(चित्र साभार : गूगल)
ब से बटुआ ।
धर्मयुग के दिनों में हम धर्मयुग को उल्टा खोलते थे । पहले आबीद सुरती की कार्टून कोना ढब्बूजी पढ़ते थे । पहले हंसते थे , फिर पूरा धर्मयुग यहां वहां करते हुए टुकड़ों में पढ़ते थे । ढब्बूजी का एक चुटकुला याद आ रहा है ।
चंदूलाल पूछते हैं - ढब्बूजी , आजकल आपका बटुआ हमेशा गर्म हीं रहता है ।
ढब्बूजी बोले - क्योंकि मैं पुराना उधार नहीं चुकाता ।
चंदूलाल ने उत्सुक होकर पूछा - और नया उधार चुकाते हैं?
ढब्बूजी हंसकर बोले - नहीं , नये को भी पुराना होने देता हूं ।
ऐसे में तो बटुआ हमेशा हीं गर्म हीं रहेगा । वैसे उधार लेना एक कला है तो उधार न लौटाना उससे भी बढ़कर कला है । यदि उधार लेना बी ए की डिग्री है तो उधार न चुकता करना एम ए की डिग्री है । ऐसा मैंने नहीं बल्कि सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री शरद जोशी ने कहा था ।
बटुआ फ्रेंच के बाजेट से बना है । बाजेट का मतलब चमड़े का पर्स । इसी चमड़े के पर्स को हीं बटुआ कहा जाता है । बाजेट से बजट भी बना है । बटुए कई तरह के कई डिजाइन में मिलते हैं । बटुए को अंटी भी कहा जाता है । अंटी को ठेठ भोजपुरी में चेट भी कहते हैं । अक्सर लोग खर्च करने को चेट ढीली करो कहते हैं । अंटी ढीली करो भी कहा जा सकता है । अंटी में छुपाना या चेट में छुपाना । अंटी गर्म करना या चेट गर्म करना एक हीं बात है ।
बटुए को अंग्रेजी में purse कहते हैं । पर्स ग्रीक भाषा के
Byrsa से बना है , जिसका अर्थ है छिपाना । फिर यह शब्द burse , bursa का सफर तय करता हुआ अंग्रेजी में पहले pursa बना फिर purse बना । आजकल कई तरह के बटुए चलन में आ गये हैं - डिजीटल बटुआ , ई बटुआ , पेटीएम और डेविट कार्ड आदि । नोटबंदी के दौरान डेबिट कार्ड हीं हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा था । जिस दिन बटुआ घर पर छूट जाए उस दिन कुछ अच्छा नहीं लगता । खाली खाली सा लगता है । उधार लेना पड़ता है । जिल्लत की जिंदगी जीनी पड़ती है । बटुए के बिना आपके सारे काम ठप्प पड़ जाते हैं । क्योंकि बटुए में हीं तो आपके आधार कार्ड , डेबिट कार्ड , वोटर कार्ड , आई कार्ड , ड्राइविंग लाइसेंस , कुछ चिल्हर और कुछ नकद रुपए रहते हैं । इतने सारे डाक्यूमेंट से आपका बटुआ फूल जाता है । पाॅकेटमार को लगता है कि यह मोटा आसामी है । वह पिक पाकेटिंग कर बैठता है । उसके हाथ केवल हजार दो हजार हीं आता है । बाकी के ये सारे डाक्यूमेंट होते हैं । पाकेटमार इनको फेंक देता है । आपको नये सिरे से इन्हें फिर बनवाना पड़ता है । डाक्टरों का कहना है कि पीछे की जेब में बटुआ रखने से रीढ़ की हड्डी और साइटिका का दर्द उभरता है । पाकेटमार हमारे दोस्त हैं जो हमारा बटुआ हल्का कर हमें इन बीमारियों से बचाते हैं ।
डाॅन न्यूज की मानें तो पाकिस्तान प्रशासनिक अधिकारी सी सी टी वी कैमरे में कुवैत से आए प्रतिनिधि मण्डल के एक सदस्य का बटुआ उठाते हुए पकड़े गये । उस सदस्य ने अपना बटुआ मीटिंग के दौरान मेज पर भूल से छोड़ दिया था । प्रशासनिक अधिकारी जर्रार हैदर खान थे । उनकी बहुत भद्द पिटी । काफी किरकिरी हुई । बटुआ देखकर लालच आना लाजिमी है । कई बार बटुए पर हाथ साफ करने वाला घर का हीं होता है । हम भुक्तभोगी होते हैं । हमें पता भी होता है चोर का , पर पक्का सबूत नहीं होता ।लेकिन शक सुबहा भी कोई चीज होती है जो अक्सर सही जगह पर होती है । लेकिन आप चोर को चोर नहीं कह सकते । फिर भी इसमें एक अच्छी बात यह होती है कि आपके सारे पैसे एक साथ बटुए का साथ नहीं छोड़ते और डाक्यूमेण्ट भी सुरक्षित रहते हैं ।
कई बार बटुआ कांपता है , जब कोई अनचाहा मेहमान घर पर आ जाता है और जाने का नाम हीं नहीं लेता । ऐसे में अतिथि देवो भव से वह राक्षस भव हो जाता है। बटुए को भी पंख लग जाते हैं । सारा बजट गड़बड़ा जाता है । आप रोते हैं , तड़पते हैं , पर अतिथि से यह नहीं पूछ पाते कि "अतिथि तुम कब जाओगे ?"
[पोस्ट साभार : इंजी. एस. डी. ओझा की फेसबुक वॉल से]
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