Skip to main content

रैनसमवेयर - फिरौती वसूलने वाला मैलवेयर : मयंक सक्सेना

ख़ैर चूंकि डिग्री साबित करने के लिए अब तकनीक पर ज्ञान पेलने ही लगा हूं तो आज रैनसमवेयर पर ज्ञान ले लीजिए...अरे, कन्फ्यूज़ मत होइए...ये वही प्रोग्राम है, जिसे वायरस-वायरस कह कर न्यूज़ चैनल हौवा फैलाए हुए हैं...तो थोड़ा सा ज्ञान इसके बारे में...
तो साहेबान, रैनसमवेयर कोई नई चीज़ नहीं है...हां, फिलहाल वानाक्राय से लोग वाकई वानाक्राय कह रहे हैं...क्योंकि शायद इसके हमले के लिए लम्बे समय से तैयारी की जा रही थी और पिछले कई साल से इसके छोटे-मोटे हमलों को गंभीरता से नहीं लिया गया।
रैनसमवेयर को हिंदी में फिरौतीवायरस कहा जा सकता है। क्योंकि दरअसल यह आपके सिस्टम में प्रवेश करने के बाद, फाइलों को इनक्रिप्ट कर के, एक ही अनजान फाइल फॉर्मेट में बदल देता है और वह खुलना बंद हो जाती हैं। क्योंकि अलग-अलग एप्लीकेशन अपने विशेष फाइल फ़ॉर्मेट को ही पहचान सकते हैं और यह उनके फाइल टाइप को ही बदल कर उनके कोड को इनक्रिप्ट कर देता है।
यानी कि यह ट्रोज़न तरीके से आपके सिस्टम में घुसेगा, उसकी फाइलें बदल देगा और फिर आप उनको खोल नहीं सकेंगे। तस्वीरें, वर्ड प्रोसेसिंग डॉक्यूमेंट, फिल्में, गाने सब एक ही फाइल फॉर्मेट में बदल जाएंगे। आप क्लिक करेंगे, तो ये आपको एक वेबपेज पर ले जाएगा, जहां आपसे फाइलों को खोलने के बदले पैसे मांगे जाएंगे। आप माथे पर हाथ रख लेंगे, क्योंकि आप को न तो कोडिंग आती है, न आप इनक्रिप्शन एक्सपर्ट हैं। वैसे भी एक का किया इनक्रिप्शन, दूसरे के लिए डीक्रिप्ट करना बच्चों का खेल नहीं है।
यह एक तरह की हैकिंग ही है, बस यह आपका डेटा सिर्फ देख नहीं रही...बल्कि उसे इनक्रिप्ट भी कर दे रही है। इनक्रिप्ट करने का मतलब किसी फाइल को ऐसे कोड कर देना, कि कोई बिना उसकी की (कुंजी) के उसे देख-पढ़ न सके। रैनसमवेयर जिस प्रोग्रामिंग तकनीक पर काम करता है, उसे क्रिप्टोवायरोलॉजी कहते हैं।
रैनसमवेयर बिल्कुल कोई नई तकनीक नहीं है, जिसका हल्ला मीडिया मचा रहा है। इसके तकरीबन 11 साल पहले कोलम्बिया विश्वविद्यालय में विकसित किया गया था। 1996 की IEEE की सिक्योरिटी एंड प्रिवेसी कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किया गया था। यह तीन राउंड प्रोटोकॉल को फॉलो करता है -
1. (अटैकर→पीड़ित) अटैकर एक की पेयर बनाता है और उसे मैलवेयर की पब्लिक में रख देता है। इसके बाद मैलवेयर (वायरस) रिलीज़ कर दिया जाता है।
2. (पीड़ित→अटैकर) क्रिप्टोवायरल फिरौती के हमले के लिए मैलवेयर एक रेंडम सिमेट्रिक की बनाता है और पीड़ित के डाटा को इनक्रिप्ट कर के अपने फाइल फॉर्मेट में बदल देता है। अब पीड़ित अपनी फाइलों को खोल नहीं सकता है, क्योंकि हर एप्लीकेशन अपना फाइल फ़ॉर्मेट ही पढ़ सकता है सो इन फाइलों को रीड कर के खोलने में असमर्थ हो जाता है।
3. (अटैकर→पीड़ित) फाइल क्लिक करते ही आप एक वेबपेज पर जाते हैं, जो आपसे एक भुगतान के बदले फाइलों को डीक्रिप्ट करने की कुंजी देने की बात करता है। आप अगर ज़रूरी फाइलें चाहते हैं तो फिरौती देने पर मजबूर होते हैं। नहीं, तो आपकी सारी फाइलें बेकार हो जाती हैं।
लेकिन पहला रैनसमवेयर, इस थिअरी के लिखे जाने के भी 7 साल पहले, 1989 में बनाया जा चुका था। जिसका नाम AIDS Trojan था। यह भी नहीं है कि यह आज भारी संख्या में आया है, यह 2005 में ही खूब इस्तेमाल होने लगा था। हाल में इसके हमलों में वृद्धि 2013 से शुरु हुई और रूस जैसे देशों में इसने खूब कहर बरपाया।
दिक्कत यह है कि हम इसके अपेक्षाकृत छोटे हमलों को नज़रअंदाज़ करते गए। और अपने अपेक्षाकृत छोटे लेकिन व्यापक परीक्षणों के बाद, अब हैकरों ने पूरी तैयारी और शोध के बाद इस हमले को अंजाम दिया है। जैसा कि हमारी फितरत होती है...हम ऐसी तमाम फाइलों से आकर्षित हो कर उन्हें खोलते हैं, जिनसे हमको कोई मतलब नहीं होता। जैसे कि पोर्न, फिल्मी सितारों से जुड़ी गॉसिप, गुप्तांगों के विकास की तकनीक और दवाएं...मोटापा कम करने के इलाज...वगैरह-वगैरह...
तो इन्ही लालचों को देकर, ये रैनसमवेयर आपको अपने पास बुलाता है। आप ईमेल या वेबलिंक पर क्लिक करते हैं...और यह आपके सिस्टम में अगर अच्छा मैलवेयर ब्लॉकर नहीं है, तो आपको अपना शिकार बना लेता है। इसके बाद आप अपनी फाइलों को खोल नहीं सकते हैं।
हाल में हमारे साथी Nitin Thakur 2015-2016 में जब मुंबई में हमारे साथ रहते थे, तो इसी रैनसमवेयर के हमले को भुगत चुके हैं। वो आपको इसका अपना निजी अनुभव दे सकते हैं। हालांकि उनके सिस्टम में ये वायरस किसी की हार्डडिस्क या पेन ड्राइव के ज़रिए आया था।
हां, तो सावधानियां बरतें...
अपनी ईमेल पर आए किसी भी बिना काम के लिंक को न खोलें।
अपने सोशलमीडिया पर आए इनबॉक्स से भी सावधान रहें।
पेनड्राइव को बिना स्कैन किए न इस्तेमाल करें।
अच्छा एंटीवायरस ही नहीं, साथ में मैलवेयर ब्लॉकर भी इस्तेमाल करें (इंटरनेट पर तमाम फ्री उपलब्ध हैं।)
विंडोज़ फायरवॉल को ऑन रखें।
टॉरेंट डाउनलोड करते समय अच्छे पॉप अप ब्लॉकर का इस्तेमाल करें।
ज़रूरत से ज़्यादा एप्लीकेशन डाउनलोड करने के चक्कर में न पड़ें।
पॉर्न देखने के शौकीन हैं, तो खुलने वाले लिंक्स के चक्कर में न आएं।
मन को क़ाबू में रखना सीखें।
और ये सारी हिदायतें किसी वायरस के हमले के समय ख़बरों से डर कर ही न फॉलो करें। इनको आदत में लाएं क्योंकि यह एक बेसिक रूलबुक है, जिसका पालन ऩॉर्मल आदमी को करना ही चाहिए।
हम लगातार फेसबुक पर ऐसे ट्रोज़न देखते रहे हैं, जिनमें कोई पॉर्न वीडियो होता है और अधिकतर पुरुष उस पर क्लिक करने के लोभ का संवरण नहीं कर पाते और फिर आपकी आईडी से वह तमाम लोगों के इनबॉक्स में जाता है और आप टाइमलाइन पर माफ़ी मांगते फिरते हैं कि आपने वह नहीं भेजा।
लालच और नीयत पर नियंत्रण ही ऐसे हमले से बचने का सबसे आसान उपाय है। बाकी सारे उपाय, बीमारी के बाद के इलाज हैं, जिनके पक्का होने की कोई गारंटी नहीं।
याद रहे, सावधानी ही बचाव है...मीडिया की डराने वाली ख़बरों से भी सावधान रहें।
#WannaCry
#Ransomware
[फेसबुक से साभार]
©मयंक सक्सेना

Comments

Popular posts from this blog

भागी हुई लड़कियां (कविता) : आलोक धन्वा

एक घर की जंजीरें कितना ज्यादा दिखाई पड़ती हैं जब घर से कोई लड़की भागती है क्या उस रात की याद आ रही है जो पुरानी फिल्मों में बार-बार आती थी जब भी कोई लड़की घर से भगती थी? बारिश से घिरे वे पत्थर के लैम्पपोस्ट महज आंखों की बेचैनी दिखाने भर उनकी रोशनी? और वे तमाम गाने रजतपरदों पर दीवानगी के आज अपने ही घर में सच निकले! क्या तुम यह सोचते थे कि वे गाने महज अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिए रचे गए? और वह खतरनाक अभिनय लैला के ध्वंस का जो मंच से अटूट उठता हुआ दर्शकों की निजी जिन्दगियों में फैल जाता था? दो तुम तो पढ कर सुनाओगे नहीं कभी वह खत जिसे भागने से पहले वह अपनी मेज पर रख गई तुम तो छुपाओगे पूरे जमाने से उसका संवाद चुराओगे उसका शीशा उसका पारा उसका आबनूस उसकी सात पालों वाली नाव लेकिन कैसे चुराओगे एक भागी हुई लड़की की उम्र जो अभी काफी बची हो सकती है उसके दुपट्टे के झुटपुटे में? उसकी बची-खुची चीजों को जला डालोगे? उसकी अनुपस्थिति को भी जला डालोगे? जो गूंज रही है उसकी उपस्थिति से बहुत अधिक सन्तूर की तरह केश में तीन उसे मिटाओगे एक भागी हुई लड़की को मिट...

गजानन माधव मुक्तिबोध की कालजयी कविताएं एवं जीवन परिचय

ब्रह्मराक्षस गजाननमाधव मुक्तिबोध   शहर के उस ओर खंडहर की तरफ परित्यक्त सूनी बावड़ी के भीतरी ठंडे अँधेरे में बसी गहराइयाँ जल की... सीढ़ियाँ डूबी अनेकों उस पुराने घिरे पानी में... समझ में आ न सकता हो कि जैसे बात का आधार लेकिन बात गहरी हो। बावड़ी को घेर डालें खूब उलझी हैं, खड़े हैं मौन औदुंबर। व शाखों पर लटकते घुग्घुओं के घोंसले परित्यक्त भूरे गोल। विद्युत शत पुण्य का आभास जंगली हरी कच्ची गंध में बसकर हवा में तैर बनता है गहन संदेह अनजानी किसी बीती हुई उस श्रेष्ठता का जो कि दिल में एक खटके सी लगी रहती। बावड़ी की इन मुँडेरों पर मनोहर हरी कुहनी टेक बैठी है टगर ले पुष्प तारे-श्वेत उसके पास लाल फूलों का लहकता झौंर - मेरी वह कन्हेर... वह बुलाती एक खतरे की तरफ जिस ओर अंधियारा खुला मुँह बावड़ी का शून्य अंबर ताकता है। बावड़ी की उन गहराइयों में शून्य ब्रह्मराक्षस एक पैठा है, व भीतर से उमड़ती गूँज की भी गूँज, हड़बड़ाहट शब्द पागल से। गहन अनुमानिता तन की मलिनता दूर करने के लिए प्रतिपल पाप छाया दूर करने के लिए, दिन-रात स्वच्छ करने - ब्रह्मराक्षस...

जनकृति पत्रिका का नया अंक (अंक 33, जनवरी 2018)

#जनकृति_का_नवीन_अंक_प्रकाशित आप सभी पाठकों के समक्ष जनकृति का नया अंक (अंक 33, जनवरी 2018)  प्रस्तुत है। यह अंक आप पत्रिका की वेबसाइट www.jankritipatrika.in पर पढ़ सकते हैं। अंक को ऑनलाइन एवं पीडीएफ दोनों प्रारूप में प्रकाशित किया गया है। अंक के संदर्भ में आप अपने विचार पत्रिका की वेबसाइट पर विषय सूची के नीचे दे सकते हैं। कृपया नवीन अंक की सूचना को फेसबुक से साझा भी करें। वर्तमान अंक की विषय सूची- साहित्यिक विमर्श/ Literature Discourse कविता मनोज कुमार वर्मा, भूपेंद्र भावुक, धर्मपाल महेंद्र जैन, खेमकरण ‘सोमन’, रामबचन यादव, पिंकी कुमारी बागमार, वंदना गुप्ता, राहुल प्रसाद, रीना पारीक, प्रगति गुप्ता हाईकु • आमिर सिद्दीकी • आनन्द बाला शर्मा नवगीत • सुधेश ग़ज़ल • संदीप सरस कहानी • वो तुम्हारे साथ नहीं आएगी: भारत दोसी लघुकथा • डॉ. मधु त्रिवेदी • विजयानंद विजय • अमरेश गौतम पुस्तक  समीक्षा • बीमा सुरक्षा और सामाजिक सरोकार [लेखक- डॉ. अमरीश सिन्हा] समीक्षक: डॉ. प्रमोद पाण्डेय व्यंग्य • पालिटिशियन और पब्लिक: ओमवीर करन • स्वास्थ्य की माँगे खैर, करे सुबह की...

भारतीय शिक्षा प्रणाली - शक्ति सार्थ्य

[चित्र साभार - गूगल] कहा जाता है कि मानसिक विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य होता है, जिससे वह व्यक्ति अपने विकास के साथ साथ देश के विकास में भी मुख्य भूमिका अदा कर सके। अब सवाल उठता है कि- क्या भारत की शिक्षा प्रणाली हमारे मानसिक विकास के लिए फिट बैठती है? क्या हमारे विश्वविद्यालय, विद्यालय या फिर स्कूल छात्रों के मानसिक विकास पर खरा उतर रहे है?  क्या वह छात्रों को उस तरह से शिक्षित कर रहे है जिसकी छात्रों को आवश्यकता है? क्या छात्र आज की इस शिक्षा प्रणाली से खुश है? क्या आज का छात्र रोजगार पाने के लिए पूर्णतया योग्य है? असर (ASER- Annual Status Of Education Report) 2017 की रिपोर्ट बताती है कि 83% Student Not Employable है। इसका सीधा सीधा अर्थ ये है कि 83% छात्रों के पास जॉब पाने की Skill ही नहीं है। ये रिपोर्ट दर्शाती है कि हमारे देश में Youth Literacy भले ही 92% प्रतिशत है जो अपने आप में एक बड़ी बात है, लेकिन हमारी यही 83% Youth Unskilled भी है। जहाँ हमारा देश शिक्षा देने के मामले में हमेशा अग्रणी रहा है, और उसमें भी दिन-प्रतिदिन शिक्षा ...

कुकुरमुत्ता (कविता) - सुर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

कुकुरमुत्ता- एक थे नव्वाब, फ़ारस से मंगाए थे गुलाब। बड़ी बाड़ी में लगाए देशी पौधे भी उगाए रखे माली, कई नौकर गजनवी का बाग मनहर लग रहा था। एक सपना जग रहा था सांस पर तहजबी की, गोद पर तरतीब की। क्यारियां सुन्दर बनी चमन में फैली घनी। फूलों के पौधे वहाँ लग रहे थे खुशनुमा। बेला, गुलशब्बो, चमेली, कामिनी, जूही, नरगिस, रातरानी, कमलिनी, चम्पा, गुलमेंहदी, गुलखैरू, गुलअब्बास, गेंदा, गुलदाऊदी, निवाड़, गन्धराज, और किरने फ़ूल, फ़व्वारे कई, रंग अनेकों-सुर्ख, धनी, चम्पई, आसमानी, सब्ज, फ़िरोज सफ़ेद, जर्द, बादामी, बसन्त, सभी भेद। फ़लों के भी पेड़ थे, आम, लीची, सन्तरे और फ़ालसे। चटकती कलियां, निकलती मृदुल गन्ध, लगे लगकर हवा चलती मन्द-मन्द, चहकती बुलबुल, मचलती टहनियां, बाग चिड़ियों का बना था आशियाँ। साफ़ राह, सरा दानों ओर, दूर तक फैले हुए कुल छोर, बीच में आरामगाह दे रही थी बड़प्पन की थाह। कहीं झरने, कहीं छोटी-सी पहाड़ी, कही सुथरा चमन, नकली कहीं झाड़ी। आया मौसिम, खिला फ़ारस का गुलाब, बाग पर उसका पड़ा था रोब-ओ-दाब; वहीं गन्दे में उगा देता हुआ बुत्ता पहाड़ी से उ...

तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड (कहानी) - तरुण भटनागर

तेरह नंबर वाली फायर ब्रिगेड (कहानी)/                              कहते हैं यह एक सच वाकया है जो यूरोप के किसी शहर में हुआ था।          बताया यूँ गया कि एक बुजुर्ग औरत थी। वह शहर के पुराने इलाके में अपने फ्लैट में रहती थी। शायद बुडापेस्ट में, शायद एम्सटर्डम में या शायद कहीं और ठीक-ठीक मालुमात नहीं हैं। पर इससे क्या अंतर पडता है। सारे शहर तो एक से दीखते हैं। क्या तो बुडापेस्ट और क्या एम्सटर्डम। बस वहाँ के बाशिंदों की ज़बाने मुख्तलिफ हैं, बाकी सब एक सा दीखता है। ज़बानें मुख्तलिफ हों तब भी शहर एक से दीखते रहते हैं।             वह बुजुर्ग औरत ऐसे ही किसी शहर के पुराने इलाके में रहती थी, अकेली और दुनियादारी से बहुत दूर। यूँ उसकी चार औलादें थीं, तीन बेटे और एक बेटी, पर इससे क्या होता है ? सबकी अपनी-अपनी दुनिया है, सबकी अपनी अपनी आज़ादियाँ, सबकी अपनी-अपनी जवाबदारियाँ, ठीक उसी तरह जैसे खुद उस बुजुर्ग औरत की अपनी दुनिया है, उसकी अपनी आज़ादी। सो साथ रहने का ...

हम अपनी ब्रेन पर इन्वेस्टमेंट क्यों और कैसे करें - शक्ति सार्थ्य

मित्रों आज के दौर को देखते हुए मैं आप सभी पर अपनी एक सलाह थोपना चाहूंगा। मुझे ये सलाह थोपने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी ये आप लेख को अंत तक पढ़ते पढ़ते समझ ही जायेंगे। पिछले कुछ दिनों से मेरा एक परम-मित्र बड़ी ही भंयकर समस्या में उलझा हुआ था। उसके खिलाफ न जाने किन-किन तरहों से साजिशें रची जा रही थी, कि वह अपने मुख्य-मार्ग से भटक जाये। उसका एकमात्र पहला लक्ष्य ये है कि वह अपनी पढ़ाई को बेहतर ढंग से सम्पन्न करे। कुछ हासिल करें। समाज में बेहतर संदेश प्रसारित करें। वो मित्र अभी विद्यार्थी जीवन निर्वाह कर रह रहा है। वह अपने परिवार और समाज को ध्यान में रखते हुए अपने लक्ष्य के प्रति वचनबद्ध है। उसकी सोच सिर्फ अपने को जागरूक करने तक ही सीमित नहीं है अपितु समाज को भी जागृत करने की है। जिससे कुछ भोले-भाले अभ्यर्थियों को सही दिशा-निर्देश के साथ-साथ उन्हें अपने कर्त्तव्यों का सही-सही पालन भी करना आ जाए। किंतु इसी समाज के कई असमाजिक सोंच रखने व्यक्ति जो सिर्फ दिखावे की समाजिक संस्था में गुप्त रूप से उनके संदेशों को मात्र कुछ रूपयों के लालच में आम जनों तक फैलाने में कार्यरत हैं। जिससे वह व्यक्त...