पिछली रात समकालीन शास्त्रीय गायक-गायिकाओं में अग्रणी 84 वर्षीय किशोरी अमोनकर का निधन भारतीय संगीत के लिए एक सदमे जैसा है। बीसवी सदी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो ख्याति किशोरी अमोनकर को मिली, वह किसी और को नसीब नहीं हुई। अपनी यशस्वी गायिका मां मोगुबाई कुर्दिकर और जयपुर घराने के दिग्गज गायक अल्लादिया खान साहब की इस शिष्या की सुरीली आवाज़ ने दशकों तक संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया है। उन्होंने न केवल जयपुर घराने की गायकी की तकनीक पर पूरा अधिकार प्राप्त किया था, बल्कि अपने कौशल और कल्पना से एक नवीन शैली भी विकसित की थी जिसमें संगीत के अन्य घरानों की बारीकियां भी झलकती हैं। वे अपनी गायकी में संगीत के व्याकरण की जगह भावों को ज्यादा अहमियत देती थीं जिसके चलते वे अक्सर घराने की की परंपरा से बाहर भी निकल जाती थीं। किशोरी जी को मुख्य रूप से खयाल गायकी के लिए जाना जाता है, लेकिन उन्होंने ठुमरी,भजन और फिल्मी गाने भी बिल्कुल अलग अंदाज़ में गाए हैं। महान फिल्मकार व्ही शांताराम की फिल्म 'गीत गाया पत्थरों ने' का टाइटल गीत उन्हीं का गाया हुआ है। इसके अलावा 1952 की फिल्म 'सिसकियां' के गीतों - 'कोई किसी का दर्द न जाने' और 'तुम भी वही हो' तथा 1991 की फिल्म 'दृष्टि' के गीत 'मेहा झर झर' भी बहुत पसंद किए गए थे। गायिकी के अलावा उन्हें प्राचीन संगीत ग्रंथों पर विस्तृत शोध के लिए भी जाना जाता है। संपूर्ण गायिका के अलावा वे एक संपूर्ण गुरु भी थीं। उनकी संगीत विरासत को उनके शिष्य मानिक भिड़े, अश्विनी देशपांडे भिड़े, आरती अंकलेकर जैसे लोग संभाल और आगे बढ़ा रहे हैं।
स्वर्गीया किशोरी अमोनकर को भावभीनी श्रद्धांजलि ! #KishoriAmonkar
[फेसबुक से साभार]
©ध्रुव गुप्त
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