हिचकी एक उम्मीद है उन छात्रों के लिए जो भेदभाव वाली दुनिया में जी रहे हैं
हिचकी,,,,
मैं पहले इसके बारे में क्लियर कर दूं कि ये है क्या..?
हिचकी एक तरह की टॉरेट सिन्ड्रोम है जो न्यूरोलॉजीकल कंडीशन का ही एक रूप है। जब दिमाग के सारे तार आपस में जुड़ नहीं पाते हैं तो व्यक्ति को लगातार हिचकी आती है। और वह व्यक्ति अजीब-सी आवाजें निकालता है।
हिचक एक ऐसी ही बीमारी से पीड़ित महिला नैना माथुर (रानी मुखर्जी) की कहानी है जिसे छात्र जीवन से लेकर के टीचर बनने तक कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। इस फिल्म में रानी का किरदार अमेरिकन मोटिवेशनल स्पीकर और टीचर ब्रैड कोहेन से प्रेरित है, जो कि टॉरेट सिन्ड्रोम के चलते तमाम परेशानियां झेलकर भी कामयाब टीचर बने। उन्होंने अपनी लाइफ पर एक किताब भी लिखी, जिस पर 2008 में फ्रंट ऑफ द क्लास नाम से अमेरिकन फिल्म भी आई।
अब बात करते हैं फिल्म और जरूरी मुद्दों की-
फिल्म में एक ऐसी क्लास 9F को दिखाया गया है जिसमें पढ़ने वाले सभी १४ छात्रों को सिर्फ और सिर्फ इस लिए पढ़ने की परमिशन मिली है कि वे सभी छात्र एक मुन्सीपल्टी स्कूल से है जो उस स्कूल के सामने सिर्फ कचरा पैदा करता है जिसे लेकर वह स्कूल परेशान हैं, और बाद में उसे अपने स्कूल में शामिल कर उसे एक प्ले ग्राउंड में तब्दील कर देता है।
9F के छात्रों के साथ भेदभाव इसलिए शुरू होता कि वे छात्र एक मजदूर, सब्जी बेचने वाले, मछली बेचने वाले, साईकिल का पंचर बनाने वाले या फिर गैराज चलाने वालों के यहां से आते हैं, जो सिर्फ दिनभर उसी माहौल में ढले और जीने वाले होते हैं जहां सभ्यता और पढ़ाई का मोल नहीं होता।
क्या बाकई में उन छात्रों को अच्छे स्कूलों में पढ़ने का कोई अधिकार नहीं है?
इसी भेदभाव की बजह से वे सभी बच्चें स्कूल में एक तरह का खालीपन महसूस करते हैं, जिसकी बजहों से उनकी शरारतें बढ़ती जाती है और कोई भी टीचर उन्हें पढ़ाने को तैयार नहीं रहता है। फिर इसी बजह से एंट्री होती है नैना माथुर की 9F क्लास में, जिसे स्वंय ही अपनी बीमारी के चलते टीचर की नौकरी मिलने में दिक्कत हुई। अब यहां एक बात कॉमन है। रिजेक्टेड छात्र और रिजेक्टेड टीचर का एक साथ मिलना।
अब शुरू होता है रिजेक्टेड टीचर नैना माथुर का संघर्ष, उन शरारती फेलियर बच्चों को टॉप तक ले जाने का सफर। इसे सही ढंग से समझने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
मैं इस समाज में एक बात बहुत ही गहरे तरीके से अॉब्जर्व कर पा रहा हूं कि आज भी उन छात्रों के साथ भेदभाव जारी है जो फाइनेंसियल प्राब्लम से जूझ रहे परिवारों से आते हैं। जिन्हें स्मूथ लाइफ को जीने का तरीका ही नहीं मालूम है, न कोई सुख-सुविधा होती है। जिसके चलते वो बच्चे फाइनेंसियल परिवार वालें बच्चों के सामने थोड़ा कमजोर पड़ जाते हैं। और जिससे उनके व्यवहार में भी चेंजेस आ जाते हैं। जिसके चलते उन्हें किसी भी बड़े स्कूल में वो मान-सम्मान और जगह नहीं पाता जिसके वह भी हकदार हैं। और अंततः उनके साथ एक अजीब सा दुर्व्यवहार उनके सहपाठियों और टीचरों के माध्यम से प्राप्त होता है, जिसकी बजह से वह छात्र अकेलापन महसूस करता है और उन जैसा प्रभावशाली न बनकर अजीब सी हरकतें करने लगता है। जहां उसे लानते दी जाती है कि छोटे घर के लोग होते ही ऐसे हैं, जिससे वह छात्र मेंटली डिस्टर्ब हो जाता है और अपना करियर सिर्फ इस बजह से तबाह कर लेता है कि छोटे लोग होते ही असभ्य है।
यहां सोचने वाली बात है कि यहां पर उनके साथ इस तरह की साजिशें उन बड़े स्कूलों में रची जाती है। यहां बल्कि उन्हें सिर्फ़ सही मार्गदर्शन देने की ओर जोर देना चाहिए। कई बार ऐसा भी देखा गया कि वो टिचर्स उन बच्चों पर ठीक से मेहनत भी नहीं करते क्लास में, बाकी के बच्चे अतिरिक्त ट्यूशन की बजह से मजबूत हो जाते हैं जबकि इस तरह के परिवारों से आने बच्चें फीस ही इतनी मुश्किल से भर पाते हैं अतिरिक्त ट्यूशन तो उनके लिए मात्र एक ख्वाब बनकर रह जाता है।
हिचकी एक ऐसी संघर्षशील टीचर की कहानी है जिसका उद्देश्य छात्रों को अपने टैलेंट के अनुसार आगे ले जाना है। जिससे छात्रों को ये हरपल महसूस न हो कि वह कुछ भी हासिल नहीं कर सकता।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने एक बार छात्रों के कार्यक्रम 'परिक्षा पर चर्चा' में एक बात कही थी कि "ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति को कोई न कोई गुण अवश्य दिया है बस हमें वह गुण पहचान कर अपनी एक अलग छाप छोड़ना बाकी।"
© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com
nice one Shakti
ReplyDeleteआभार सर !
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