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कुछ भी हिला देने जैसा नहीं : शक्ति सार्थ्य

दुनिया मेँ कुछ लोग सिर्फ मरने के लिए ही पैदा नही होते बल्कि मरने के बाद भी जीवित रहने की कूबत रखते है। हाँ, ऐसे न जाने कितने महान व्यक्तित्व है जो आज हमारे बीच नहीँ होते हुए भी हमारे मार्गदर्शक और प्रेरणा-स्त्रोत बने हुए है। मुझे नहीँ लगता कि आपको उन व्यक्तियोँ के नाम गिनायेँ जाए। हम आए दिन उनके व्यक्तित्व से मुख़ातिब होते रहते है। दूसरोँ को भी उनके विचारोँ से अवगत कराते रहते है। हम उनके द्वारा किये गये महान कार्योँ की सराहना करते हुए प्रत्येक बर्ष उनकी याद मेँ एक मेले का आयोजन करते है। जगह-जगह उनकी सभायेँ लगाते है। प्रत्येक बर्ष उनके बतायेँ मार्गदर्शन पर चलने की कसमेँ खाते है।
अब सवाल ये है कि ??
वो लोग ऐसा क्या कर गये जिन्हे भुला पाना आसान नहीँ? और हम अब ऐसा क्या कर रहे जो हमेँ लाईन पर लाने के लिए उनके विचारोँ का अनुसरण कराया जाता है?
क्योँ हम अपने और उनके बीच सामजंस नही बिठा पाते? क्योँ हम अपनी मानसिकता उनकी जैसी नहीँ कर सकते? क्योँ हम अपना स्वार्थ नहीँ छोड़ते?
क्या उनका परिवार नहीँ था? क्या उनका अपना समाज नहीँ था? क्या उन्हे चैन से रहने की अनुमति नहीँ थी? क्या वे एक मानव नहीँ थे?
नहीँ, मुझे नहीँ लगता कि वो मानव रहे होँगे। या फिर वो मानव रहे हो।
या ऐसा भी हो सकता है कि आज के हम लोग मानवता भूल गये हो। और मानव होनेँ की सारी हदेँ पार कर किसी और कुल मेँ चले गये होँ। ये भी हो सकता है कि हम मानव होँ वो भी दिखावटी। हम देश दुनिया को बड़े-बड़े सपने दिखाते हो वो भी हवा-हवाई।
हमारा व्यक्तित्व कैसा है अपने राष्ट्र के प्रति? ये तो हमीँ बता सकते है न।
हम अपने राष्ट्र के प्रति पूर्णतयः समर्पित है। किस तरह से? ये भी तो हमीँ तय करते है न। भोले-भाले लोँगो को अपने जाल मेँ फंसा लेते है। और उनके अधिकार को हम अपने अधीन लेकर अपने प्रयोग मेँ लाते है।
औरोँ की जिँता करके हमेँ कोई अपनी उम्र थोड़े ही घटानी है। पिछले जन्म मेँ बहुत पुण्य कर लिए। इस जन्म मेँ कुछ उसका फायदा उठाया जाए। कब तक इनके लिए मरते रहेँगे? हाँ, कब तक?
सोँच अच्छी है। वो भी सोँच सकते थे। उन्होने भी तो पिछले जन्म मेँ पुण्य किये होँगे। या हो सकता है पिछले जन्म मेँ पाप किये हो। जिसका प्रायश्चित करने आयेँ होँ और आकर चले गयेँ होँ। या फिर थोड़े सनकी रहेँ हो। कुछ ऐसे सनकी रहे हो... जिससे वो अपने कर रहे कार्यों का मानक तय न कर पायेँ होँ।
हो सकता है कि उन्हे बेईमानी करनी आती ही न हो। या फिर डर लगता हो बेईमान बनने मेँ। इसलिए ऐसा कर गये।
कोई भी मुर्ख नहीँ है इस दुनिया मेँ। सभी स्वार्थी होते है। कोई किसी के लिए कुछ नहीँ करता। फ्री मेँ तो बिल्कुल भी नहीँ। हाँ, फ्री मेँ तो बिल्कुल भी नहीँ। इतना कम है कि हम उन्हेँ याद कर रहे है।
और हम क्योँ याद कर रहे है उन्हे? थोड़ा सोँचोँ भाई... हाँ, थोड़ा और... हाँ, समझ आया कि नहीँ।
दोस्तोँ हम आज ऐसे कुचक्र मेँ फंसे चुके है जहाँ से निकला बमुश्किल है। हमारी मानसिकता मेँ दया-भावना नामक कोई भी सॉफ्टवेयर डाउनलोड हो ही नहीँ सकता। बल्कि क्रूरता और नीचता नामक वायरस का स्वागत है। ये एक ऐसी मानसिकता है जो समाज के साथ साथ आपके लिए भी घातक है। पर हमेँ क्या? हमेँ तो अपनी क्रूरता और नीचता मेँ गोल्डमेडलिस्ट जो होना है। सो होकर रहेँगे। यही हमारा जीवन है। और यही हमारा लक्ष्य।
चलोँ मित्रोँ दुआ करते है कि आप अपने ऐसे लक्ष्य को भेद सकेँ।
धन्यवाद !
जमाने का हर शख्स यही बोलता है मगर
सच से दूर भागता जमाना छोड़ आए
जख्मोँ से भरेँ हैँ जहाँ के सारे शख्स यहाँ
क्योँ रोता विलखता जमाना छोड़ आए
कुछ तो हद तय की होती हमने आज उन पर
अत्याचारियोँ से आज लड़ता जमाना छोड़ आए
©शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com


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