आज-कल की भागदौड़ भरी जिंदगी में सबसे अहम एवं विचारनीय मुद्दा ये है कि लोंगों से कैसे बेहतर संबंध बनाएं जा सके ? या फिर उन्हें सालों-साल तक कैसे बरकरार रखा जा सके। ये कोई आम मुद्दा नहीं है, बल्कि ये एक बेहद जरूरी मुद्दा है, जिस पर चर्चा करना हर व्यक्ति के लिए जरूरी है ताकि हम बेहतर संबंध बनाने में कामयाब हो सकें।
रिश्तों की बाग-डोर हमेशा हमारे द्वारा सामने वाले व्यक्ति के प्रति हमारें विचारों के आदान-प्रदान कैसे है, पर ही उलझी या सुलझी रहती है। आपका सामने वाले के प्रति कैसा व्यवहार है ये आपसे बेहतर शायद ही कोई जानता हों। आप उसके प्रति क्या सोंच रखते हैं ये एक सबसे अहम मुद्दा है। क्योंकि हमारी सोंच ही हमारे द्वारा सामने वाले व्यक्ति के प्रति हमारें व्यवहार पर काम करती है।
अक्सर देखा गया है कि लोग अपने थोड़े से फायदे के लिए कभी भी कहीं भी सालों साल पुराने रिश्तों को भी खोने से नहीं चूकते। उन्हें सिर्फ अपने निजी फायदे से मतलब रहता है। सामने वाले व्यक्ति की भावनाओं से खिलवाड़ करना उनका मानों नियम ही बन जाता है। स्वयंभू की धारणा उनका एकमात्र मात्र लक्ष्य ही नहीं बल्कि जीवन ही है। वे समाज की सभी संभावित रीति-रिवाज को एक ताक पर रखकर चलते है। जहां पर सिर्फ वो ही अपना कब्जा करने की जुगत में भिन्न-भिन्न चालें चला करते हैं। उनकी चालें सिर्फ उनकी ही चालें होती है।
कई मायनों में ये भी देखा गया है कि हमारे घनिष्ठ रिश्ते सिर्फ हमारी ही गलतफहमी की बलि चढ़ जाते है। हम स्वयं अपने और उनके तर्क पर भी खरे नहीं उतर पाते, या फिर हम खुद को इनसिक्योर समझने लग जाते है। जिसकी कोई बजहें भी नहीं होती होंगी या फिर होती भी होंगी। हम हमेशा उन कारणों को तलाश करने अक्षम हो जाते है जिसने ये बजहें तैयार की जाती है, या फिर ऐसा भी होता होगा कि हम जानबूझकर ही एक कदम आगे बढ़ाना नहीं चाहतें, क्योंकि हम मान-मर्यादा वाले जो ठहरे, क्यों झुकेंगे किसी के समक्ष? किसी से सुलह करने से बेहतर हम उससे किनारा करने में विश्वास रखते हैं। दोबारा के लिए झंझट ही खत्म।
कोई भी रिश्तें ऐसे नहीं बन जाते। उन्हें बनाना पड़ता है। क्योंकि रिश्तों की डोर हमेशा एक ऐसे कच्चे धागे के बीच तनातनी में रहती जो कभी भी टूट सकती है। इस डोर की मजबूती के लिए हमारे बीच बेहतर सोंच एवं निश्छल संवाद का होना जरूरी है, जो हमारे रिश्तों की डोर के बीच में कच्चेपन का बीज ही न उगने दें।
रिश्तों के चारों ओर एक ऐसी मजबूत सोंच एवं विश्वास की पृष्ठभूमि तैयार की जाए जिसके माध्यम से हमेशा हमारे बीच पारदर्शिता बनी रहे। कोई भी ऐसा तथ्य छुपा हुआ न रह सके जिससे आपसी भेदभाव पनपे और न ही हमारी भावनाओं को क्षति पहुंचे।
रिश्तों के चारों ओर एक ऐसी मजबूत सोंच एवं विश्वास की पृष्ठभूमि तैयार की जाए जिसके माध्यम से हमेशा हमारे बीच पारदर्शिता बनी रहे। कोई भी ऐसा तथ्य छुपा हुआ न रह सके जिससे आपसी भेदभाव पनपे और न ही हमारी भावनाओं को क्षति पहुंचे।
"रिश्तों का रिश्तों में बांधे रहना किसी आध्यात्मिक सोंच का ही परिणाम है, जिसके माध्यम से विचलित होती विचारधारा को भी एकाग्रता का पाठ सिखाया जा सकता है।' ये गहन तपस्या का ही परिणाम है जिसके फलस्वरूप हमने रिश्तों की एक मजबूत दीवार बना ली है जिससे हम आध्यात्मिक सोंच तक पहुंच सके और बेहतरी से रिश्तों की सूझबूझ पर दृढ़ हो सके।"
" व्यवहारिक मतभेदों का आपसी मतभेदों में तब्दील होने में समय नहीं लगता, गर समय लगता है तो बस उनसे निजात पाने में।"
"जब तक कि हम संबंधो पर खुलकर विचार-विमर्श नहीं करते तब तक वे संबंध बेहतर नहीं बन सकते।"
"ये हमेशा याद रखा जा सकता है कि, हमारे विचार ही हमारे संबंधों की मूल एवं मजबूत कड़ी हैं।"
"जब, तब हो सके तो झुक लेने में ही भलाई समझें, वो हंसी पल और दोस्त वापस नहीं मिल सकते, हां दौलत तो वापस मिल सकती है।"
"हो सके तो हमें आखिरी समय तक भी प्रयासरत रहना चाहिए, जब तक की आशा की एक भी किरण न फूट पड़े।"
"सामने वाले के अंदर वेशक बदलाव न ला सको, किंतु अपने अंदर हमेशा बदलाव की जंग जारी रखना।"
"आवश्यकता है तो बस खुद को बदलने की..., एक नई सोंच और ऊर्जा की.. गर हम बदले तो धीरे-धीरे हमारा परिवेश भी बदल जायेगा और एक नये युग का निर्माण स्वत: हो जायेगा। बस हमें अपनी सोंच पर काबू पाना है।"
© शक्ति सार्थ्य
ShaktiSarthya@gmail.com
ShaktiSarthya@gmail.com
Comments
Post a Comment