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'भय' कानून का - डॉ विदुषी शर्मा





'भय' कानून का

 आज बात करते हैं भय की, कानून के भय की। आज अखबार के मुख्य पृष्ठ पर ही यह खबर थी कि एक शख्स ने दूसरे शख्स को केवल गाड़ी ठीक से चलाने की नसीहत दी तो उन्होंने उसे गोली मार दी। उस इंसान की मदद को कोई नहीं आया ।परिणाम , उसकी मौत मौत हो गई। (विनोद मेहरा , 48 वर्ष जी टी करनाल रोड भलस्वा फ्लाईओवर) घर से जब किसी की असामयिक मृत्यु हो जाती है  तो उस परिवार पर क्या बीतती है, यह सब शब्दों में बयान कर पाना मुश्किल है क्योंकि यह ऐसा दर्द है जो उसके परिवार को, उस शख्स से जुड़े हर इंसान को जिंदगी भर झेलना पड़ता है। कई लोग यहां सोचेंगे कि यह खबर तो पुरानी है। तो हफ्ते, 10 दिन में किसी की जिंदगी नहीं बदलती ।जिस घर से एक इंसान की मौत हुई है 10 दिन में उनका कुछ भी नहीं बदलता और जिंदगी की असलियत सामने आने लगती है। और खुदा ना खास्ता यदि वह इंसान पूरे घर का इकलौता ही कमाने वाला हो तो 10 दिन में नजारे दिखाई देने लग जाते हैं। कौन अपना है कौन पराया है, सब की पहचान हो जाती है। खैर यह बात हुई  भावनाओं की। और भी तरह-तरह की खबरें देख कर मन बहुत उद्वेलित ,खिन्न और परेशान हो जाता  है। रोज़ ही अखबार इस तरह की खबरों से भरा पड़ा है। कहीं बलात्कार, कहीं डकैती, छोटी-छोटी बच्चियों की जिंदगी खराब हो रही है, घर के चिराग बुझ रहे हैं कहीं कमाने वाले जिस पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी है उसी को मौत के घाट उतारा जा रहा है ,बिना कुछ सोचे- समझे कि इसके बाद इसके परिवार का क्या होगा ?यह सब देखकर दिल बहुत परेशान हो जाता है। मेरे मन में यह सब देख कर बहुत से सवाल खड़े हो जाते हैं। क्यों हमारे भारत में ही ऐसा सब कुछ है कि यह लोग एक जुर्म करने के बाद इतनी जल्दी दूसरा जुर्म करने को तैयार हो जाते हैं ?क्यों उन्हें कानून का डर नहीं है? इतनी जल्दी लोग कानूनों का उल्लंघन क्यों करते हैं? चाहे वह 8 महीने की बच्ची से बलात्कार की घटना ही क्यों न हो ?

नित नई खबरें रोज देखकर ,पढ़कर मन परेशान हो जाता है। मैं यह नहीं कहती कि पुलिस अपना काम सही ढंग से नहीं कर रही। बल्कि आज ही अखबार में 2 दिन से लापता एक बच्चे को सुरक्षित निकालकर पुलिस ने एक परिवार को क्या दिया है ,उस परिवार को क्या मिला है ,यह शायद सिर्फ महसूस करने की चीज़ है। पुलिस ,प्रशासन अपना काम कर रहे हैं। लेकिन अपराध, जुर्म और जनसंख्या इतना अधिक बढ़ते जा रहे हैं कि हम सब की भी जिम्मेदारी बनती है ,अब कुछ करने के लिए।  समाज को सुरक्षित करने के लिए हमें भी कुछ करना होगा।

  जब तक कानून का डर नहीं होगा, तब तक कानून का पालन नहीं होगा। लोग जुर्म करने से जब तक डरेंगे नहीं, तब तक वह ऐसा करते रहेंगे। परंतु सवाल यह उठता है कि लोग आसानी से कोई भी अपराध इतनी जल्दी क्यों कर लेते हैं? क्योंकि हमारे यहां कानून में लोचशीलता  है, सिस्टम में ढिलाई है, देरी है। इसलिए लोग इतने बेखौफ हैं।
 बल्कि दूसरे देश में इतने कड़े नियम बनाए गए हैं और इतनी कड़ाई से नियमों का पालन भी किया और करवाया जाता है कि जबरदस्ती कानून और व्यवस्था बनी रहती है और धीरे-धीरे लोगों को इसकी आदत पड़ जाती है।  हमारे  यहां भारत में कानून का 'डर' होना चाहिए या यूं कहें कि कानून का आतंक होना चाहिए तभी अपराधों में कमी हो पाएगी।"भय बिन होइ न प्रीति"।
  कानून  को कानून की तरह नहीं मानेंगे तो कुछ नहीं होने वाला। चाहे ट्रैफिक से संबंधित कानूनों से लेकर अपराधिक प्रकार के  कानून ही  क्यों न हों। मैं जानती हूं कि सब लोग इस बारे में बातें करते रहते हैं। परंतु बातें करने से कुछ नहीं होगा ।सरकार को कानून सख्त बनाने होंगे। हम सब की भी कुछ जिम्मेदारी है। सब कुछ सरकार पर ही नहीं थोपना चाहिए और अपनी जिम्मेदारियों से पीछा नहीं छुड़ाना चाहिए। हम सब भी अपने  स्तर पर कानून का दिल से पालन करें। और अपने बच्चों को शुरू से ही अनुशासन का महत्व बताएं (वरना इस उम्र में यदि कोई नसीहत दी जाएगी तो परिणाम घातक सिद्ध हो सकते हैं) ।
इसलिए एक जिम्मेदार नागरिक होते हुए नई पीढ़ी को आरंभ से ही नैतिकता ,अनुशासन, कानून की इज्जत करना सिखाएं ताकि भविष्य में कुछ तो सुधार हो सके, सुधार की उम्मीद तो की जा सके ।

यहां मैं एक बात का जिक्र करना चाहूंगी कि जब किरण बेदी जी ने  इंदिरा गांधी जी की गाड़ी का चालान किया  था क्योंकि वह गाड़ी घर गलत पार्क की हुई थी । उस समय पर इंदिरा गांधी  जी प्रधानमंत्री थी । इस पर  इंदिरा गांधी जी ने  किरण बेदी जी को न केवल  बधाई दी बल्कि उन्हें खाने पर भी बुलाया  क्योंकि उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन किया था ,कानून का पालन किया था। इसके बाद एक इंटरव्यू में किरण बेदी जी ने कहा कि  यह मेरी इज्जत नहीं थी,यह कानून को इज्जत दी गई थी। उसके बाद जब राजीव गांधी जी प्रधानमंत्री बने तो भी किरण बेदी जी  ट्रैफिक पुलिस  में ही थी तो राजीव गांधी ने यह कहा कि गाड़ी ठीक से पार्क करना वरना चालान हो जाएगा। तो यह एक कानून के प्रति इज्जत है, जो किरण बेदी जी ने स्वयं ही इस बात को आम जनता को बताया था।
  आम लोगों में यह धारणा होनी चाहिए कि हम गलत करेंगे तो हमारा परिणाम भी गलत होगा,हमें सज़ा मिलेगी। यह रिस्पेक्ट होनी चाहिए कानून के प्रति। जब तक डर और इज्जत नहीं होगी तब तक कानून का पालन नहीं होगा ।कानून का  डर और इज्जत हर भारतीय के मन में पैदा होनी चाहिए। तभी कानूनों का पालन सख्ती से होगा, तथा सख्ती से करवाया जा सकेगा ।

स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है "आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का भी जीवन महान नहीं बन सकता"।
 अतः अंत मे सिर्फ यही कहना चाहूंगी कि अपने देश के प्रति, अपने कानून के प्रति, मानवीयता के प्रति, नैतिकता के प्रति सजग रहें और उनके लिए अपने मन में इज्जत का भाव रखें तथा अनुशासन के साथ अपना जीवन जीने का प्रयास करें।  इसके साथ ही अपने आने वाली पीढ़ियों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। हम सभ्य समाज की यही जिम्मेदारी है कि दूसरों को सही दिशा, सही मार्गदर्शन, सही समय पर प्रदान करते हुए स्वयं को भी सही राह पर निर्देशित करें।यह परमावश्यक है तथा यही एकमात्र उपाय है।


लेखिका
डॉ विदुषी शर्मा


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