एक बात तो हर किसी के समझ तो आती किंतु उसका कोई औचित्य नहीं बन पाता है।
वो ये है जब कोई कमजोर बच्चा अपनी कमजोरी की बजह से हर समय अथाह तनाव और अवसाद की स्थिति में रहता है। और उसके चारों ओर का वातावरण उसके अनुरूप भी नहीं होता है। तब वह और अपने आप को हर पल असुरक्षित महसूस करता है।
ये जो दुनिया है ना उसे खा लेनी वाली लगती है। वो न चाहकर भी गलती कर बैठता है। ऐसा बचपन से उसके साथ नहीं होता है। कई दफा तो उसके मन में इस बात का कीड़ा बिठा दिया है कि अब ये नहीं उभर पायेगा या फिर कुछ कर पायेगा।
मैं जहाँ तक देख पा रहा हूं कि ये क्या है?
क्या कोई भी बच्चा जो थोड़ा ढीला है या फिर उसकी समझ उतनी तेज नही जितनी की उसकी उस उम्र में होनी चाहिए? तो फिर वो क्या कुछ हांसिल नहीं कर सकता?
कई मायने में तो हम ही उसका मनोबल गिरा रहे होते है जब वह कुछ करना चाह रहा होता है तब हम कह उठते है "कि तुमसे नहीं हो पायेगा बेटा, तुम आराम से बस बैठकर ये देखो"
जब ये शब्द उसके कानों मे दस्तक देते है तो वह आराम से बैठ भी नहीं पाता है और मन ही मन अंदर पिसता चला जाता है।
वह कहीं और भी मन नही लगा पाता, सिर्फ खालीपन को ही महसूस करता है और फिर खालीपन को ही अपना साथी बना बैठता है।
क्या कोई भी बच्चा जो थोड़ा ढीला है या फिर उसकी समझ उतनी तेज नही जितनी की उसकी उस उम्र में होनी चाहिए? तो फिर वो क्या कुछ हांसिल नहीं कर सकता?
कई मायने में तो हम ही उसका मनोबल गिरा रहे होते है जब वह कुछ करना चाह रहा होता है तब हम कह उठते है "कि तुमसे नहीं हो पायेगा बेटा, तुम आराम से बस बैठकर ये देखो"
जब ये शब्द उसके कानों मे दस्तक देते है तो वह आराम से बैठ भी नहीं पाता है और मन ही मन अंदर पिसता चला जाता है।
वह कहीं और भी मन नही लगा पाता, सिर्फ खालीपन को ही महसूस करता है और फिर खालीपन को ही अपना साथी बना बैठता है।
क्या है ये सब?
क्या आप उस कोमल ढांचे को सही ढांचे में तब्दील होने से रोक रहे है? जी हां, वह चाहता है कि ढले और आप है कि उसकी पिछली गलतियों की बजह से उसे आगे आने से सिर्फ इस बजह से रोक रहे कि अब तो सिर्फ समय की बर्वादी ही है।
क्या आप उस कोमल ढांचे को सही ढांचे में तब्दील होने से रोक रहे है? जी हां, वह चाहता है कि ढले और आप है कि उसकी पिछली गलतियों की बजह से उसे आगे आने से सिर्फ इस बजह से रोक रहे कि अब तो सिर्फ समय की बर्वादी ही है।
क्या आप को इस बात का भी जरा सा भान है कि आप एक जिंदगी को तबाह कर रहे है?
क्या उसे बार-बार यानी तब तक कोशिश करने का कोई अधिकार नहीं जब तक कि वह एक कुछ सफल काम को अंजाम दे सके?
जब तक वह एक सफल काम को अंजाम नहीं दे पाता है तब तक वह हर वक्त मर रहा होता है। जिस दिन वह अपने काम में सफल हो जायेगा तो समझ लेना की उसकी जीवन की एक नई पारी की शुरूआत हो चुकी है जो अभी लंबी खेली जानी है।
क्या उसे बार-बार यानी तब तक कोशिश करने का कोई अधिकार नहीं जब तक कि वह एक कुछ सफल काम को अंजाम दे सके?
जब तक वह एक सफल काम को अंजाम नहीं दे पाता है तब तक वह हर वक्त मर रहा होता है। जिस दिन वह अपने काम में सफल हो जायेगा तो समझ लेना की उसकी जीवन की एक नई पारी की शुरूआत हो चुकी है जो अभी लंबी खेली जानी है।
[बच्चों में फैल रहीं अवसाद की मूल जड़े उनके घर से ही निकलती है जो कि समाज के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। जब-जब बच्चों का भविष्य खतरे में होता है, तो समझ लीजिये कि पूरा राष्ट्र ही खतरे में है]
©शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com
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Bhai prayas acha h but sentence aur acha krne ki jarurat h .......
ReplyDeleteधन्यवाद। बेहतरी का प्रयास जारी है।
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