आज साल २०१७ का समापन दिवस है। ये साल कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। मैं यहां महत्वता की बात नहीं करूंगा और ना ही उसकी जिसकी बजह से इसकी महत्ता को कम कर दिया जाए। मैं यहां चर्चा करना चाहूंगा तो सिर्फ आत्मज्ञान की, दर्शन की, क्षमायाचना की, एक नई सीख की और उस योजना की जिसको कतई महत्वपूर्ण नहीं समझा गया मेरे द्वारा।
इस वर्ष हमारी चेतना जितनी जागृत होनी थी, हो ली। अब हम इसमें कुछ भी नहीं कर सकते। हम किन-किन मायनों में जागृत हुए और सिर्फ किस एक सही मायने में जागृत होकर हम क्या कर सकते थे? ये हम सभी भलि-भांति जानते हैं। क्योंकि हम ही खुद को सबसे ज्यादा जान सकते हैं। हम खुद की ही उन पहलुओं पर चर्चा करके खुद से ही बड़ी आलोचना कर सकते हैं। जिसका हम शायद (शायद क्या? सच में) एक बेहतर परिणाम निकाल सकते हैं।
मैं अपनी बात की शुरुआत स्वामी विवेकानंद जी के इस कथन से करना चाहूंगा-
"किसी चीज़ से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे, यह निर्भयता ही है, जो क्षणभर में परम आनंद लाती है।"
स्वामी जी के इस कथन में जितनी सच्चाई है अपितु उससे कहीं अधिक इसकी प्रामाणिकता में गहराई भी है। हम न जाने क्यों हर चीज़ से भयभीत हो जाते हैं। और न जाने हमारे भीतर का साहस पल-भर में कहां प्रस्थान कर जाता है। ये हमारी सबसे बड़ी कमजोरी का प्रमाणपत्र हैं। और इस प्रमाणपत्र को लिए हम पूरा वर्ष किसी एक अनजान डर के कारण यूं ही बेवजह ज़ाया कर देते हैं। शायद जिसकी हमें जरूरत भी नहीं थी। अब सवाल ये उठता है कि हम अंदर इतने भीरु क्यों है? और क्या क्या बजहें हो सकती है इसकी?
"किसी चीज़ से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे, यह निर्भयता ही है, जो क्षणभर में परम आनंद लाती है।"
स्वामी जी के इस कथन में जितनी सच्चाई है अपितु उससे कहीं अधिक इसकी प्रामाणिकता में गहराई भी है। हम न जाने क्यों हर चीज़ से भयभीत हो जाते हैं। और न जाने हमारे भीतर का साहस पल-भर में कहां प्रस्थान कर जाता है। ये हमारी सबसे बड़ी कमजोरी का प्रमाणपत्र हैं। और इस प्रमाणपत्र को लिए हम पूरा वर्ष किसी एक अनजान डर के कारण यूं ही बेवजह ज़ाया कर देते हैं। शायद जिसकी हमें जरूरत भी नहीं थी। अब सवाल ये उठता है कि हम अंदर इतने भीरु क्यों है? और क्या क्या बजहें हो सकती है इसकी?
मैं यहां अपनी बात अपनी तरह से रखना चाहुंगा। वो ये है कि हमें हमेशा सही दिशानिर्देश वाले आध्यात्मिक ज्ञान की कमी अखरती है। हम वहीं कमजोर दिखाई देने पड़ने लग जाते हैं जहां अध्यात्म को हमसे एक उचित दूरी पर रखा जाता है। ये अध्यात्म ही तो जो हमें हमेशा भीतर से जीने की नई ऊर्जा निरंतर प्रदान करता रहता है। अध्यात्म के माध्यम से ही हमें अपना सही आत्मज्ञान सही समय पर प्राप्त होता रहता है। इसी के माध्यम से हम क्षमायाचना की कला में निपुण होते जाते हैं। यही तो होता है हमारे दर्शन का सबसे कारगर उपाय। और एक नई सीख बड़ा कारक भी तो अध्यात्म के मार्ग से ही तो जुड़ा है।
तो फिर हम क्यों भागते हैं अध्यात्म से? क्या कारण होते हैं इसके? इसमें मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि आप स्वंय इस साल इस विषय पर चिंतन करके अपने-अपने कारकों की सूची बनायें और उन पर सही उपाय अमल में लाने के कोशिश करें। ताकि आपके और आपके पारिवारिक जीवन में नये साल की ऊर्जा का प्रवाह हमेशा बना रहे। जिससे एक बेहतर समाज और बेहतर निर्माण कार्य की योजना अमल में आती रहे।
और अंत में मैं स्वामी विवेकानंद जी के इस कथन के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा-
"पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएं दूर हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सभी महान कार्य धीरे-धीरे होते हैं।"
"पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएं दूर हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सभी महान कार्य धीरे-धीरे होते हैं।"
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, नया साल आपके जीवन में खुशियां, ज्ञानदर्शन और आपकी बौद्धिक क्षमता में वृद्धि की कारगर योजनाएं लेकर आये। ऐसी मेरी कामना है ईश्वर से।
© शक्ति सार्थ्य
ShaktiSarthya@gmail.com
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