क्या हम आज के समय में अपनी स्वंय की ही मानसिकता से परिचित है? क्या सिर्फ परिचित होने का ढोंग कर रहे हैं? क्या हम परिचित हो भी सकते हैं?
हमारे आज के समय के कुछ ऐसे विचार जो हमें ही समाजिक ढोंग में लिप्त होने को मजबूर कर देते है। हमें ये ज्ञात रहता है कि हम जो भी समाज में प्रस्तुति कर रहे हैं या करने जा है उसका सच के आईने से दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है। लेकिन फिर भी हम ऐसा करते है। लेकिन क्यों? शायद इन सब बातों का जबाव अमूमन सब को पता ही होता है। फिर भी हम अपनी उस मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाते, कि मैं अपने विचारों को सबसे बेहतर ढंग से प्रसारित कर सकता हूं। एक नये तड़के के साथ जो सिर्फ चटपटाहट का एक मात्र प्रतीक होता है। अमूमन सब ये जानते हुए भी है इसकी प्रस्तुति मात्र एक दिखावा है, फिर भी जोरदार तालियां की घनघनाहट से उसका स्वागत होता है। वो इसलिए कि ये वही लोग होते है जिन्हें खुद इस तरह की बातों के जरिए सराहा गया होता है। ये तो उनका एकमात्र फर्ज होता है जिसे वे जानकर भी अनजान बनकर निभाते हैं।
हमारे आसपास समाज में बहुत-सी ऐसी बुराईयां व्याप्त है जिनका समाधान होना अति आवश्यक हो गया है। गर आज हम इनके समाधान के लिए कोई जरुरी योजना नहीं बनायेंगे तो ये सभी बुराईयों की जड़ें और भी मजबूत हो जायेंगी। हमारे समाज की मानसिकता इन्हीं सब चीजों पर निर्भर है। जितनी ज्यादा बुराईयां उनती ही गलत मानसिकता। और ये मानसिकता हमारी आने वाली नस्लों को यूं ही ध्वस्त करती रहेगी फिर हम एक कमजोर समाज के निवासी बनते चले जायेंगे। जिसका सिर्फ एक ही अर्थ रहेगा कि हमें कैसे भी करके खुद को जिंदा रखना हैं। बाकी जाए सब भाड़ में। जरा फर्ज़ करो की कैसा होगा वो समाज जहां स्वंय की ही जिम्मेदारी होगी। स्वंय ही राजा बनना चाहेगा। स्वंय ही सारे सुख भोगना चाहेगा। ये तो सिर्फ एक गृह युद्ध की तैयारी का सामान है। जिसमें हम किसी और से नहीं बल्कि स्वंय से युद्ध कर रहे होते हैं। और जो व्यक्ति स्वयं से युद्ध करने पर उतर आता है तो समझो वो युद्ध करने से पहले ही पराजित हो जाता है। मैं कहता हूं कि गर आपको युद्ध करना ही है तो अपनी उस गलत धारणा वाली मानसिकता से करों। शायद जीत के बाद कोई बेहतर हल निकल आये। जो आपको और आपके समाज को बेहतर जीवनशैली जीने की नई राहें प्रदान करें।
यहां कुछ जरूरी बातें है जो हमें ठीक से समझ लेनी चाहिए...
१-) हम हमेशा गलत मानसिकता को बढ़ावा देकर स्वंय की ही पतन की कहानी लिख रहें होते हैं।
२-) हमारे पतन के बाद क्या वजूद रहेगा समाज का?
३-) यहां हर किसी को चाहिए कि वो सिर्फ सही को सराहें।
४-) गलत मानसिकता फैला रहे लोगों को अपनी सभा से दूर करना ही उचित होगा।
५-) सभी को अपने अपने मत रखने का समान अधिकार होना चाहिए ताकि सभी छुपी हुई बातें खुलकर सामने आयें।
६-) जब ऐसा संभव होगा कि सभी के मतों को स-सम्मान सुना जा रहा है तो उनकी प्रतिभा में निरंतर निखार आना शुरू हो जायेगा।
७-) जब किसी के विचारों में बदलाव आता है तब वह समाज को एक बेहतर दिशा में ले जाने के लिए सक्षम हो जाता है।
८-) बेहतर समाज के लिए हमें समाज के हर उस तबके का सम्मान करना होगा जो सम्मान के हकदार होने के बावजूद भी सम्मान से वंचित रह गए।
९-) जब हर जन सम्मानित महसूस करेगा तब हर ओर खुशी का माहौल अपने आप ही प्रसारित हो जायेगा।
१०-) जहां खुशी होगी वहां स्वर्ग अपने आप चला जायेगा।
१-) हम हमेशा गलत मानसिकता को बढ़ावा देकर स्वंय की ही पतन की कहानी लिख रहें होते हैं।
२-) हमारे पतन के बाद क्या वजूद रहेगा समाज का?
३-) यहां हर किसी को चाहिए कि वो सिर्फ सही को सराहें।
४-) गलत मानसिकता फैला रहे लोगों को अपनी सभा से दूर करना ही उचित होगा।
५-) सभी को अपने अपने मत रखने का समान अधिकार होना चाहिए ताकि सभी छुपी हुई बातें खुलकर सामने आयें।
६-) जब ऐसा संभव होगा कि सभी के मतों को स-सम्मान सुना जा रहा है तो उनकी प्रतिभा में निरंतर निखार आना शुरू हो जायेगा।
७-) जब किसी के विचारों में बदलाव आता है तब वह समाज को एक बेहतर दिशा में ले जाने के लिए सक्षम हो जाता है।
८-) बेहतर समाज के लिए हमें समाज के हर उस तबके का सम्मान करना होगा जो सम्मान के हकदार होने के बावजूद भी सम्मान से वंचित रह गए।
९-) जब हर जन सम्मानित महसूस करेगा तब हर ओर खुशी का माहौल अपने आप ही प्रसारित हो जायेगा।
१०-) जहां खुशी होगी वहां स्वर्ग अपने आप चला जायेगा।
© शक्ति सार्थ्य
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