१-)
गहराई जीवन की/
कविता
गहराई जीवन की/
कविता
मुझे पता है
कि क्या होगा मेरे
इस हाड़-माँस के शरीर का
कि क्या होगा मेरे
इस हाड़-माँस के शरीर का
मैँ अपने इस जीवन को
सुखमय जीवन देकर
गरीबोँ की बद्दुआयेँ एकत्र
करना नहीँ चाहता
न ही अपने को शून्य
समझकर
किसी दुःख
को बढ़ावा दूँगा
सुखमय जीवन देकर
गरीबोँ की बद्दुआयेँ एकत्र
करना नहीँ चाहता
न ही अपने को शून्य
समझकर
किसी दुःख
को बढ़ावा दूँगा
मेरा कर्त्तव्य मुझे मनुष्य
की परिभाषा मेँ
गढ़े रहने की सख्त
हिदायत देता-
मैँ कर्त्तव्योँ से मुड़कर
अपनोँ को दुःख दूँगा
और अपने लिए
शून्यकाल मेँ व्यतीत होने
वाला जीवन,
की परिभाषा मेँ
गढ़े रहने की सख्त
हिदायत देता-
मैँ कर्त्तव्योँ से मुड़कर
अपनोँ को दुःख दूँगा
और अपने लिए
शून्यकाल मेँ व्यतीत होने
वाला जीवन,
जीवन की रेखा उलागंना
जीवन की मय्यत मेँ भाग
लेने जैसा-
ये संभव नहीँ है मेरे लिए-
जीवन की मय्यत मेँ भाग
लेने जैसा-
ये संभव नहीँ है मेरे लिए-
मैँ दुःखोँ मेँ अगर लिप्त हुआ
तो उस दुःख भरे जीवन मेँ
अपने लिए एक जीवन
तलाश करुगाँ-
शायद वो जीवन
कागज-कलम के
बीच व्यतीत होगा
ये जीवन मुझे मरने
नहीँ देगा
सदा एक
ऐसी संतुष्टी देगा
कि मैँ अपनोँ के साथ-साथ
औरोँ का भी मित्र बन
जाऊगाँ
बिना किसी शर्त के
मित्र की तरह!
तो उस दुःख भरे जीवन मेँ
अपने लिए एक जीवन
तलाश करुगाँ-
शायद वो जीवन
कागज-कलम के
बीच व्यतीत होगा
ये जीवन मुझे मरने
नहीँ देगा
सदा एक
ऐसी संतुष्टी देगा
कि मैँ अपनोँ के साथ-साथ
औरोँ का भी मित्र बन
जाऊगाँ
बिना किसी शर्त के
मित्र की तरह!
२-)
जीवित होने मेँ मृत्यु-गीत/
कविता
जीवित होने मेँ मृत्यु-गीत/
कविता
जिन्दगीँ यूँ हीँ एक
किताब पर
दर्ज होती गई...
किताब पर
दर्ज होती गई...
और ढलती गई
एक शाम की तरह...
एक शाम की तरह...
मैँ बस, वेबस-
उसमेँ शराब के सोडा-
सा मिलता गया...
उसमेँ शराब के सोडा-
सा मिलता गया...
'मरता क्या न करता'
शायद यही आलम था मेरे
जीवन का
मैँ था करता गया
और लिखता गया
कुछ हर्फ़
जो शायद ज़वानी मेँ
भी बूढ़े थे...
शायद यही आलम था मेरे
जीवन का
मैँ था करता गया
और लिखता गया
कुछ हर्फ़
जो शायद ज़वानी मेँ
भी बूढ़े थे...
कुछ लम्हेँ, कुछ रातेँ
और कुछ दिन संजोय थे,
कि यही मेरेँ सुकूं के
बादशाह बनेँगेँ
पर कम्वक्त, बेवक्त,
धोखा दे गये ये भी-
मैँ स्वंय की वो तीव्र
बुद्धी पर
अपने मेँ प्रखर होने पर
नाज़ किया करता था
वो आज धूमिल-सी हो गई
मेरे जीवन की अजीब
मिटता हो गई
मेरे तन्हाई की साथी
खुद तन्हा हो गई...
और कुछ दिन संजोय थे,
कि यही मेरेँ सुकूं के
बादशाह बनेँगेँ
पर कम्वक्त, बेवक्त,
धोखा दे गये ये भी-
मैँ स्वंय की वो तीव्र
बुद्धी पर
अपने मेँ प्रखर होने पर
नाज़ किया करता था
वो आज धूमिल-सी हो गई
मेरे जीवन की अजीब
मिटता हो गई
मेरे तन्हाई की साथी
खुद तन्हा हो गई...
अब तो मैँ अपने जीवित
होने मेँ मृत्यु-गीत की धुन
पर
धुन बनाने मेँ
सहायक धुनकर
की भाँति हूँ
जिसको न जाने कब
काम खराब हो जाने
की बजह से
मुहँ की खानी पड़ जायेँ...
होने मेँ मृत्यु-गीत की धुन
पर
धुन बनाने मेँ
सहायक धुनकर
की भाँति हूँ
जिसको न जाने कब
काम खराब हो जाने
की बजह से
मुहँ की खानी पड़ जायेँ...
३-)
चूनर/
कविता
चूनर/
कविता
तेरी गहरी-
नाज़ुक
मन मेँ हिलोल देने वाली
चूनर
नाज़ुक
मन मेँ हिलोल देने वाली
चूनर
यूँ लहरियाँ
ले रही
जैसे-
वदन की सारी खुशबू
टपक पड़ी हो
ले रही
जैसे-
वदन की सारी खुशबू
टपक पड़ी हो
घुल-घुल जाती पवन मेँ
अटका देती दिल
की धड़कने,
अटका देती दिल
की धड़कने,
कुछ तो था
मैँ बिन सोचेँ
न रह पाया उस घड़ी
बस उसकी लहरियाँ
बार-बार आयेँ याद
मैँ बिन सोचेँ
न रह पाया उस घड़ी
बस उसकी लहरियाँ
बार-बार आयेँ याद
वो गहरी थी
इतनी नाज़ुक भी
और थी कातिलाना-
कर ही दिया
मेरे दिल को
घायल!
इतनी नाज़ुक भी
और थी कातिलाना-
कर ही दिया
मेरे दिल को
घायल!
४-)
जवानी की लघुता/
कविता
जवानी की लघुता/
कविता
तुझसे तो मिलोँ
कई बार कहता
और कहता बार-बार
तुझसे पूँछु
कई बार कहता
और कहता बार-बार
तुझसे पूँछु
पर मिलन की बात
मिलन क्योँ नहीँ होती
सवाल क्योँ नहीँ पूँछती,
मिलन क्योँ नहीँ होती
सवाल क्योँ नहीँ पूँछती,
खुद क्योँ ये-
मुझे यादोँ मेँ
परेशां करती
मुझे यादोँ मेँ
परेशां करती
अब वक्त नहीँ हैँ
तुझसे दूर रहने का
अन्तिम पड़ाव पर है
ये मेरी जवानी की
लघुता
बेचैन सी है
मेरे कदम ही
पड़ते नहीँ अब,
तुझसे दूर रहने का
अन्तिम पड़ाव पर है
ये मेरी जवानी की
लघुता
बेचैन सी है
मेरे कदम ही
पड़ते नहीँ अब,
तू क्योँ नहीँ आती-
पूँछले अपने प्रियतम
का हाल
जो जिन्दगीँ की दौड़ से
थका सा महसूस करता
धूल-सा
धूप मेँ अपने
टुकड़े बिखेरता
जिसका अस्तित्व है
अब खतरे मेँ,
न जाने कब पीटा जाए,
दब जाए
उस मकां मेँ
जिसका
दाब दुःखोँ से
और यादोँ तले दबा हो!
पूँछले अपने प्रियतम
का हाल
जो जिन्दगीँ की दौड़ से
थका सा महसूस करता
धूल-सा
धूप मेँ अपने
टुकड़े बिखेरता
जिसका अस्तित्व है
अब खतरे मेँ,
न जाने कब पीटा जाए,
दब जाए
उस मकां मेँ
जिसका
दाब दुःखोँ से
और यादोँ तले दबा हो!
©शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com
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