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हमारे शरीर पर रसायनों के बढ़ते प्रभाव में विज्ञापनों की भूमिका - शक्ति सार्थ्य

                        (चित्र साभार - गूगल)

वक्त बदल रहा है। चीजें बदल रही है। मेरा शरीर भी बदल रहा है। ये जो हमारा शरीर पंचतत्व से बना हुआ है, प्रकृति का एक बेमिसाल तोहफा है। अब ये हमारा शरीर प्रकृति से बनें तत्वों से नियंत्रित नही होता। इसमें बहुत सी रासायनिक क्रिया भाग लेने लगी है, हमारे पंचतत्व से बने शरीर को नियंत्रित करने के लिए। ये शरीर जो रोगमुक्त होना चाहिए, रोगयुक्त हो चुका है। इसमें बहुत से ऐसे रोग जन्म लेने को आतुर है, जिन्हें आना ही नहीं चाहिए था हमारे शरीर में। वो बिना इजाज़त के ही हमारे शरीर में प्रवेश किए जा रहे है। जिन्हें हमारा शरीर एक जमाने में प्रवेश की इजाज़त नहीं देता था। ऐसा मालूम पड़ता है कि इन रोगों का रसायनों से कोई समझौता हुआ है। जिसके चलते ये हमारे शरीर पर रसायनों के प्रयोग करने से हमसे बिना अनुमति लिए हमारे शरीर में प्रवेश करते जा रहे है।

हम दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले इन रसायनों से बने उत्पाद को दोषी नहीं ठहरा सकते। क्योंकि कोई भी उत्पाद यूँ हमारी इजाज़त के बिना हमारे शरीर में प्रवेश नहीं कर सकता। हम ही हैं जो इन उत्पादों को हमारे शरीर में प्रवेश करने देते है। ठीक उसी तरह से ये रसायन भी भी उन रोगों को अपने साथ प्रवेश करने की अनुमति प्रदान करने देते है। और इस तरह इन रसायनों के साथ ये रोग भी हमारे शरीर के मेहमान बन जाते है। जिसके चलते हमें आये दिन नई-नई तकलीफों का सामना करना पड़ता है।

हाँ, मैं ये कह सकता हूँ कि हम इन विज्ञापनों की वजह से जरूर मुर्ख बन बैठे है, जिसके चलते हम आये दिन नये-नये उत्पाद खरीदने के लिए उत्सुक हो उठते है। और ये विज्ञपान हमारे चहेते चेहरों के जरिए हमारे समक्ष प्रस्तुत किये जाते है, जो हमारे जीवन के असल हीरो होते है। और वो चेहरे एक मोटी-रकम लेकर अपना जीवन तो बेहतर बना लेते है। किंतु हम उनकी बदौलत मुर्ख बनते चले जाते है, और हम उन चेहरों की ही वजह न जाने क्या-क्या गैर-जरूरी सामान खरीद लेते है। जिसके कारण हमें बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है। जिससे हमारी जेब तो ढीली होती ही है, साथ में नये-नये मेहमान हमारे स्वस्थ शारीरिक घर में बिना इजाज़त के प्रवेश कर बैठते है, जो उन रसायनों से तैयार उत्पादों की ही देन है।

हम जिन्हें आजतक अपना रोल मॉडल मानते चले आये हैं, असल में यही हमारे सबसे बड़े दुश्मन निकले। ये लोग अपने चंद लाभ के लिए किसी भी घटिया कंपनी को मल्टीनेशनल कंपनी बना देने में मुख्य भूमिका अदा करते आये है। (जब किसी भी कंपनी के उत्पाद यदि ज्यादा बिकने लगेंगे तो वह कंपनी तीव्रता से वृद्धि करेगी और इस तरह वह कंपनी एक दिन बहुत ही तीव्रता से मल्टीनेशनल कंपनी में तब्दील हो जायेगी।)

हमारे ये चहेते चेहरे जिनके लिए हम अपनी जान न्यौछावर करने के लिए तैयार हो जाते है। जिन्हें हम प्रसिद्धी देते है। वो ही चेहरे हमारी जान के दुश्मन बन बैठे है। मैं यहाँ एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि हम स्वयं ही अपनी जान के दुश्मन बनने में उतने भागी है जितने की ये चहेते चेहरे। बल्कि मैं कहूँ आप ही पूरी तरह से जिम्मेदार है, तो ये कहना कोई गलत नहीं होगा। हम ये सब जानकर भी अनजान बने बैठे है कि ये कंपनियां जब किसी बड़े स्टार से प्रचार करवाती है तो उनकी मंशा यही रहती है भले ही हमें प्रचार में करोड़ों खर्च क्यों न करना पड़े एक बार जब उत्पादों की इन स्टारों के चहेते तक पहुंच बन जायेगी तब हम अरबो कमा लेगें कुछ भी बेचकर। और इसी बात का फायदा उठाकर कंपनियाँ आपको कुछ भी बेचती जा रही है, जो आपकी जेब के साथ सेहत पर भी असर छोड़ रही है।

हमें ऐसे विज्ञापनों और चहेते चेहरों से दूरी बनानी होगी जो आपकी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे है। हमें वहिष्कार करना होगा ऐसे उत्पादों का जो आपकी जेब तो लूट ही रहे साथ ही आपके शरीर पर भी असर डाल रहे है। ऐसे न जाने बहुत से विज्ञापन हर मिनट पर आपकी टीवी स्क्रीन या मोबाइल स्क्रीन पर देखने को मिल जाते है। हमें इन्हें नज़र अंदाज करना होगा। जितना हो सके हमें ऐसे माध्यमों से ही दूरी बनानी होगी जिसके चलते ये विज्ञापन हमारे मस्तिष्क पर हावी न हो सके। खासकर टेलीविजन एक ऐसा माध्यम है जिसने हमारे मस्तिष्क पर इन विज्ञापनों को अधिक हावी होने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। हमें तत्काल ही ऐसे संसाधनों को अपने घर से दूर कर देना चाहिए।

हम कितना भी अपने दिमाग में ये बात बिठा ले कि हम इन विज्ञापनों को टेलीविजन देखते वक्त नजरअंदाज कर देगें। मैं शतप्रतिशत गांरटी लेता हूँ कि आप इसे चाहकर भी नजरअंदाज नहीं कर सकते। यदि ऐसा होता तो रसायनों से बने ये उत्पाद आपके घरों में आज मौजूद नहीं होते। एक वक्त था जब टेलीविजन शायद ही किसी के पास रहता था, तब सभी घरों में सिर्फ आयुर्वेदिक उत्पाद या घर में तैयार किए गए उत्पाद ही पाये जाते थे। और न ही तब हमारे शरीर में आज जितने रोग हुआ करते थे। मैं कहता हूँ कि आप इस बात की पुष्टि किसी बड़े-बुजुर्ग से बात करके कर सकते है। उनके जमाने में आज जितने ताम-झाम नहीं थे। वे पूरी तरह से प्राकृतिक जीवन व्यतीत करते थे। आज के युग में उन प्राकृतिक चीजों का वास्ता देकर सिर्फ आपको लूटा जा रहा है। और आप बिना कुछ किए उन प्राकृतिक चीजों को चाहकर भी हासिंल नहीं कर सकते। आपको उन्हें प्राप्त करने के लिए स्वयं परिश्रम करना होगा। और जो आप कर सकते है।


© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com



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