मुझे नहीं मालूम कि कंफेशन कैसे किया जाता है फिर भी कंफेशन कर रहा हूं...
हे ईश्वर !
शायद ही आपसे कुछ छूटा हो।
किंतु फिर भी मैं आज एक-एक करके अपनी सभी गलतियों को आपके सामने दोहराना चाहता हूं। मैं इस लिए दोहराने की कोशिश नहीं करूंगा कि शायद आप मेरी सभी गलतियों को सुनकर मुझे माफ़ कर देंगे। बल्कि इसलिए कि मुझे भी ठीक-ठीक से पता चल सके कि मैं खुद कितना पापी हूं। मुझे मालूम है कि आज मैं आपके द्वार पर खड़ा हूं। मैं कभी भी धार्मिक स्थलों पर खुद से झूठ नहीं बोल पाता। हां यदि आज मैं यहां खड़ा न होकर कहीं और खड़ा होता तो शायद अपने आप से भी झूठ बोलने से नहीं कतराता। क्योंकि मैं मनुष्य जो ठहरा। मनुष्य की फितरत ही ऐसी होती हैं कि वह न चाहकर भी सच्चाई गटक जाता है। और झूठ को सच की मोहर साबित कर उसे ही हर दस्तावेज पर चस्पा करता जाता है।
मेरी आज आपसे अपनी एक शिकायत है पहले वो पेश करूंगा। फिर अपना इकबाले बयां।
मुझे तब ज्यादा दुःख होता है जब कोई आपके नाम का इस्तेमाल कर मोटी रकम कमाता है, और आप भी न उसे उस नीच कुकर्म के लिए खूब साधुवाद भी देते हैं। ये बात आप अच्छे से जानते हैं कि वह मेरे नाम का गलत इस्तेमाल कर रहा है, फिर भी आप उसे अपना निरंतर आशीर्वाद देते ही रहते हैं। क्या मैं ये मान लूं कि आप भी मृत्युलोक के वाशिंदों की तरह रिश्वत के आदी हो चुके हैं? जो आपकी ही आड़ में आपको चढ़ावा देकर यहां बेसहारों पर अत्याचार करते हैं। गरीबों की सहायता करने के वजह आपके द्वार पर कमाई गई पाप की कमाई का एक बड़ा हिस्सा बड़े फक्र से साथ छोड़ जाते हैं। क्या आपको ये सब अजीब नहीं लगता? या फिर आपकों भी इनके तरह रिश्वत की लत लग चुकी है? शायद आपको अजीब तो लगता होगा किन्तु आप भी समय के साथ-साथ बदल गये होंगे। शायद आपको ये बात मालूम हो कि न हो जो भी व्यक्ति किसी पापी का साथ देता है न? वह भी पापी ही कहलाता है। मैं आपको ये शब्द बिल्कुल भी नहीं कह रहा हूं। मैं तो स्वंय पापी हूं। क्योंकि एक पापी को दूसरे को पापी कहने का कोई अधिकार ही नहीं है। अब आप शायद ये समझ रहे होंगे कि मैंने आपको पापी घोषित कर ही दिया। किंतु ऐसा नहीं है प्रभु। मैं आपको ये शब्द तनिक भी नहीं कह सकता। हां मैं आप पर अपना हक जताकर इस बात का रोना अवश्य रो सकता हूं कि आप भी न गरीबों के अत्याचारियों पर महेरबान तो हैं ही।
Confession..
***
मैं आज ये बात स्वीकार करता हूं कि मैंने जानें-अनजानें में बहुतों का दिल सिर्फ अपने अहम के कारण ही दुखाया है। मैंने कभी भी अपने अहम के आगे किसी दूसरे की बात चलने ही नहीं दी। मैं शायद स्वार्थी था। मुझे अपना फायदा हमेशा अपना ही लगा। दूसरों की चिंता का मुझे कभी कोई भान ही नहीं रहा। हां शायद मैं नादान रहा हूं। मुझे शायद सही और ग़लत में फर्क करना ही नहीं आया हो। किंतु मैं ग़लत था। और हर गलती की अपनी सजा होती है। मुझे वो स्वीकार है।
***
सबसे बड़ी बात मैं शायद पूर्णतया मनुष्य हूं ही नहीं। मुझे आज भी दूसरे के सुख से जलन हो उठती है। मैं आज भी उन्हें हराने के फिराक में रहता हूं। मेरा सबसे बड़ा दोष मनुष्य होना है। मैं इसमें फिट ही नहीं बैठ पा रहा हूं। मैं दिखावटी हूं। यही सबसे बड़ा धोखा है औरों के लिए मेरे द्वारा। मैं न जाने क्यों दिखावे की दुनिया बनाने पर तुला है।
***
क्या मैं समाज के प्रति जिम्मेदार हूं? शायद नहीं। मैंने आज तक कोई भी कार्य समाज में जिम्मेदारी पूर्वक नहीं किया। मुझे हमेशा अपना स्वंय का फायदा दिखता था, शायद आज भी मैं अपने फायदे के लिए जी रहा हूं। सच कहूं तो ये पूरी दुनिया अपने फायदे के लिए जी रही है, और मैं भी इसी दुनिया से आता हूं। शायद यही वजह रही हो कि मैं अपने फायदे को जायज़ ठहराता रहा।
***
हां, मैंने कभी प्रेम को उतना महत्व नहीं दिया जितना देना चाहिए था। मैं हमेशा किसी भ्रम में जीता रहा। प्रेम की भाषा मेरे ज़हन में थी ही नहीं। मुझे अभी भी शायद प्रेम का उतना महत्व न मालूम हो, फिर भी प्रेम की दौड़ में शामिल होना चाहता हूं।
***
मैं शायद शिक्षा के प्रति इतना वफादार नहीं था जितनी मुझसे उम्मीदें लगाई जाती थी। मैं शिक्षा को हमेशा अपने ऊपर अपने परिवार द्वारा जबरन थोपा हुआ मानता रहा। किंतु सत्य कहूं तो मैं शिक्षा के तरीकों से हमेशा नाखुश था। शायद अब उससे और ज्यादा ही नाखुश हूं। स्कूल कभी विद्या के मंदिर अवश्य कहलाये जाते थे, किंतु अभी व्यवसाय के बहुत बड़े साधन कहलाये जाने लगें हैं। और यही हमारा दुर्भाग्य है।
***
मुझे स्वच्छता की कभी पड़ी ही नहीं रहती थी। सच कहूं मैं आज भी स्वच्छता के प्रति इतना जिम्मेदार नहीं हूं जितना होना चाहिए। मैं यहां संसार को स्वच्छता की बातें करते देख और क्षुब्ध हो जाता हूं क्योंकि यही वो लोग हैं जिन्होंने स्वच्छता को सिर्फ दस्तावेज में दर्ज करने की मुहिम छेड़ रखी है। न की उसकी गहराई को समझ के उसपे अमल करने की। मैं यहां देख पा रहा हूं कि लोग किस तरह से स्वच्छता का स्वांग रचे जा रहे हैं और उसके जस्ट पीछे देश को गंदगी की ओर धकेले जा रहे हैं। हम जिम्मेदार होने की कोशिश अवश्य कर रहे हैं किन्तु जिम्मेदार बन नहीं रहें हैं।
***
हां, मैं कह सकता हूं कि मैं कभी भी भ्रष्टाचार के मामले में पूरा ईमानदार नहीं रहा। हमेशा भ्रष्टाचार से दूरी बनाए रखने की कोशिशें करता रहा। किंतु मैं अपने हृदय-तल से कह सकता हूं कि मैं स्वयं इस ओर जाना ही नहीं चाहता था और जहां तक ज्ञात होता है मुझे कि मैं कभी भी इस ओर इंगित भी नहीं हुआ। फिर भी कह सकता हूं कि मैंने भ्रष्टाचार को होते हुए अपनी आंखों से देखा जरूर है और फिर तत्पश्चात मैंने अपनी आंखें मूंद भी ली है। हां कह सकता हूं कि मैं भागीदारी अवश्य रहा हूं। आज मैं ये बात दावे से कह सकता हूं कि जो लोग भ्रष्टाचार मिटाने की मुहिम में बढ़-चढ़कर कर हिस्सा ले रहे हैं वहीं असल में भ्रष्टाचार के प्रमुख हैं। बाकी दुनिया के लोग भ्रष्टाचार मिटाने की बात नहीं करते हैं तब इतना दु:ख नहीं होता किंतु जो भ्रष्टाचार को लेकर सजग है और वहीं अंततः इसमें लिप्त है तब हमें बेहद दु:ख होता है। आखिर अब हम किससे उम्मीद करेंगे।
***
सहायता को लेकर मैं कभी इतना सजग नहीं रहा किंतु सहायता का बीज अवश्य पनपता रहा मेरे भीतर। मैं ये बात बड़े गर्व से स्वीकार सकता हूं कि मैं पहले कभी इस कार्य को लेकर समृद्ध नहीं था। मेरे पास ऐसे कोई भी साधन नहीं था जिसके चलते मैं किसी की सहायता कर सकता था। मैंने लोगों को सहायता के नाम पर बेवकूफ बनाते बहुत देखा हैं। और शायद अभी भी देख रहा हूं। किसी की सहायता न करने से ज्यादा पाप तब लगता है जब हम सहायता की बात करके उससे मुकर जाते हैं। क्योंकि सामने वाला व्यक्ति आपसे उम्मीदें लगाए बैठा रहता कि चलों कुछ तो मदद मिल जायेगी और वो आश्वत भी हो जाता है, किंतु दु:ख तब होता है जब उसे पता चलता है कि सहायता का वो वायदा खोखला था। तब वह अंदर से बिखर जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि आप किसी से कभी खोखले वायदे मत करना बेशक आप सहायता न करें।
(मैं आशा करता हूं कि सभी लोगों को अपने जीवनकाल में समय-समय पर कंफेशन करते रहना चाहिए जिससे हमें हमारी और समाज की सच्चाई को देखने में कोई कठिनाई न हो, और हो सकता है कि एक दिन हम बदल जाए और फिर इस तरह धीरे-धीरे देश भी बदल जायेगा)
[नोट- कंफेशन की लिस्ट लंबी है और ये सामान्य लिस्ट ही पोस्ट की गई है, अब समय-समय पर मेरे द्वारा कंफेशन होता ही रहेगा]
© शक्ति सार्थ्य
shaktisarthya@gmail.com
Comments
Post a Comment