
अब वक्त पहले जैसा नहीं रहा/
अभी कुछ ही वर्ष बीते होगें जब ये वक्त धीरे धीरे चलता था। ऐसा प्रतीत होता था कि मानो मृत्युलोक के सभी प्राणियों के पास पर्याप्त समय था- लोगों से बात करने का, उनसे मिलने का, स्वयं के लिए भी सही एंव पर्याप्त वक्त देने का। तब इतनी भाग-दौड़, शोर-शराबा नहीं था। सभी के चेहरे खिले खिले थे। उनके चेहरे पर आज जितने जिम्मेदारी वाले भाव नहीं थे। और ना ही उस समय के लोगों के पास आज जितना कुछ भी खो-जाने का इतना डर था। और ना ही वो लोग कुछ भी खो-जाने से डरते थे। उन्हे चिंता थी तो बस अपने वक्त को बरकरार रखने की। वे अपना वक्त बरकरार रखते थे। और उसे जिंदादिली से जीते भी थे।
आज जब मैं उस वक्त को छोड़कर आज के इस मॉर्डन युग में प्रवेश कर चुका हूँ। तब भी हर-पल अपने आप को डरा-डरा-सा महसूस करता हूँ। मुझे डर है कि क्या होगा मेरा जब मैं जॉब-रहित हो जाऊँगा? क्या होगा मेरा जब मैं अपनी जिम्मेदारियों से दूर भाग जाऊँगा? ना जाने क्यों आज मेरे इतने विकसित मस्तिष्क में हर-वक्त डर का माहौल बना हुआ है? मुझे आज के इस वक्त ने इतना डरा कर रखा है कि मैं धोखे से भी उस डर से बाहर नहीं निकल पाता। मैंने लगभग जीना छोड़ दिया है। बस हर पल डर को ही जिया जा रहा हूँ।
मुझे याद है जब मैं बच्चा हुआ करता था, तब मैने हमारे घर के बड़े लोगो को इतना बेचैन कभी नहीं देखा था और ना ही इतने सोच-विचार में डूबा हुआ देखा- कि क्या होगा आगे जब वह इतने खाली-खाली है धन-आदि को लेकर। उन्हें तो बस उस वक्त को जीता हुआ देखा था। मैं आज इतना सबकुछ हांसिल कर लेने के बावजूद भी आने वाले कल के बारें में सोचना नहीं छोड़ता। मुझे न जाने क्यों हमेशा चिंता रहती है अपनी आने वाली हर-सुबह की? ना तो मैं आज को इतने बेहतर ढंग से जी पा रहा हूँ और ना ही अपने आने वाले कल को सुरक्षित ही कर पा रहा हूँ।
मुझे याद है कि जब मैं छोटा बच्चा था, तब कहीं से भी कोई डाकिया एक डाक लेकर आ जाया करता था। हमारे और हमारे परिवार के चेहरों पर खुशियों का कोई टिकाना नहीं रहता था। क्योंकि उसमें किसी के आने का संदेशा रहता था। वो हमारी समर-वॉकेशन को एंजॉय करने का संदेशा हुआ करता था। तब वे लोग कितनी सिद्दत से आया करते थे। साथ में ढेर सारा समय निकाल कर लाया करते थे। मुझे याद है कि मेरा बचपन कभी किसी चिंता में नहीं बीता। तब, जब हमारी जेबें बिल्कुल खाली हुआ करती थी। हम खुश थे। क्योंकि हमारी खुशी सभी के साथ होने में थी।
आज जब मैं अपनी जवानी की दहलीज़ पर खड़ा हूँ, सिर्फ निराशा ही निराशा लिये घूम रहा हूँ। मुझे राहत का कोई भी पल नज़र नहीं आ रहा है। सिर्फ अपने साथ अंधकार को ही पाता हूँ। और उसी अंधकार में डूबा जा रहा हूँ। कही से उम्मीद की कोई भी किरण फूटती नहीं दिख रही है।
आज जब हम तकनीकी तौर पर इतने सक्षम है फिर भी अपने आप को खाली-खाली महसूस करते है। हम आज जब इतने आगे निकल चुके है फिर भी वो खुशी अभी तक नहीं हांसिल कर पाये जिसके चलते आपके अपने सभी लोग आपसे बिना धन के जुड़ पाते हों। आज जब मैं देख पा रहा हूँ कि यदि आपके पास धन नहीं है तो आप लोगों के लिए किसी काम के नहीं है। यदि आप कुछ भी काम के नहीं है और आप के पास धन अर्जित करने के बहुत से साधन है तो आप एक सम्मानित व्यक्तियों की लिस्ट में काफी ऊपर नज़र आते है जबकि वह व्यक्ति कहीं नज़र नहीं आता जो मानसिक रूप से सक्षम है।
कहने का तात्पर्य यह है कि हम आज सिर्फ दिखावे की दुनिया में जीवन व्यतीत कर रहे है। जिसका वास्तविक दुनिया से कोई संबंध ही नहीं है। यह एक ऐसी दुनिया है जिसमें प्रेम के सही अर्थों की समझ ही नहीं है। यह दुनिया अब डरावनी सी नज़र आती है। जहाँ सही जीवन जीने को बचा ही नहीं है। यदि आप आज के दौर में जीवित रहना चाहते हो तो आपको सबसे पहले डरना सीखना होगा। यदि आप डरना नहीं जानते तो आप इस दुनिया में जीने के योग्य नहीं है। हां, एक दौर था जब आप जी सकते थे, किंतु आजके दौर में तो बिल्कुल भी नहीं।
तो अब आप कब तक डरना सीख रहे हो?
© शक्ति सार्थ्य
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