वह फटे लिवास मेँ
घास-फूँस के छप्पर निवास मेँ
मग्न थी,
उसकी भी ख्वाहिशेँ थी
पर दबी-दबी सी
मृत झाड़ियोँ सी
घास-फूँस के छप्पर निवास मेँ
मग्न थी,
उसकी भी ख्वाहिशेँ थी
पर दबी-दबी सी
मृत झाड़ियोँ सी
वह थी, खेलती रहती
नगेँ पैर
धूप मेँ
छाँव मेँ
जाड़े की कहर बरपाती ठण्ड मेँ काँकती-सी
ठिठुरती-सी
नगेँ पैर
धूप मेँ
छाँव मेँ
जाड़े की कहर बरपाती ठण्ड मेँ काँकती-सी
ठिठुरती-सी
उसकी एक अजब दुनिया थी,
वह थी यहीँ की
लेकिन उसने वो दुनिया-
अपने धैर्य से जन्मी थी
वह थी यहीँ की
लेकिन उसने वो दुनिया-
अपने धैर्य से जन्मी थी
मासूम सी-
गुँजटेँ हुए वालोँ की दो चोटी लिए
इतराती
मिनटोँ.. घण्टोँ...
गुँजटेँ हुए वालोँ की दो चोटी लिए
इतराती
मिनटोँ.. घण्टोँ...
उसके चेहरे की चमक-
मानो कुदरत ने कोई
चित्रकारी की हो
बड़ी-बड़ी आँखे
होँठोँ पे गुलाबी मुहर
गालोँ पे कली कली
मोहिनी मुस्कान
माथेँ पर न कोई शिकन
नाक की अपनी तलछटी
मानो कुदरत ने कोई
चित्रकारी की हो
बड़ी-बड़ी आँखे
होँठोँ पे गुलाबी मुहर
गालोँ पे कली कली
मोहिनी मुस्कान
माथेँ पर न कोई शिकन
नाक की अपनी तलछटी
आज सन्न है पूरी बस्ती
उसकी विधवा माँ की हस्ती
उसकी विधवा माँ की हस्ती
कहीँ दूर से रोज आने वाले
परदेशी बाबू ने
हथिया लिए उनके ठिकाने
गरीबोँ के घास-फूँस के
मैले आशियाने
पस्त थे सभी छोटे-मोटे
लेकिन हसीँ सपने
परदेशी बाबू ने
हथिया लिए उनके ठिकाने
गरीबोँ के घास-फूँस के
मैले आशियाने
पस्त थे सभी छोटे-मोटे
लेकिन हसीँ सपने
वह शहर की कचरे वाली गली मेँ
बू झाड़ते
उनमेँ खोज-बीन करते
कुत्ते
रात को वहीँ कोने मे ढेर होते
दर्द भारी अवाजेँ इज़ाद करते
शायद दिल से सुना जाये
तो वे ईश्वर से
अपनी उम्र घटाने की
सिफारिशेँ करते
मिन्नतेँ करते
बू झाड़ते
उनमेँ खोज-बीन करते
कुत्ते
रात को वहीँ कोने मे ढेर होते
दर्द भारी अवाजेँ इज़ाद करते
शायद दिल से सुना जाये
तो वे ईश्वर से
अपनी उम्र घटाने की
सिफारिशेँ करते
मिन्नतेँ करते
वहीँ पास मेँ
मंगर-मंगर आठ रोज से भूखी
वह, अपने और उनके किस्मत के तार
तलाशती
उनके साथ खेल खेलती
वह अब भी खुश थी
मंगर-मंगर आठ रोज से भूखी
वह, अपने और उनके किस्मत के तार
तलाशती
उनके साथ खेल खेलती
वह अब भी खुश थी
उसकी ये अजब जिँदगी
उसकी खास पहचान थी
वो लोँगो से अलग थी
बिल्कुल अलग
शौक का कोई मोह नहीँ
जहाँ जाती वहीँ रह जाती
उनमेँ घुलजाती
वो समझदार थी
और थोड़ी अनजान भी !
उसकी खास पहचान थी
वो लोँगो से अलग थी
बिल्कुल अलग
शौक का कोई मोह नहीँ
जहाँ जाती वहीँ रह जाती
उनमेँ घुलजाती
वो समझदार थी
और थोड़ी अनजान भी !
©शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com
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