आप रूठोगे अगर दिल इस तरह बहलाएंगे
एक दफ़ा खोलेंगे गुत्थी, सौ दफ़ा उलझाएंगे
अपने पागल इश्क़ की सोंधी सी खुशबू है यहां
हम कहीं भी जाएं, ज्यादा तो यहीं रह जाएंगे
भीड़ से थोड़ा जुदा है तेरे आशिक़ का मिज़ाज
उठ गए ग़र दर से तेरे, अर्श पर छा जाएंगे
फ़ासलों में ख़्वाहिशें जितना भी भटकाएं हमें
हम मिले तो उनके सारे पेंचोख़म सुलझाएंगे
उतना चलना है कि जितने फ़ासले पर वो मिले
देखने हैं ख्वाब, जितने ख्वाब वो दिखलाएंगे
रोज़ कम होंगी उम्मीदें, रोज़ घबड़ाएगा दिल
रोज़ हम तौबा करेंगे, रोज़ हम आ जाएंगे
[फेसबुक से साभार]
©ध्रुव गुप्त
dhruva.n.gupta@gmail.com
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