाजिक,सांस्कृतिक सरंक्षण प्रदान किया वल्कि राजनैतिक प्रतिनिधित्व भी दिया हो अगर उसे इस बहुसंख्यक आवादी में इंटॉलरेंस नजर आता है तो सिवाय मानसिक दिवालियेपन के कुछ नहीं है। वैचारिक रूप से इस कदर बीमार है ये समाज कि लगता ही नहीं स्वामी विवेकानन्द और बोस जी इनके पूर्वज रहे है।
सेकूलर मंडल, प्रभु आपको सद्बुद्धि प्रदान करे।
[फेसबुक पोस्ट से साभार]
© सचिन गुर्जर
26/01/2018
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