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Showing posts from 2017

नववर्ष के स्वागत में : शक्ति सार्थ्य

आज साल २०१७ का समापन दिवस है। ये साल कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। मैं यहां महत्वता की बात नहीं करूंगा और ना ही उसकी जिसकी बजह से इसकी महत्ता को कम कर दिया जाए। मैं यहां चर्चा करना चाहूंगा तो सिर्फ आत्मज्ञान की, दर्शन की, क्षमायाचना की, एक नई सीख की और उस योजना की जिसको कतई महत्वपूर्ण नहीं समझा गया मेरे द्वारा। इस वर्ष हमारी चेतना जितनी जागृत होनी थी, हो ली। अब हम इसमें कुछ भी नहीं कर सकते। हम किन-किन मायनों में जागृत हुए और सिर्फ किस एक सही मायने में जागृत होकर हम क्या कर सकते थे? ये हम सभी भलि-भांति जानते हैं। क्योंकि हम ही खुद को सबसे ज्यादा जान सकते हैं। हम खुद की ही उन पहलुओं पर चर्चा करके खुद से ही बड़ी आलोचना कर सकते हैं। जिसका हम शायद (शायद क्या? सच में) एक बेहतर परिणाम निकाल सकते हैं। मैं अपनी बात की शुरुआत स्वामी विवेकानंद जी के इस कथन से करना चाहूंगा- "किसी चीज़ से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे, यह निर्भयता ही है, जो क्षणभर में परम आनंद लाती है।" स्वामी जी के इस कथन में जितनी सच्चाई है अपितु उससे कहीं अधिक इसकी प्रामाणिकता में गहराई भी है। हम न जाने क्यों हर...

हमारी अपनी मानसिकता का परिचय क्या हो सकता है? | शक्ति सार्थ्य

क्या हम आज के समय में अपनी स्वंय की ही मानसिकता से परिचित है? क्या सिर्फ परिचित होने का ढोंग कर रहे हैं? क्या हम परिचित हो भी सकते हैं? हमारे आज के समय के कुछ ऐसे विचार जो हमें ही समाजिक ढोंग में लिप्त होने को मजबूर कर देते है। हमें ये ज्ञात रहता है कि हम जो भी समाज में प्रस्तुति कर रहे हैं या करने जा है उसका सच के आईने से दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है। लेकिन फिर भी हम ऐसा करते है। लेकिन क्यों? शायद इन सब बातों का जबाव अमूमन सब को पता ही होता है। फिर भी हम अपनी उस मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाते, कि मैं अपने विचारों को सबसे बेहतर ढंग से प्रसारित कर सकता हूं। एक नये तड़के के साथ जो सिर्फ चटपटाहट का एक मात्र प्रतीक होता है। अमूमन सब ये जानते हुए भी है इसकी प्रस्तुति मात्र एक दिखावा है, फिर भी जोरदार तालियां की घनघनाहट से उसका स्वागत होता है। वो इसलिए कि ये वही लोग होते है जिन्हें खुद इस तरह की बातों के जरिए सराहा गया होता है। ये तो उनका एकमात्र फर्ज होता है जिसे वे जानकर भी अनजान बनकर निभाते हैं। हमारे आसपास समाज में बहुत-सी ऐसी बुराईयां व्याप्त है जिनका समाधान होना अति आवश्...

टाइगर जिंदा है | मूवी रिव्यू

फिल्म टाइगर जिंदा है कि कहानी आतंकवादियों के चुंगल में फंसी 40 नर्सों को उनसे आजाद कराने के मिशन पर आधारित है। जब आतंकी सरगना उस्मान अमेरिकी जर्नलिस्ट को मौत के घाट उतार देता है तभी अमेरिका बदला लेने के लिए उन पर हमला कर देता है जिसमें उस्मान जख्मी हो जाता है। तभी हास्पिटल में जा रही एक बस जिसमें 25 भारतीय और 15 पाकिस्तानी नर्सों को आंतकवादी कैद कर लेते हैं। और वे उनसे आंतकी सरगना उस्मान का इलाज भी करवाते हैं। इस बीच अमेरिका उस हास्पिटल में इलाज करवा रहे आंतकी को मार गिराने के लिए एक एयरस्ट्राइक प्लान कर देता है। जब ये बात राॅ को पता चलती है तब राॅ उन्हें बचाने के एक मिशन लांच करता है और उधर अमेरिका से स्ट्राइक न करने की अपील करता है, तभी अमेरिका राॅ को सात दिन का वक्त देता है। अब होती है एंट्री पूर्व राॅ एजेंट टाइगर और पूर्व आईएसआई एजेंट ज़ोया की जो एक अच्छे कपल भी है और उनका एक प्यारा-सा बेटा भी है जूनियर टाइगर। अब दोनों देश की टीम मिलकर आपसी मतभेद भुलाकर इस मिशन को अंजाम देती है। ये सब टाइगर की बजह से मुमकिन हो पाता है कि राॅ और आईएसआई मिलकर एक साथ इस मिशन में कामयाबी हासिल ...

हमारे अहम रिश्ते : शक्ति सार्थ्य

आज-कल की भागदौड़ भरी जिंदगी में सबसे अहम एवं विचारनीय मुद्दा ये है कि लोंगों से कैसे बेहतर संबंध बनाएं जा सके ? या फिर उन्हें सालों-साल तक कैसे बरकरार रखा जा सके। ये कोई आम मुद्दा नहीं है, बल्कि ये एक बेहद जरूरी मुद्दा है, जिस पर चर्चा करना हर व्यक्ति के लिए जरूरी है ताकि हम बेहतर संबंध बनाने में कामयाब हो सकें। रिश्तों की बाग-डोर हमेशा हमारे द्वारा सामने वाले व्यक्ति के प्रति हमारें विचारों के आदान-प्रदान कैसे है, पर ही उलझी या सुलझी रहती है। आपका सामने वाले के प्रति कैसा व्यवहार है ये आपसे बेहतर शायद ही कोई जानता हों। आप उसके प्रति क्या सोंच रखते हैं ये एक सबसे अहम मुद्दा है। क्योंकि हमारी सोंच ही हमारे द्वारा सामने वाले व्यक्ति के प्रति हमारें व्यवहार पर काम करती है। अक्सर देखा गया है कि लोग अपने थोड़े से फायदे के लिए कभी भी कहीं भी सालों साल पुराने रिश्तों को भी खोने से नहीं चूकते। उन्हें सिर्फ अपने निजी फायदे से मतलब रहता है। सामने वाले व्यक्ति की भावनाओं से खिलवाड़ करना उनका मानों नियम ही बन जाता है। स्वयंभू की धारणा उनका एकमात्र मात्र लक्ष्य ही नहीं बल्कि जीवन ही है। वे सम...

सफलता हमारी सोंच की ही एक उपज है : शक्ति सार्थ्य

सफल होना हर किसी का स्वप्न होता है चाहे वह कैसी भी सफलता क्यों न हो ? समाज का हर वो व्यक्ति जो कहीं न कहीं इस सोंच से जुड़ा रहता है कि धन आदि अर्जित करना ही सफलता का एक बड़ा उदाहरण है। निसंदेह वह गलत सोंचता है। बल्कि सफलता इससे कोसों दूर कहीं एक ऐसी जगह पर अडिग है जहां पर वह पहुंचना तो चाहता है किंतु समझ ही नहीं पाता और सारा श्रेय धन अर्जन की स्थिति को दे बैठता है। धन अर्जित करना एक तरह की बिशेष कला जिसका सफलता से कहीं दूर-दूर तक कोई संबंध ही नहीं है। धन अर्जन करते करते वह व्यक्ति एक तरह की ऐसी आदत बल्कि हम इसे इगो भी कह सकते को डेवलप कर लेता हैं जो समाज को धन का बुनियादी ढांचा समझ लेता हैं और उसे ही सफलता का नाम देने से कतई नहीं चूंकता। वो इस बात के भ्रम में हैं कि वह सबसे सफल व्यक्ति है। हां धनी जरूर है वह। सफलता यूं ही हाथ नहीं लगती। इसे पाने के लिए हमें एकाग्रचित होकर जुटना होता है, अपने उस लक्ष्य की ओर जो हमने सफल होने के लिए निर्धारित किया है। शायद ये लक्ष्य इतना विशाल और जटिल होता है कि हमारी एकाग्रता हर-पल हर-मोड़ पर डगमगाने लगती है। जो डट कर सामना करते हैं श...

बिहार बनाम शिक्षा : कुमार प्रियांक

दिल्ली यूनिवर्सिटी में अच्छी-खासी संख्या बिहार से, पंजाब-महाराष्ट्र-कर्नाटक-तमिलनाडु इत्यादि के विभिन्न इंजीनियरिंग कॉलेज में डोनेशन से पढ़ने वाले अधिसंख्य बच्चे बिह...

5 साल से सूखाग्रस्त इस देश में पानी के लिए कत्लेआम

इस समय पूरी दुनिया पानी के संकट से जूझ रही है और सुनने में आता है कि अगला वर्ल्ड वॉर पानी के लिए हो सकता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अफ्रीकी देश केन्या, जो पिछले  5 साल के भीषण स...

खोज: कृत्रिम रक्त से दूर होगी अस्पतालों में खून की कमी

अस्पतालों में किसी गंभीर ऑपरेशन या डेंगू जैसी बीमारी के बड़े पैमाने पर फैलने पर खून की कमी का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को जड़ से खत्म करने की कोशिशों में लगे विशेषज्ञ लैब में कृत्रिम रक्त बनाने के करीब पहुंच गए हैं। इस सफलता के साथ पिछले 20 वर्षों से जारी प्रयोग चरम पर पहुंच गया है। बोस्टन चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉक्टर जॉर्ज डेले और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डीन ने बताया कि उनकी टीम प्रयोगशाला में मनुष्य का रक्त स्टेम सेल बनाने के काफी करीब पहुंच गए हैं। डॉ. डेले ने बताया कि उनकी टीम ने प्रयोगशाला में रक्त बनाने वाली स्टेम कोशिकाएं विकसित कर ली हैं। प्रयोग के दौरान देखा गया कि यह कोशिकाएं जब चूहों में प्रविष्ट की गईं तो वे विभिन्न तरह के मन्युष्य के रक्त ब्लड सेल बना पा रही थीं। विशेषज्ञों ने 1988 में ह्यूमन एंब्रियोनिक स्टेम सेल की पहचान कर ली थी। इसके बाद से ही इनके जरिये रक्त का निर्माण करने वाली स्टेम कोशिकाएं बनाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। अगर वे इस प्रयोग में सफल रहते हैं तो यह रक्त संबंधी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए जीवन बदलने वाली उपलब्धि साबि...

जनकृति अंतरराष्ट्रीय पत्रिका का नया अंक (अंक 24)

जनकृति अंतरराष्ट्रीय पत्रिका का नवीन अंक (अंक 24, अप्रैल 2017) प्रकाशित। यह अंक आप पत्रिका की वेबसाईट (www.jankritipatrika.in) पर पढ़ सकते हैं। इस अंक में विभिन्न क्षेत्रों से विषय विविधता को ध्यान म...

रैनसमवेयर - फिरौती वसूलने वाला मैलवेयर : मयंक सक्सेना

ख़ैर चूंकि डिग्री साबित करने के लिए अब तकनीक पर ज्ञान पेलने ही लगा हूं तो आज रैनसमवेयर पर ज्ञान ले लीजिए...अरे, कन्फ्यूज़ मत होइए...ये वही प्रोग्राम है, जिसे वायरस-वायरस कह कर न्यूज़ चैनल हौवा फैलाए हुए हैं...तो थोड़ा सा ज्ञान इसके बारे में... तो साहेबान, रैनसमवेयर कोई नई चीज़ नहीं है...हां, फिलहाल वानाक्राय से लोग वाकई वानाक्राय कह रहे हैं...क्योंकि शायद इसके हमले के लिए लम्बे समय से तैयारी की जा रही थी और पिछले कई साल से इसके छोटे-मोटे हमलों को गंभीरता से नहीं लिया गया। रैनसमवेयर को हिंदी में फिरौतीवायरस कहा जा सकता है। क्योंकि दरअसल यह आपके सिस्टम में प्रवेश करने के बाद, फाइलों को इनक्रिप्ट कर के, एक ही अनजान फाइल फॉर्मेट में बदल देता है और वह खुलना बंद हो जाती हैं। क्योंकि अलग-अलग एप्लीकेशन अपने विशेष फाइल फ़ॉर्मेट को ही पहचान सकते हैं और यह उनके फाइल टाइप को ही बदल कर उनके कोड को इनक्रिप्ट कर देता है। यानी कि यह ट्रोज़न तरीके से आपके सिस्टम में घुसेगा, उसकी फाइलें बदल देगा और फिर आप उनको खोल नहीं सकेंगे। तस्वीरें, वर्ड प्रोसेसिंग डॉक्यूमेंट, फिल्में, गाने सब एक ही फाइल फॉर्मे...