भारत मे किसानों की स्थिति
किसान और परेशान अगर इन दोनों शब्दो पर ध्यान से गौर किया जाये तो ये, एक दूसरे के बेहद समीप और समकक्ष हैं ।अगर किसान शब्द के अंत के दो शब्द मतलब सान देखे तो खेती करना एक पेशा और शौक माना जाता था आजादी के पहले तक था ।आज तो यह केवल लाचारी मात्र का व्यवसाय बन के रह गया हैं ।यही कारण है कि एक पिता अपने पुत्र को डॉक्टर ,राजनेता,कारोबारी बनाना चाहता है मगर एक किसान अपने लड़के को कभी भी किसान नही बनाना चाहता है ।
देश की अर्थव्यवस्था से लेकर देश की राजनीति तक किसान अहम रोल अदा करता है ,यही कारण है कि पिछले कुछ समय से राजनैतिक पार्टी काँग्रेस भी किसान का नाम जोर-जोर से चिल्ला कर सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही हैं ,हालांकि इसमें ये सफल भी रही है ,कांग्रेस पार्टी ने अपने वचन पत्र में कहा - अगर हमारी सरकार बनती है तो हम दस दिन में किसानों का कर्जा माफ कर देंगे ,फिर क्या है किसानों ने इतना सुना कि तीन राज्यों की सियासत का तख्त पलट कर दिया ।
देश के प्रमुख कठिन कार्यो में से एक हैं, किसी योजना को किसानों तक ज्यो का त्यों पहुचाना ।
वैसे किसान कोई भी हो पिछले कुछ सालो में जिस तरीके से फसले ख़राब हुई हैं हर किसान की स्तिथि दयनीय हो चुकी हैं । सबसे खराब हालात जिन किसानों के है उन्हें समझने के लिए हम किसानों को तीन भागों में बाटकर समझने की कोशिश करते है
1 निम्न वर्गी किसान
2 मध्यम वर्गी किसान
3 उच्चवर्गी किसान
निम्न वर्गी किसान - ये वो किसान हैं जिनके पास खेती का बहुत कम रकवा हैं, इनके पास खेती के अलावा मजदूरी,बीड़ी बनाना आदि भी आय का साधन हैं ।अगर इनकी फसल खराब होती हैं तो ये काम इनकी जीविका पार्जन में सहायक होते हैं ।
उच्चवर्गी किसान - ये वो किसान होते हैं जिनके पास खेती का एक बहुत बड़ा भू-भाग होता हैं साथ में पशुपालन, बागवानी आदि व्यसाय भी आय का जरिया होते हैं, अगर इनकी फसल खराब होती हैं तो ये व्यवसाय इनके आड़े आ जाते हैं ।
अब आते हैं मध्यम वर्गी किसान पर ये उस धारा के किसान होते हैं जिनके पास एक सीमित मात्रा में खेती होती हैं ,आय का कोई दूसरा विकल्प इनके पास होता नही हैं, बच्चो की पढ़ाई से लेकर घर के सभी खर्चे खेती पर निर्भर होते हैं, अगर इनकी फसल ख़राब होती हैं या खेती में नुकसान होता है ,तो सीधा असर इनकी जीविका पे पड़ता हैं क्योंकि इनके पास आय का खेती के अलावा और कोई जरिया नही होता हैं तो अगर इस धारा के किसान को अगर खेती ने धोखा दे दिया तो घर की पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है ।
मध्यम वर्गीय किसानों के साथ एक दिक्कत ये होती है कि उनके पास ज्यादा पैसा या खेती होती नही है तो वे उच्चवर्गीय किसानों की श्रेणी में शामिल होने से वंचित रह जाते है ।
चुकी इनके पास खेती का एक सीमित भू-भाग पास होता है जो निम्न वर्ग से तो काफी अधिक होता है मगर ,इनका समाज मे एक ठीक -ठाक ओहदा होता है ऐसे में ये मजदूरी या बीड़ी बनाने का काम भी नही कर सकते है ।
तो कहने का तात्पर्य है ये न तो उच्चवर्गीय किसानों में शामिल हो सकते है और न ही निम्नवर्गीय किसानों में
पिछले कुछ सालों से जिस प्रकार से फसले ख़राब हुई हैं उनका सीधा असर इस धारा के किसानों पर सबसे ज्यादा पड़ा हैं ,फसल बर्बादी के कारण ये किसान साहूकारों से पहले से कर्ज लिये बैठे है ,मगर अब नौबत अपनी जमीन बैचनी की आ चुकी हैं ।चुकी इनका सीधा सरोकार खेती से होने के कारण इन्हें देश वास्तविक किसान भी कह सकते हैं ।
खेती में बहुतायत में रासायनिकों का प्रयोग ,परंपरागत तरीके छोड़ के आधुनिक तरीके से खेती करना ,फसल का सही भाव न मिलना , खेती का असिंचित होना ,किसानों को प्रशिक्षण न मिलना ,मौसम की बेरहमी आदि ।
ये कुछ प्रमुख कारण है जो हर तरह के किसानों की मूल्य समस्याये बनी हुई है ।
ऐसा नही है कि राज्य सरकारे किसानों की मदत नही कर रही है ,राहत राशि की जितनी घोषणा की जाती हैं उतनी किसानों को मिलती नही हैं और जिस समय मिलनी चाहिय उस समय तक नही मिलती हैं ।यहा कुछ सरकारों की सहायता में चूक हो जाती हैं ।
हॉलिया किसान हितो से लबालब प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना से किसानों बेहद उम्मीदे नज़र अ रही हैं ,पर अभी इस योजना का लाभ हर किसान तक पहुचाने में बहुत वक्त लग जायेगा ।
खैर किसानों को मुख्यधारा में लाने वाले इस साहसी कदम की तारीफ तो कर ही सकते हैं जो उदास चेहरे पर एक ख़ुशी की आस ले आई ।
बहुत सारे लोग किसानों पर ग़ज़ले ,कविताएं लिखते है महफ़िलो में पढ़ते है वाह-वाही ,सराहना बटौर ते है ,
मगर ऐसे कितने है जिनको ये पता होगा कि किसान दिवस कब और किस जननायक के जन्म दिवस पर मनाया जाता है ।
तो ये एक अपने आप मे शर्मिंदा होने की भी बात है ।
अगर आज मैं इतना सब बता पाया तो इसलिय की मैं खुद एक किसान का लड़का हूँ , मेरा किसानी से सीधा सरोकार है । और खेती करने में कितनी दुश्वारियों है इसको मैंने बड़े गौर और पारखी नज़र से देखा है
तभी जाके कहता हूँ -
जब नेता किसानों से किये वादे भूल जाते है ।
तब किसान अपनी तौलिया का फंदा बना के झूल जाते है ।।
प्रमोद पाण्डेय
गढ़ाकोटा,सागर
नाम- प्रमोद पाण्डेय
जन्म तिथि- 28 अगस्त 1993
शिक्षा- स्नातक बी. ई. (ई.सी.)
वर्तमान में माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल यूनिवर्सिटी
भोपाल में
एम.एस. सी.(फ़िल्म प्रोडक्शन)
के कोर्स में अध्यनरत है ।
परिचय- अनेक पत्र -पत्रिकाओं में कहानी,लघु कथाओं का प्रकाशन ,कई समाचार पत्रों में स्वतंत्र लेख लेखन,मुंबई ,भोपाल जैसी शहरों में ओपन माइक पोएट्री भी करता रहता हूँ ।
भारतीय सिनेमा में गीत, कथा,पठकथा और संवाद लिखने में प्रयाशरत ।
पता
ग्राम - सूरजपुरा ,पोस्ट- कुमराइ
तहसील- गढ़ाकोटा ,जिला - सागर (म.प्र. )
पिन कोड- 470232
मोबाइल- 9685265696 (whatsapp)
ईमेल- pramodpp0835@gmail.com
Comments
Post a Comment