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हम स्वयं ही अपने दु:ख के निर्माता है - शक्ति सार्थ्य



हमारे दु:खी रहने का हमें कोई भी ऐसा अधिकार प्राप्त न होने के बावजूद भी हमें दु:खी होना पड़ जाता हैं। कई बार हम दूसरों के द्वारा की गई साजिशों के कारण ही दु:ख भरे अवसाद में चलें जाते हैं। अक्सर ये भी होता है कि हम उस साजिश की वजह से दु:खी नहीं होते हैं। बल्कि उस साजिशकर्ता की वजह से दु:खी हो उठते हैं जिसकी हमने शायद ही कोई कल्पना की हो।

हम सब इतना तो जानते हैं ही कि यदि हम किसी भी वस्तु को लेकर निराश होकर बैठ जाते हैं तो इससे उस वस्तु में कोई भी बदलाव नहीं होता। उल्टा हमारा मस्तिष्क और क्षतिग्रस्त हो जाता है। जिसका दुष्परिणाम हमें और गहरे अवसाद में ढकेल देता है।

फिर सवाल उठता है कि दु:ख से कैसे निपटा जाए?

       हमें पहले एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि "दु:ख एक क्रिया है, जिसे हम स्वंय अपनी हानि के द्वारा ही उपजते हैं, यदि हमें कभी भी किसी तरह की हानि न हो तो दु:ख स्वत: ही मृत हो जायेगा।"

      अब एक सवाल और जन्म लेता है कि ऐसा कैसे संभव है कि जीवन में कोई भी ऐसा क्षण न आया हो जब हमें हानि का सामना न करना पड़ा हो? इसका मतलब है कि हमें दु:खी रहना ही पड़ेगा?

      बिल्कुल कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसने जीवन में उतार चढाव न देखें है। सभी के जीवन में लाभ-हानि का चक्र चलता ही रहता है। किंतु सबसे महत्वपूर्ण बात ये है, जो व्यक्ति हानि को लेकर चिंताग्रस्त हो जाता है और दु:ख के भण्डार में प्रवेश कर जाता है वह व्यक्ति कभी भी जीवन में सफलता को प्राप्त नहीं कर सकता। और जो व्यक्ति हानि से सीख लेकर एक नई राह तलाश कर उस पर सही ढंग से चलता जाता है वह व्यक्ति एक दिन जरूर सफल हो जाता है।
      अब सवाल यह है कि सफलता और असफलता का दु:ख से क्या कनेक्शन? कनेक्शन है,, सफल व्यक्ति कभी निराश नहीं रहता और असफल व्यक्ति कभी-भी निराशा से बाहर नहीं निकलता।

कुल मिलाकर के कहने का तात्पर्य यह है कि हम स्वंय ही अपने दु:ख के निर्माता है। हम चाहे तो किसी बात को लेकर दु:खी रह सकते या फिर उसे भूलकर एक नई राह चुनकर सुख की तलाश कर सकते हैं।

© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com


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