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पिपलांत्री : एक अनोखे गाँव की दास्ताँ

(Logo : पिपलांत्री गाँव)


आज मैं एक ऐसे आदर्श ग्राम पंचायत की बात करने जा रहा हूँ, जिसकी चर्चा न सिर्फ अपने भारत देश में होती है, बल्कि विदेशों में भी होती है। जिसका मॉडल अपना कर बहुत से गाँव आज तरक्की की नई-नई इमारतें खड़ी कर रहे हैं। जिस पर सैकड़ों डाक्यूमेंट्री फिल्में बन चुकी है। जिसे डेनमार्क की प्राइमरी पाठशालाओं में पढ़ाया जाता है। जहाँ बेटी का जन्म होने पर उत्सव मनाया जाता है उसके नाम पर 31हजार रूपये की एफडी की जाती है जिसमें पंचायत 21हजार और परिवार 10हजार रूपये का सहयोग करते है। और साथ ही साथ बेटी के जन्म पर गाँव में 111 वृक्षारोपण किया जाता है। वहाँ की बेटियाँ इन वृक्षों को अपना भाई मानती है और रक्षाबंधन के दिन उन्हें राखियां भी बांधती है। गाँव मे किसी की मृत्यु हो जाने पर भी 11 वृक्षारोपण का भी रिवाज है।
जो गाँव कभी संगमरमर की खादानों से निकलने वाले मलबे के कारण सफेद चादर से ढक चुका था।  जहाँ पीने के पानी को तरसते लोगों का निरंतर पलायन जारी था। जहाँ की अवो-हवा में सांस लेना दूभर हो गया था। जो सिर्फ अपनी मृत्यु के अंतिम दिन गिन रहा था। जी हां, मैं आज राजस्थान के राजसमंद जिले के पिपलांत्री गाँव की बात कर रहा हूँ। एक ऐसा गाँव जहाँ न तो पीने के पानी की सुविधा थी , न तो बिजली थी और ना ही कोई रोजगार था। फिर कैसे ये गाँव 'आदर्श गाँव' बना लोगों के लिए? आइए जानते है इस बारें में आगे।


(सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल)

बात 2005 की है जब पिपलांत्री गाँव की बागडोर वहाँ के एक ग्रामीण के हाथों में आयी। नाम था श्यामसुंदर पालीवाल। जिसने वहाँ ग्राम पंचायत का चुनाव जीता था। और गाँव का सरपंच बना।
श्यामसुंदर जी बताते है कि पिपलांत्री जैसे पिछड़े गाँव को आगे लाने के लिए हमें बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। वहीं गाँव के कुछ राजनीतिक विरोधियों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया था। ग्रामीणों को भड़का कर उनके खिलाफ तैयार किया जा रहा था। ये सिलसिला यूं ही एक साल चलता रहा। और आखिरकार ग्रामीणों की समझ में आ गया कि श्यामसुंदर जी उन्हें विकास की ओर ले जाने के लिए अब भी मजबूती से खड़े हुए थे। तभी ग्रामीणों ने मिलकर फैसला किया की वह गाँव की तरक्की में अपनी जो भी भूमिका होगी अदा करेंगे। श्यामसुंदर जी आगे बताते है कि ये मेरे अकेले की बस की बात नहीं थी, कि मैं पूरे गाँव का भाग्य बदल सकूँ। हमारे ग्रामीणों का उतना ही हाथ है जितना कि मेरा। मैने तो उन्हें सिर्फ दिशा दिखाई थी, जिसपर लोगों ने चलकर पूरे गाँव की तस्वीर ही बदल दी।


(पंचायत भवन पिपलांत्री गाँव)

वो आगे कहते है कि हम सभी ने मिलकर पंचायत में ये फैसला लिया था कि हम अब सरकारी सुविधाओं में हो रही देरी में अपने गाँव को उजड़ने नहीं देगें। हम जो भी करेंगे मिलकर करेंगे। अपने बल पर करेंगे। और आज इसी का नतीजा है कि हम एक आदर्श गाँव में जीवन व्यतीत कर रहे है। जहाँ बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल। पीने के लिए साफ पानी। प्रकाश के लिए बिजली, सोलर प्लांट। पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़-पौधें पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। एक वक्त था जब ये गाँव सफेदी की चादर ओढ़े अपनी अंतिम सासें गिन रहा था। दूर दूर तक कोई पेड़-पौधा नहीं था। जलस्तर भी काफी नीचे जा चुका था। ग्रामीणों का इस गाँव में रहना मुश्किल होता जा रहा था। और लोगों का पलायन भी जारी था।



सर्वप्रथम पिपलांत्री में बदलाव की शुरुआत जलसरंक्षण को लेकर हुई। पिपलांत्री संगमरमर की पहाड़ियों के बीच बसा एक गाँव है। जहाँ पर संगमरमर की माइनिंग होती थी और उस माइनिंग के दौरान बचा हुआ मलबा पिपलांत्री के आसपास फेंक दिया जाता था जिसके चलते पिपलांत्री की भूमि बंजर होती गई, जलस्तर भी घटने लगा और साथ ही साथ वहाँ की हरियाली भी धूमिल होती चली गई। जिसके चलते ग्रामीणों को आये दिन नित नई समस्याओं से जूझना पड़ता था। ग्रामीणों ने इस समस्या से उभरने के लिये जलसरंक्षण पर काम करना शुरू किया। इस काम में सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल की बेटी के जन्म पर 111 पौधों का रोपण करने की योजना काम आई और धीरे धीरे पूरे गाँव में आज 3 लाख से अधिक वानस्पतिक एंव औषधीय पौधों का एक विशाल उपवन तैयार हो गया। (111 वृक्षारोपण की योजना की शुरुआत पालीवाल जी ने अपनी इकलौती पुत्री किरण की असमय हुई मृत्यु के उपरांत की थी जिसे उन्होंने सभी ग्रामीणों पर लागू किया और सभी ग्रामीणों ने इस योजना को सहज स्वीकार भी किया था जिसे आज भी निभाया जा रहा है)।

बरसात के दिनों में वहाँ की पहाड़ियों से बहता हुआ जल अक्सर इस गाँव से दूर चला था, जिसका खामियाजा आये दिन ग्रामीणों को पानी की किल्लत के रूप में भुगतना पड़ता था। वहाँ के ग्रामीणों ने बरसात के जल को एकत्रित करने के लिए छोटे-छोटे चैक डैम बनाने शुरु कर दिये, जो कि सगंमरमर के बचे मलबें से तैयार किये गये थे। आज इस गाँव में जल को इस तरह से एकत्रित करने के लिए लगभग ऐसे 1800 छोटे-बड़े चैक डैम है। जिसके बदौलत वहाँ खेती एंव पीने के पानी की किल्लत को जड़ से खत्म कर दिया। और सभी ग्रामीणों के घर में अपने-अपने नल भी लग चुके है। एक वक्त था कि वहाँ की महिलाओं को दूर-दूर से पीने के पानी को सिर पर ढोकर लाना पड़ता था।


वक्त धीरे-धीरे चलता गया। पिपलांत्री भी उसी रफ्तार से आगे बढ़ता गया। और आज पिपलांत्री किसी पहचान का मोहताज नहीं है। बल्कि वह देश का मान है। एक मॉडल है- कुछ नया कर गुजर जाने का। देश में तरक्की का बीज बोने का। साथ मिलकर काम करने का। बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ आंदोलन का। वनस्पति एंव वन्यजीव की सुरक्षा का। साक्षात प्रमाण है प्रकृति की रक्षा का। प्रचारक है शुद्ध वातावरण का। और सबसे अहम, हमारे मजबूत इरादों का साथी है पिपलांत्री।



पालीवाल जी कहते है कि हमें किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। अगर हम कुछ नया करके दिखाते है तो हजारों हाथ हमारी सफलता को देखकर आगे मदद करने के लिए स्वतः चले आयेंगे। और यही फार्मूला पिपलांत्री ने अपनाया जिसके चलते हमें सरकारों के पास जाना नहीं पड़ा, बल्कि सरकार स्वयं हमारे पास चलकर आयी और हमारी तरक्की में चार चांद लगाने लगी। हमें सड़कों से जोड़ा गया। हमें बिजली की भी भरपूर सुविधा मिलने लगी। पानी की व्यवस्था होने लगी। हमारे गाँव में रोजगार उपलब्ध होने लगा। सरकारी स्कूल भी बेहतर होने लगे।

पिपलांत्री में हुए अद्भुत बदलाव को देखकर उसे राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। राजस्थान सरकार ने इस गाँव को 'पिपलांत्री मॉडल' नाम देकर राज्यों के सभी गाँवों में जोर-शोर से इस मॉडल को लागू भी कर दिया गया है। जिसके तहत बहुत से पिछड़े गाँवों की किस्मत ही बदल चुकी है।

[Via -गाँव-देहात]


शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com




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